भारतीय संविधान के भाग एवं अनुच्छेद
Indian Constitution Part and Article
भारतीय संविधान के तहत भाग एवं अनुच्छेद
भारतीय संविधान के तहत 449 अनुच्छेद हैं जिन्हें 25 भागों में बांटा गया है। प्रारंभ में, संविधान में 8 अनुसूचियों के साथ केवल 22 भाग और 395 अनुच्छेद शामिल थे। हालांकि, इसकी स्थापना के बाद से संविधान में कई संशोधन किए गए हैं। अक्टूबर 2018 तक, कुल 123 संशोधन बिल पेश किए गए हैं, जिनमें से 102 संशोधन अधिनियम लागू किए गए हैं। भारत के संविधान के कुछ अनुच्छेदों का सारांश नीचे दिया गया है:
भाग I
(अनुच्छेद 1 से 4): संघ एवम उसके राज्य क्षेत्र का वर्णन।
हमारे संविधान का पहला हिस्सा भारत के राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से संबंधित है। यह देश का वर्णन करता है "इंडिया जो की भारत है, राज्यों का संघ होगा" और फिर उन कानूनों को तैयार करता है जिनके अंतर्गत राज्यों को एक साधारण संसदीय बहुमत के साथ विभाजित या विलय किया जा सकता है। सीमाओं को बदला जा सकता है और राज्यों के नाम को बदला जा सकता है। यह एक खंड भी देता है जिसमें संघों को संघ में जोड़ा जा सकता है। वर्तमान में, भारत और 9 केंद्र शासित प्रदेशों में 28 राज्य हैं।
यह हिस्सा स्वयं संविधान की मूल संरचना का हिस्सा है और इसलिए अनुच्छेद 368 के माध्यम से संशोधित नहीं किया जा सकता है। हालांकि छोटे संशोधन संविधान (40 वें संशोधन) अधिनियम, 1976 की तरह किए जा सकते हैं, एक नया अनुच्छेद 297 प्रतिस्थापित किया गया ताकि संघ में निहित हो सके भारत के सभी भूमि, खनिज, और क्षेत्रीय जल या महाद्वीपीय शेल्फ या भारत के विशेष आर्थिक क्षेत्र के भीतर समुद्र के अंतर्गत मूल्य की अन्य चीजें हैं। 26 अप्रैल 1975 को सिक्किम को भारत में एक राज्य के रूप में भर्ती कराया गया था। इस कानून का नवीनतम प्रभाव आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, 2014 में देखा जा सकता है जहां तेलंगाना को एक नए राज्य के रूप में बनाया गया था।
➤ भारतीय संविधान अनुच्छेद 1 (Article 1) - संघ का नाम और राज्यक्षेत्र
विवरण- भारत, अर्थात् इंडिया, राज्यों का संघ होगा।
- राज्य और उनके राज्यक्षेत्र वे होंगे जो पहली अनुसूची में विनिर्दिष्ट हैं।
- भारत के राज्यक्षेत्र में,
- राज्यों के राज्यक्षेत्र,
- पहली अनुसूची में विनिर्दिष्ट संघ राज्यक्षेत्र, और]
- ऐसे अन्य राज्यक्षेत्र जो अर्जित किए जाएँ, समाविष्ट होंगे।
➤ भारतीय संविधान अनुच्छेद 2 (Article 2 ) - नए राज्यों का प्रवेश या स्थापना
विवरण- 2संसद, विधि द्वारा, ऐसे निबंधनों और शर्तों पर, जो वह ठीक समझे, संघ में नए राज्यों का प्रवेश या उनकी स्थापना कर सकेगी।
- 2संसद, विधि द्वारा, ऐसे निबंधनों और शर्तों पर, जो वह ठीक समझे, संघ में नए राज्यों का प्रवेश या उनकी स्थापना कर सकेगी।
➤ भारतीय संविधान अनुच्छेद 3 (Article 3) -
नए राज्यों का निर्माण और वर्तमान राज्यों के क्षेत्रों, सीमाओं या नामों में परिवर्तन
विवरण
संसद, विधि द्वारा--- किसी राज्य में से उसका राज्यक्षेत्र अलग करके अथवा दो या अधिक राज्यों को या राज्यों के भागों को मिलाकर अथवा किसी राज्यक्षेत्र को किसी राज्य के भाग के साथ मिलाकर नए राज्य का निर्माण कर सकेगी;
- किसी राज्य का क्षेत्र बढ़ा सकेगी;
- किसी राज्य का क्षेत्र घटा सकेगी;
- किसी राज्य की सीमाओं में परिवर्तन कर सकेगी;
- किसी राज्य के नाम में परिवर्तन कर सकेगी:
➤ भारतीय संविधान अनुच्छेद 4 (Article 4) -
पहली अनुसूची और चौथी अनुसूची के संशोधन तथा अनुपूरक, आनुषंगिक और पारिणामिक विषयों का उपबंध करने के लिए अनुच्छेद 2 और अनुच्छेद 3 के अधीन बनाई गई विधियाँ
विवरण
भाग II
भारत के संविधान के अनुच्छेद 11 द्वारा संसद में निहित शक्ति का उपयोग करते हुए, एक व्यापक कानून "नागरिकता अधिनियम, 1955" संसद द्वारा पारित किया गया था। इस अधिनियम को समय-समय पर प्रावधानों के लिए जगह बनाने के लिए संशोधित किया गया है जब भी आवश्यक हो। मुख्य रूप से, भारत एक ऐसा देश है जिसने केवल एकल नागरिकता की अनुमति दी, लेकिन नागरिकता विधेयक 2003 ने 16 विशिष्ट देशों में दोहरी नागरिकता हासिल करने के लिए भारतीय मूल के लोगों को अस्तर की अनुमति दी। निम्नलिखित तरीकों से नागरिकता भी हासिल की जा सकती है:
इस संविधान के प्रारंभ पर प्रत्येक व्यक्ति जिसका भारत के राज्यक्षेत्र में अधिवास है और—
➤ भारतीय संविधान अनुच्छेद 6 (Article 6) -
विवरण
- अनुच्छेद 2 या अनुच्छेद 3 में निर्दिष्ट किसी विधि में पहली अनुसूची और चौथी अनुसूची के संशोधन के लिए ऐसे उपबंध अंतर्विष्ट होंगे जो उस विधि के उपबंधों को प्रभावी करने के लिए आवश्यक हों तथा ऐसे अनुपूरक, आनुषंगिक और पारिणामिक उपबंध भी (जिनके अंतर्गत ऐसी विधि से प्रभावित राज्य या राज्यों के संसद में और विधान-मंडल या विधान-मंडलों में प्रतिनिधित्व के बारे में उपबंध हैं) अंतर्विष्ट हो सकेंगे जिन्हें संसद आवश्यक समझे।
- पूर्वोक्त प्रकार की कोई विधि अनुच्छेद 368 के प्रयोजनों के लिए इस संविधान का संशोधन नहीं समझी जाएगी।
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भाग II
(अनुच्छेद 5 से 11): नागरिकता
यह आलेख तय करता है कि कोई व्यक्ति ब्लू इंडियन पासपोर्ट ले सकता है या नहीं। इसमें 7 अनुच्छेद हैं जो नीचे दिए गए हैं:
- संविधान के प्रारंभ में नागरिकता।
- पाकिस्तान से भारत आने वाले कुछ लोगों की नागरिकता के अधिकार।
- पाकिस्तान में कुछ प्रवासियों की नागरिकता के अधिकार।
- भारत के बाहर रहने वाले भारतीय मूल के कुछ लोगों की नागरिकता के अधिकार।
- व्यक्ति स्वेच्छा से एक विदेशी राज्य की नागरिकता प्राप्त करना नागरिक नहीं होना चाहिए।
- नागरिकता के अधिकारों को जारी रखना।
- कानून द्वारा नागरिकता के अधिकार को नियंत्रित करने के लिए संसद।
- एक व्यक्ति जो भारत के क्षेत्र में पैदा हुआ था या
- एक व्यक्ति जिसके माता-पिता भारत के क्षेत्र में पैदा हुये थे या
- एक व्यक्ति जो आम तौर पर पांच साल से कम समय के लिए भारत के क्षेत्र में निवासी रहा है
➤ भारतीय संविधान अनुच्छेद 5 (Article 5) - संविधान के प्रारंभ पर नागरिकता
विवरणइस संविधान के प्रारंभ पर प्रत्येक व्यक्ति जिसका भारत के राज्यक्षेत्र में अधिवास है और—
- जो भारत के राज्यक्षेत्र में जन्मा था, या
- जिसके माता या पिता में से कोई भारत के राज्यक्षेत्र में जन्मा था, या
- जो ऐसे प्रारंभ से ठीक पहले कम से कम पाँच वर्ष तक भारत के राज्यक्षेत्र में मामूली तौर से निवासी रहा है, भारत का नागरिक होगा।
➤ भारतीय संविधान अनुच्छेद 6 (Article 6) -
पाकिस्तान से भारत को प्रव्रजन करने वाले कुछ व्यक्तियों के नागरिकता के अधिकार
विवरण
अनुच्छेद 5 में किसी बात के होते हए भी, कोई व्यक्ति जिसने ऐसे राज्यक्षेत्र से जो इस समय पाकिस्तान के अंतर्गत है,
भारत के राज्यक्षेत्र को प्रव्रजन किया है, इस संविधान के प्रारंभ पर भारत का नागरिक समझा जाएगा--
(क) यदि वह अथवा उसके माता या पिता में से कोई अथवा उसके पितामह या पितामही या मातामह या मातामही में से कोई (मूल रूप में यथा अधिनियमित) भारत शासन अधिनियम, 1935 में परिभाषित भारत में जन्मा था; और
(ख) (i) जबकि वह व्यक्ति ऐसा है जिसने 19 जुलाई, 1948 से पहले इस प्रकार प्रव्रजन किया है तब यदि वह अपने प्रव्रजन की तारीख से भारत के राज्यक्षेत्र में मामूली तौर से निवासी रहा है; या
(ii) जबकि वह व्यक्ति ऐसा है जिसने 19 जुलाई, 1948 को या उसके पश्चात् इस प्रकार प्रव्रजन किया है तब यदि वह नागरिकता प्राप्ति के लिए भारत डोमिनियन की सरकार द्वारा विहित प्ररूप में और रीति से उसके द्वारा इस संविधान के प्रारंभ से पहले ऐसे अधिकारी को, जिसे उस सरकार ने इस प्रयोजन के लिए नियुक्त किया है, आवेदन किए जाने पर उस अधिकारी द्वारा भारत का नागरिक रजिस्ट्रीकृत कर लिया गया है :
परंतु यदि कोई व्यक्ति अपने आवेदन की तारीख से ठीक पहले कम से कम छह मास भारत के राज्यक्षेत्र में निवासी नहीं रहा है तो वह इस प्रकार रजिस्ट्रीकृत नहीं किया जाएगा।
➤ भारतीय संविधान अनुच्छेद 7 (Article 7) -
भारत के राज्यक्षेत्र को प्रव्रजन किया है, इस संविधान के प्रारंभ पर भारत का नागरिक समझा जाएगा--
(क) यदि वह अथवा उसके माता या पिता में से कोई अथवा उसके पितामह या पितामही या मातामह या मातामही में से कोई (मूल रूप में यथा अधिनियमित) भारत शासन अधिनियम, 1935 में परिभाषित भारत में जन्मा था; और
(ख) (i) जबकि वह व्यक्ति ऐसा है जिसने 19 जुलाई, 1948 से पहले इस प्रकार प्रव्रजन किया है तब यदि वह अपने प्रव्रजन की तारीख से भारत के राज्यक्षेत्र में मामूली तौर से निवासी रहा है; या
(ii) जबकि वह व्यक्ति ऐसा है जिसने 19 जुलाई, 1948 को या उसके पश्चात् इस प्रकार प्रव्रजन किया है तब यदि वह नागरिकता प्राप्ति के लिए भारत डोमिनियन की सरकार द्वारा विहित प्ररूप में और रीति से उसके द्वारा इस संविधान के प्रारंभ से पहले ऐसे अधिकारी को, जिसे उस सरकार ने इस प्रयोजन के लिए नियुक्त किया है, आवेदन किए जाने पर उस अधिकारी द्वारा भारत का नागरिक रजिस्ट्रीकृत कर लिया गया है :
परंतु यदि कोई व्यक्ति अपने आवेदन की तारीख से ठीक पहले कम से कम छह मास भारत के राज्यक्षेत्र में निवासी नहीं रहा है तो वह इस प्रकार रजिस्ट्रीकृत नहीं किया जाएगा।
➤ भारतीय संविधान अनुच्छेद 7 (Article 7) -
पाकिस्तान को प्रव्रजन करने वाले कुछ व्यक्तियों के नागरिकता के अधिकार
विवरण
अनुच्छेद 5 और अनुच्छेद 6 में किसी बात के होते हुए भी, कोई व्यक्ति जिसने 1 मार्च, 1947 के पश्चात् भारत के राज्यक्षेत्र से ऐसे राज्यक्षेत्र को, जो इस समय पाकिस्तान के अंतर्गत है, प्रव्रजन किया है, भारत का नागरिक नहीं समझा जाएगा :
परंतु इस अनुच्छेद की कोई बात ऐसे व्यक्ति को लागू नहीं होगी जो ऐसे राज्यक्षेत्र को, जो इस समय पाकिस्तान के अंतर्गत है, प्रव्रजन करने के पश्चात् भारत के राज्यक्षेत्र को ऐसी अनुज्ञा के अधीन लौट आया है जो पुनर्वास के लिए या स्थायी रूप से लौटने के लिए किसी विधि के प्राधिकार द्वारा या उसके अधीन दी गई है और प्रत्येक ऐसे व्यक्ति के बारे में अनुच्छेद 6 के खंड (ख) के प्रयोजनों के लिए यह समझा जाएगा कि उसने भारत के राज्यक्षेत्र को 19 जुलाई, 1948 के पश्चात् प्रव्रजन किया ह
अनुच्छेद 5 और अनुच्छेद 6 में किसी बात के होते हुए भी, कोई व्यक्ति जिसने 1 मार्च, 1947 के पश्चात् भारत के राज्यक्षेत्र से ऐसे राज्यक्षेत्र को, जो इस समय पाकिस्तान के अंतर्गत है, प्रव्रजन किया है, भारत का नागरिक नहीं समझा जाएगा :
परंतु इस अनुच्छेद की कोई बात ऐसे व्यक्ति को लागू नहीं होगी जो ऐसे राज्यक्षेत्र को, जो इस समय पाकिस्तान के अंतर्गत है, प्रव्रजन करने के पश्चात् भारत के राज्यक्षेत्र को ऐसी अनुज्ञा के अधीन लौट आया है जो पुनर्वास के लिए या स्थायी रूप से लौटने के लिए किसी विधि के प्राधिकार द्वारा या उसके अधीन दी गई है और प्रत्येक ऐसे व्यक्ति के बारे में अनुच्छेद 6 के खंड (ख) के प्रयोजनों के लिए यह समझा जाएगा कि उसने भारत के राज्यक्षेत्र को 19 जुलाई, 1948 के पश्चात् प्रव्रजन किया ह
➤ भारतीय संविधान अनुच्छेद 8 (Article 8) -
भारत के बाहर रहने वाले भारतीय उद्भव के कुछ व्यक्तियों के नागरिकता के अधिकार
विवरण
अनुच्छेद 5 में किसी बात के होते हुए भी, कोई व्यक्ति जो या जिसके माता या पिता में से कोई अथवा पितामह या पितामही या मातामह या मातामही में से कोई (मूल रूप में यथा अधिनियमित) भारत शासन अधिनियम, 1935 में परिभाषित भारत में जन्मा था और जो इस प्रकार परिभाषित भारत के बाहर किसी देश में मामूली तौर से निवास कर रहा है, भारत का नागरिक समझा जाएगा, यदि वह नागरिकता प्राप्ति के लिए भारत डोमिनियन की सरकार द्वारा या भारत सरकार द्वारा विहित प्ररूप में और रीति से अपने द्वारा उस देश में, जहाँ वह तत्समय निवास कर रहा है, भारत के राजनयिक या कौंसलीय प्रतिनिधि को इस संविधान के प्रारंभ से पहले या उसके पश्चात् आवेदन किए जाने पर ऐसे राजनयिक या कौंसलीय प्रतिनिधि द्वारा भारत का नागरिक रजिस्ट्रीकृत कर लिया गया है।
➤ भारतीय संविधान अनुच्छेद 9 (Article 9) -
अनुच्छेद 5 में किसी बात के होते हुए भी, कोई व्यक्ति जो या जिसके माता या पिता में से कोई अथवा पितामह या पितामही या मातामह या मातामही में से कोई (मूल रूप में यथा अधिनियमित) भारत शासन अधिनियम, 1935 में परिभाषित भारत में जन्मा था और जो इस प्रकार परिभाषित भारत के बाहर किसी देश में मामूली तौर से निवास कर रहा है, भारत का नागरिक समझा जाएगा, यदि वह नागरिकता प्राप्ति के लिए भारत डोमिनियन की सरकार द्वारा या भारत सरकार द्वारा विहित प्ररूप में और रीति से अपने द्वारा उस देश में, जहाँ वह तत्समय निवास कर रहा है, भारत के राजनयिक या कौंसलीय प्रतिनिधि को इस संविधान के प्रारंभ से पहले या उसके पश्चात् आवेदन किए जाने पर ऐसे राजनयिक या कौंसलीय प्रतिनिधि द्वारा भारत का नागरिक रजिस्ट्रीकृत कर लिया गया है।
➤ भारतीय संविधान अनुच्छेद 9 (Article 9) -
विदेशी राज्य की नागरिकता स्वेच्छा से अर्जित करने वाले व्यक्तियों का नागरिक न होना
विवरण
यदि किसी व्यक्ति ने किसी विदेशी राज्य की नागरिकता स्वेच्छा से अर्जित कर ली है तो वह अनुच्छेद 5 के आधार पर भारत का नागरिक नहीं होगा अथवा अनुच्छेद 6 या अनुच्छेद 8 के आधार पर भारत का नागरिक नहीं समझा जाएगा।
यदि किसी व्यक्ति ने किसी विदेशी राज्य की नागरिकता स्वेच्छा से अर्जित कर ली है तो वह अनुच्छेद 5 के आधार पर भारत का नागरिक नहीं होगा अथवा अनुच्छेद 6 या अनुच्छेद 8 के आधार पर भारत का नागरिक नहीं समझा जाएगा।
➤भारतीय संविधान अनुच्छेद 10 (Article 10 ) - नागरिकता के अधिकारों का बना रहना
विवरण
प्रत्येक व्यक्ति, जो इस भाग के पूर्वगामी उपबंधों में से किसी के अधीन भारत का नागरिक है या समझा जाता है, ऐसी विधि के उपबंधों के अधीन रहते हुए, जो संसद द्वारा बनाई जाए, भारत का नागरिक बना रहेगा।
➤ भारतीय संविधान अनुच्छेद 11 (Article 11) -
भाग III
इस भाग में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो, 'राज्य' के अंतर्गत भारत की सरकार और संसद तथा राज्यों में से प्रत्येक राज्य की सरकार और विधान-मंडल तथा भारत के राज्यक्षेत्र के भीतर या भारत सरकार के नियंत्रण के अधीन सभी स्थानीय और अन्य प्राधिकारी हैं।
➤ भारतीय संविधान अनुच्छेद 13 (Article 13) -
संविधान (पहला संशोधन) अधिनियम, 1951 की धारा 2 द्वारा जोड़ा गय
(1) राज्य के अधीन किसी पद पर नियोजन या नियुक्ति से संबंधित विषयों में सभी नागरिकों के लिए अवसर की समता होगी।
(2) राज्य के अधीन किसी नियोजन या पद के संबंध में केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, उद्भव, जन्मस्थान, निवास या इनमें से किसी के आधार पर न तो कोई नागरिक अपात्र होगा और न उससे विभेद किया जाएगा।
(3) इस अनुच्छेद की कोई बात संसद को कोई ऐसी विधि बनाने से निवारित नहीं करेगी जो [किसी राज्य या संघ राज्यक्षेत्र की सरकार के या उसमें के किसी स्थानीय या अन्य प्राधिकारी के अधीन वाले किसी वर्ग या वर्र्गों के पद पर नियोजन या नियुक्ति के संबंध में ऐसे नियोजन या नियुक्ति से पहले उस राज्य या संघ राज्यक्षेत्र के भीतर निवास विषयक कोई अपेक्षा विहित करती है।
(4) इस अनुच्छेद की कोई बात राज्य को पिछड़े हुए नागरिकों के किसी वर्ग के पक्ष में, जिनका प्रतिनिधित्व राज्य की राय में राज्य के अधीन सेवाओं में पर्याप्त नहीं है, नियुक्तियों या पदों के आरक्षण के लिए उपबंध करने से निवारित नहीं करेगी।
अनुच्छेद 17 में 'अस्पृश्यता' का अंत किया जाता है और उसका किसी भी रूप में आचरण निषिद्ध किया जाता है। 'अस्पृश्यता' से उपजी किसी निर्योषयता को लागू करना अपराध होगा जो विधि के अनुसार दंडनीय होगा।
अनुच्छेद 17- अस्पृश्यता का अंत
अस्पृश्यता पारंपरिक हिंदू समाज से जुड़ा एक खतरा और सामाजिक बुराई है। यह अनादि काल से डॉ. बी.आर. अम्बेडकर जैसे समाज सुधारकों द्वारा किए गए विभिन्न प्रयासों के बावजूद चली आ रही है; और अनुच्छेद 17 के तहत हमारे संविधान में अस्पृश्यता के उन्मूलन पर प्रावधान होने के बावजूद, बुराई अभी भी हमारे देश में चलन में है।
(1) सभी नागरिकों को--
(3) उक्त खंड के उपखंड (ख) की कोई बात उक्त उपखंड द्वारा दिए गए अधिकार के प्रयोग पर [भारत की प्रभुता और अखंडता] याट लोक व्यवस्था के हितों में युक्तियुक्त निर्बन्धन जहाँ तक कोई विद्यमान विधि अधिरोपित करती है वहाँ तक उसके प्रवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी या वैसे निर्बन्धन अधिरोपित करने वाली कोई विधि बनाने से राज्य को निवारित नहीं करेगी।
(4) उक्त खंड के उपखंड (ग) की कोई बात उक्त उपखंड द्वारा दिए गए अधिकार के प्रयोग पर [भारत की प्रभुता और अखंडता] याट लोक व्यवस्था या सदाचार के हितों में युक्तियुक्त निर्बन्धन जहाँ तक कोई विद्यमान विधि अधिरोपित करती है वहाँ तक उसके प्रवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी या वैसे निर्बन्धन अधिरोपित करने वाली कोई विधि बनाने से राज्य को निवारित नहीं करेगी।
(5) उक्त खंड के [उपखंड (घ) और उपखंड (ङ)] की कोई बात उक्त उपखंडों द्वारा दिए गए अधिकारों के प्रयोग पर साधारण जनता के हितों में या किसी अनुसूचित जनजाति के हितों के संरक्षण के लिए युक्तियुक्त निर्बन्धन जहाँ तक कोई विद्यमान विधि अधिरोपित करती है वहाँ तक उसके प्रवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी या वैसे निर्बन्धन अधिरोपित करने वाली कोई विधि बनाने से राज्य को निवारित नहीं करेगी।
(6) उक्त खंड के उपखंड (छ) की कोई बात उक्त उपखंड द्वारा दिए गए अधिकार के प्रयोग पर साधारण जनता के हितों में युक्तियुक्त निर्बन्धन जहाँ तक कोई विद्यमान विधि अधिरोपित करती है वहाँ तक उसके प्रवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी या वैसे निर्बन्धन अधिरोपित करने वाली कोई विधि बनाने से राज्य को निवारित नहीं करेगी और विशिष्टतया [उक्त उपखंड की कोई बात--
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किसी व्यक्ति को उसके प्राण या दैहिक स्वतंत्रता से विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही वंचित किया जाएगा, अन्यथा नहीं।
अनुच्छेद 21- प्राण और दैहिक स्वतंत्रता का संरक्षण भारत का संविधान अपने दृष्टिकोण और प्रस्तुति में उपन्यास है। भारत के विशाल और विविध देश होने के नाते, कई पहलुओं और मुद्दों पर ध्यान दिया जाना ज़रूरी है। भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य में इसके नागरिक सबसे महत्वपूर्ण हैं और यह कानून बनाने वालों का कर्तव्य है कि वे यह सुनिश्चित करें कि कानून किसी भी वर्गीकरण जैसे जाति, रंग या पंथ के प्रत्येक व्यक्ति की समान रूप से रक्षा करता है।
भारत का संविधान भाग III में जीवन का अधिकार (राइट टू लाइफ) और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार देता है। कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 द्वारा दिया गया है। यह अधिकार नागरिकों और गैर-नागरिकों दोनों के लिए उपलब्ध है।
'राइट टू लाइफ' क्या है?
अनुच्छेद 21, जो जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार का प्रतीक है, वह अधिकार है जिससे अन्य सभी अधिकार निकलते हैं। जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार के बिना, अन्य सभी मौलिक अधिकार बिल्कुल निरर्थक होंगे।
जब हम अनुच्छेद 21 के अर्थ और निहितार्थों का विश्लेषण करते हैं, तो हम इस पर विचार कर सकते हैं कि यह दो अलग-अलग अधिकारों का प्रतीक है जो वास्तव में अविभाज्य हैं और साथ-साथ चलते हैं। ये दो अधिकार हैं, i) जीवन का अधिकार, और ii) व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार।
अनुच्छेद 21 के तहत उल्लिखित जीवन ’केवल जीने या सांस लेने की शारीरिक क्रिया को नहीं दर्शाता है। भारतीय संविधान में इसका और भी गहरा अर्थ है जो इसके साथ और भी कई अधिकारों को जोड़ता है, जैसे:
राज्य, छह वर्ष से चौदह वर्ष तक की आयु वाले सभी बालकों के लिए निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा देने का ऐसी रीति में, जो राज्य विधि द्वारा, अवधारित करे, उपबंध करगा।
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संविधान (छियासीवाँ संशोधन) अधिनियम, 2002 की धारा 2 द्वारा (अधिसूचना की तारीख से) अंतःस्थापित किया जाएगा।
(1) किसी व्यक्ति को जो गिरपतार किया गया है, ऐसी गिरफ्तारी के कारणों से यथाशीघ्र अवगत कराए बिना अभिरक्षा में निरुद्ध नहीं रखा जाएगा या अपनी रुचि के विधि व्यवसायी से परामर्श करने और प्रतिरक्षा कराने के अधिकार से वंचित नहीं रखा जाएगा।
(2) प्रत्येक व्यक्ति को, जो गिरफ्तार किया गया है और अभिरक्षा में निरुद्ध रखा गया है, गिरफ्तारी के स्थान से मजिस्ट्रेट के न्यायालय तक यात्रा के लिए आवश्यक समय को छोड़कर ऐसी गिरफ्तारी से चौबीस घंटे की अवधि में निकटतम मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया जाएगा और ऐसे किसी व्यक्ति को मजिस्ट्रेट के प्राधिकार के बिना उक्त अवधि से अधिक अवधि के लिए अभिरक्षा में निरुद्ध नहीं रखा जाएगा।
(3) खंड (1) और खंड (2) की कोई बात किसी ऐसे व्यक्ति को लागू नहीं होगी जो--
(क) ऐसे व्यक्तियों से, जो उच्च न्यायालय के न्यायाधीश हैं या न्यायाधीश रहे हैं या न्यायाधीश नियुक्त होने के लिए अर्हित हैं, मिलकर बने सलाहकार बोर्ड ने तीन मास की उक्त अवधि की समाप्ति से पहले यह प्रतिवेदन नहीं दिया है कि उसकी राय में ऐसे निरोध के लिए पर्याप्त कारण हैं :
परंतु इस उपखंड की कोई बात किसी व्यक्ति का उस अधिकतम अवधि से अधिक अवधि के लिए निरुद्ध किया जाना प्राधिकृत नहीं करेगी जो खंड (7) के उपखंड (ख) के अधीन संसद द्वारा बनाई गई विधि द्वारा विहित की गई है ; या
(ख) ऐसे व्यक्ति को खंड (7) के उपखंड (क) और उपखंड (ख) के अधीन संसद द्वारा बनाई गई विधि के उपबंधों के अनुसार निरुद्ध नहीं किया जाता है।
(5) निवारक निरोध का उपबंध करने वाली किसी विधि के अधीन किए गए आदेश के अनुसरण में जब किसी व्यक्ति को निरुद्ध किया जाता है तब आदेश करने वाला प्राधिकारी यथाशक्य शीघ्र उस व्यक्ति को यह संसूचित करेगा कि वह आदेश किन आधारों पर किया गया है और उस आदेश के विरुद्ध अभ्यावेदन करने के लिए उसे शीघ्रातिशीघ्र अवसर देगा।
(6) खंड (5) की किसी बात से ऐसा आदेश, जो उस खंड में निर्दिष्ट है, करने वाले प्राधिकारी के लिए ऐसे तनयों को प्रकट करना आवश्यक नहीं होगा जिन्हें प्रकट करना ऐसा प्राधिकारी लोकहित के विरुद्ध समझता है।
(7) संसद विधि द्वारा विहित कर सकेगी कि--
संविधान (चवालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 3 के प्रवर्तित होने पर, अनुच्छेद 22 उस अधिनियम की धारा 3 में निदेशित रूप में संशोधित हो जाएगा। उस अधिनियम की धारा 3 का पाठ परिशिष्ट 3 में देखि
चौदह वर्ष से कम आयु के किसी बालक को किसी कारखाने या खान में काम करने के लिए नियोजित नहीं किया जाएगा या किसी अन्य परिसंकटमय नियोजन में नहीं लगाया जाएगा।
➤ भारतीय संविधान अनुच्छेद 25 (Article 25) -
लोक व्यवस्था, सदाचार और स्वास्नय के अधीन रहते हुए, प्रत्येक धार्मिक संप्रदाय या उसके किसी अनुभाग को -
➤ भारतीय संविधान अनुच्छेद 27 (Article 27) -
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संविधान (पहला संशोधन) अधिनियम, 1951 की धारा 4 द्वारा (भूतलक्षी प्रभाव से) अंतःस्थापित।
संविधान (चौथा संशोधन) अधिनियम, 1955 की धारा 3 द्वारा (भूतलक्षी प्रभाव से) खंड (1) के स्थान पर प्रतिस्थापित।
संविधान (चवालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 7 द्वारा (20-6-1979 से) ''अनुच्छेद 14, अनुच्छेद 19 या अनुच्छेद 31'' के स्थान पर प्रतिस्थापित।
संविधान (सत्रहवाँ संशोधन) अधिनियम, 1964 की धारा 2 द्वारा अंतःस्थापित।
संविधान (सत्रहवाँ संशोधन) अधिनियम, 1964 की धारा 2 द्वारा (भूतलक्षी प्रभाव से) उपखंड (क) के स्थान पर प्रतिस्थापित।
मद्रास राज्य (नाम-परिवर्तन) अधिनियम, 1968 (1968 का 53) की धारा 4 द्वारा (14-1-1969 से) ''मद्रास'' के स्थान पर प्रतिस्थापित।
संविधान (चौथा संशोधन) अधिनियम, 1955 की धारा 3 द्वारा (भूतलक्षी प्रभाव से) अंतःस्थापित।
➤ भारतीय संविधान अनुच्छेद 31B (Article 31B) -
प्रत्येक व्यक्ति, जो इस भाग के पूर्वगामी उपबंधों में से किसी के अधीन भारत का नागरिक है या समझा जाता है, ऐसी विधि के उपबंधों के अधीन रहते हुए, जो संसद द्वारा बनाई जाए, भारत का नागरिक बना रहेगा।
➤ भारतीय संविधान अनुच्छेद 11 (Article 11) -
संसद द्वारा नागरिकता के अधिकार का विधि द्वारा विनियमन किया जाना
विवरण
इस भाग के पूर्वगामी उपबंधों की कोई बात नागरिकता के अर्जन और समाप्ति के तथा नागरिकता से संबंधित अन्य सभी विषयों के संबंध में उपबंध करने की संसद की शक्ति का अल्पीकरण नहीं करेगी।
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इस भाग के पूर्वगामी उपबंधों की कोई बात नागरिकता के अर्जन और समाप्ति के तथा नागरिकता से संबंधित अन्य सभी विषयों के संबंध में उपबंध करने की संसद की शक्ति का अल्पीकरण नहीं करेगी।
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➦वायुमंडल | Atmosphere | Atmosphere In Hindi |
भाग III
(अनुच्छेद 12 से 35): मौलिक अधिकार
संविधान का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा। मौलिक अधिकार नागरिक के मूल अधिकार हैं और उनके खिलाफ सभी कानून सीधे या अप्रत्यक्ष रूप से उनकी रक्षा के लिए बनाये जाते हैं। यद्यपि यह हिस्सा विभिन्न विरोधाभासों, संशोधनों और राजनीतिक बहसों के लिए प्रवण रहा है, लेकिन यह केशवनंद भारती मामले में यह कहा गया था कि यह हिस्सा संविधान के "मूल संरचना" में शामिल है और इसे केवल सकारात्मक और प्रगतिशील कारणों से संशोधित किया जा सकता है। हालांकि, ये अधिकार कानून द्वारा लगाए गए उचित प्रतिबंधों के अधीन हैं। आपातकाल के मामले में कुछ अधिकारों को दूर किया जा सकता है। निम्नलिखित पैराग्राफ में मौलिक अधिकारों को समझाया गया है:
➤ भारतीय संविधान अनुच्छेद 12 (Article 12) - परिभाषा
विवरणइस भाग में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो, 'राज्य' के अंतर्गत भारत की सरकार और संसद तथा राज्यों में से प्रत्येक राज्य की सरकार और विधान-मंडल तथा भारत के राज्यक्षेत्र के भीतर या भारत सरकार के नियंत्रण के अधीन सभी स्थानीय और अन्य प्राधिकारी हैं।
➤ भारतीय संविधान अनुच्छेद 13 (Article 13) -
मूल अधिकारों से असंगत या उनका अल्पीकरण करने वाली विधियाँ
विवरण
(1) इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले भारत के राज्यक्षेत्र में प्रवृत्त सभी विधियाँ उस मात्रा तक शून्य होंगी जिस तक वे इस भाग के उपबंधों से असंगत हैं।
(2) राज्य ऐसी कोई विधि नहीं बनाएगा जो इस भाग द्वारा प्रदत्त अधिकारों को छीनती है या न्यून करती है और इस खंड के उल्लंघन में बनाई गई प्रत्येक विधि उल्लंघन की मात्रा तक शून्य होगी।
(3) इस अनुच्छेद में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो,--
[(4) इस अनुच्छेद की कोई बात अनुच्छेद 368 के अधीन किए गए इस संविधान के किसी संशोधन को लागू नहीं होगी।
अनुच्छेद 14- कानून के समक्ष समता
समानता का अधिकार भारत के लोगों को दिया गया पहला मौलिक अधिकार है। संविधान का अनुच्छेद 14-18 भारत के प्रत्येक नागरिक को इस अधिकार की गारंटी देता है। समानता भारतीय लोकतंत्र के शानदार आधारशिलाओं में से एक है। इस प्रकार इस अधिकार को किसी व्यक्ति के सार्वजनिक कार्यालयों या स्थानों या सार्वजनिक मामलों में पहुंच में भेदभाव न करने का नकारात्मक अधिकार माना जाता था। इसने सार्वजनिक नीतियों और सार्वजनिक शक्तियों के प्रयोग से उत्पन्न होने वाली मौजूदा असमानताओं को भी ध्यान में नहीं रखा। भारतीय संविधान के निर्माता इस प्रकार के उपक्रम से संतुष्ट नहीं थे। उन्हें देश में व्यापक सामाजिक और आर्थिक असमानताओं के बारे में पता था, जिन्हें हजारों वर्षों तक सार्वजनिक नीतियों और धर्म और अन्य सामाजिक मानदंडों और प्रथाओं द्वारा समर्थित सार्वजनिक शक्ति के व्यायाम द्वारा अनुमोदित किया गया था।
अनुच्छेद 14 के तहत कानून के समक्ष समानता
अनुच्छेद 14 प्रत्येक व्यक्ति को कानून के समक्ष समानता या कानूनों के समान संरक्षण के अधिकार की गारंटी देता है। इंग्लिश कॉमन लॉ से ली गई पहली अभिव्यक्ति 'कानून के समक्ष समानता’, कुछ हद तक एक नकारात्मक अवधारणा है। यह भारत के क्षेत्र के भीतर सभी व्यक्तियों की समानता की घोषणा है, जिसका अर्थ है किसी व्यक्ति के पक्ष में किसी विशेष विशेषाधिकार का अभाव। प्रत्येक व्यक्ति, जो भी उसका पद हो, सामान्य न्यायालयों के अधिकार क्षेत्र के अधीन होता है। इसका अर्थ है कि कोई भी व्यक्ति कानून से ऊपर नहीं है और यह कि प्रत्येक व्यक्ति, उच्च या निम्न, भूमि के सामान्य कानून के अधीन है।
दूसरी अभिव्यक्ति, "कानूनों का समान संरक्षण", जो कि पहले अभिव्यक्ति का एक आधार है, और अमेरिकी संविधान के चौदहवें संशोधन के पहले खंड के अंतिम भाग पर आधारित है, निर्देश देता है कि भारत क्षेत्र के भीतर के सभी लोगों को समान सुरक्षा प्रदान की जाएगी पक्षपात या भेदभाव के बिना। यह एक अधिक सकारात्मक अवधारणा है (क्योंकि यह राज्य से सकारात्मक कार्रवाई की अपेक्षा करता है) समान परिस्थितियों में उपचार की समानता प्रदान करता है। दूसरे शब्दों में, सभी व्यक्ति जो समान परिस्थितियों में हैं, वे नियमों के एक ही समूह द्वारा शासित होंगे। यह एक समान उपचार की गारंटी है। इसके अनुसार एक कानून उन सभी व्यक्तियों के लिए एक समान लागू किया जाना चाहिए जो औदे में समान हैं। नियम यह है कि समान लोगों को एक जैसा माना जाना चाहिए और न कि इसके विपरीत व्यवहार किया जाना चाहिए। यह कहा गया है कि कानून का समान संरक्षण समान कानूनों के संरक्षण या गारंटी की प्रतिज्ञा है।
अनुच्छेद 14 में 'किसी भी व्यक्ति', प्राकृतिक या कृत्रिम शब्द का उपयोग किया गया है, चाहे वह नागरिक हो या विदेशी, प्रावधान के तहत सुरक्षा का हकदार है।
अनुच्छेद 14 के गुणवत्ता के नियम का अपवाद
अनुच्छेद 359 के तहत, जब आपातकाल की उद्घोषणा चल रही है, उस अवधि के दौरान अनुच्छेद 14 को निलंबित किया जा सकता है। अनुच्छेद 361 प्रदान करता है कि राष्ट्रपति और राज्यपाल कार्यालय की शक्तियों और कर्तव्यों के अभ्यास और प्रदर्शन के लिए किसी भी न्यायालय के लिए जवाबदेह नहीं होंगे। वे कुछ शर्तों को पूरा करने तक आपराधिक और नागरिक कार्यवाही से प्रतिरक्षा का आनंद लेते हैं।
अनुच्छेद 14 उचित वर्गीकरण की अनुमति देता है पर जाती सम्बंधित कानून पर रोक लगाता है
➤ भारतीय संविधान अनुच्छेद 15 (Article 15) -
(1) इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले भारत के राज्यक्षेत्र में प्रवृत्त सभी विधियाँ उस मात्रा तक शून्य होंगी जिस तक वे इस भाग के उपबंधों से असंगत हैं।
(2) राज्य ऐसी कोई विधि नहीं बनाएगा जो इस भाग द्वारा प्रदत्त अधिकारों को छीनती है या न्यून करती है और इस खंड के उल्लंघन में बनाई गई प्रत्येक विधि उल्लंघन की मात्रा तक शून्य होगी।
(3) इस अनुच्छेद में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो,--
- (3 क) ''विधि'' के अंतर्गत भारत के राज्यक्षेत्र में विधि का बल रखने वाला कोई अध्यादेश, आदेश, उपविधि, नियम, विनियम, अधिसूचना, रूढ़ि या प्रथा है ;
- (3 ख) ''प्रवृत्त विधि'' के अंतर्गत भारत के राज्यक्षेत्र में किसी विधान-मंडल या अन्य सक्षम प्राधिकारी द्वारा इस संविधान के प्रारंभ से पहले पारित या बनाई गई विधि है जो पहले ही निरसित नहीं कर दी गई है, चाहे ऐसी कोई विधि या उसका कोई भाग उस समय पूर्णतया या विशिष्ट क्षेत्रों में प्रवर्तन में नहीं है।
[(4) इस अनुच्छेद की कोई बात अनुच्छेद 368 के अधीन किए गए इस संविधान के किसी संशोधन को लागू नहीं होगी।
➤ भारतीय संविधान अनुच्छेद 14 (Article 14) - विधि के समक्ष समता
विवरणराज्य, भारत के राज्यक्षेत्र में किसी व्यक्ति को विधि के समक्ष समता से या विधियों के समान संरक्षण से वंचित नहीं करेगा।अनुच्छेद 14- कानून के समक्ष समता
समानता का अधिकार भारत के लोगों को दिया गया पहला मौलिक अधिकार है। संविधान का अनुच्छेद 14-18 भारत के प्रत्येक नागरिक को इस अधिकार की गारंटी देता है। समानता भारतीय लोकतंत्र के शानदार आधारशिलाओं में से एक है। इस प्रकार इस अधिकार को किसी व्यक्ति के सार्वजनिक कार्यालयों या स्थानों या सार्वजनिक मामलों में पहुंच में भेदभाव न करने का नकारात्मक अधिकार माना जाता था। इसने सार्वजनिक नीतियों और सार्वजनिक शक्तियों के प्रयोग से उत्पन्न होने वाली मौजूदा असमानताओं को भी ध्यान में नहीं रखा। भारतीय संविधान के निर्माता इस प्रकार के उपक्रम से संतुष्ट नहीं थे। उन्हें देश में व्यापक सामाजिक और आर्थिक असमानताओं के बारे में पता था, जिन्हें हजारों वर्षों तक सार्वजनिक नीतियों और धर्म और अन्य सामाजिक मानदंडों और प्रथाओं द्वारा समर्थित सार्वजनिक शक्ति के व्यायाम द्वारा अनुमोदित किया गया था।
अनुच्छेद 14 के तहत कानून के समक्ष समानता
अनुच्छेद 14 प्रत्येक व्यक्ति को कानून के समक्ष समानता या कानूनों के समान संरक्षण के अधिकार की गारंटी देता है। इंग्लिश कॉमन लॉ से ली गई पहली अभिव्यक्ति 'कानून के समक्ष समानता’, कुछ हद तक एक नकारात्मक अवधारणा है। यह भारत के क्षेत्र के भीतर सभी व्यक्तियों की समानता की घोषणा है, जिसका अर्थ है किसी व्यक्ति के पक्ष में किसी विशेष विशेषाधिकार का अभाव। प्रत्येक व्यक्ति, जो भी उसका पद हो, सामान्य न्यायालयों के अधिकार क्षेत्र के अधीन होता है। इसका अर्थ है कि कोई भी व्यक्ति कानून से ऊपर नहीं है और यह कि प्रत्येक व्यक्ति, उच्च या निम्न, भूमि के सामान्य कानून के अधीन है।
दूसरी अभिव्यक्ति, "कानूनों का समान संरक्षण", जो कि पहले अभिव्यक्ति का एक आधार है, और अमेरिकी संविधान के चौदहवें संशोधन के पहले खंड के अंतिम भाग पर आधारित है, निर्देश देता है कि भारत क्षेत्र के भीतर के सभी लोगों को समान सुरक्षा प्रदान की जाएगी पक्षपात या भेदभाव के बिना। यह एक अधिक सकारात्मक अवधारणा है (क्योंकि यह राज्य से सकारात्मक कार्रवाई की अपेक्षा करता है) समान परिस्थितियों में उपचार की समानता प्रदान करता है। दूसरे शब्दों में, सभी व्यक्ति जो समान परिस्थितियों में हैं, वे नियमों के एक ही समूह द्वारा शासित होंगे। यह एक समान उपचार की गारंटी है। इसके अनुसार एक कानून उन सभी व्यक्तियों के लिए एक समान लागू किया जाना चाहिए जो औदे में समान हैं। नियम यह है कि समान लोगों को एक जैसा माना जाना चाहिए और न कि इसके विपरीत व्यवहार किया जाना चाहिए। यह कहा गया है कि कानून का समान संरक्षण समान कानूनों के संरक्षण या गारंटी की प्रतिज्ञा है।
अनुच्छेद 14 में 'किसी भी व्यक्ति', प्राकृतिक या कृत्रिम शब्द का उपयोग किया गया है, चाहे वह नागरिक हो या विदेशी, प्रावधान के तहत सुरक्षा का हकदार है।
अनुच्छेद 14 के गुणवत्ता के नियम का अपवाद
अनुच्छेद 359 के तहत, जब आपातकाल की उद्घोषणा चल रही है, उस अवधि के दौरान अनुच्छेद 14 को निलंबित किया जा सकता है। अनुच्छेद 361 प्रदान करता है कि राष्ट्रपति और राज्यपाल कार्यालय की शक्तियों और कर्तव्यों के अभ्यास और प्रदर्शन के लिए किसी भी न्यायालय के लिए जवाबदेह नहीं होंगे। वे कुछ शर्तों को पूरा करने तक आपराधिक और नागरिक कार्यवाही से प्रतिरक्षा का आनंद लेते हैं।
अनुच्छेद 14 उचित वर्गीकरण की अनुमति देता है पर जाती सम्बंधित कानून पर रोक लगाता है
➦ भारत के संविधान संशोधन Constitution of India amendment
➤ भारतीय संविधान अनुच्छेद 15 (Article 15) -
धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर विभेद का प्रतिषेध
विवरण
(1) राज्य, किसी नागरिक के विरुद्ध के केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्मस्थान या इनमें से किसी के आधार पर कोई विभेद नहीं करेगा।
(2) कोई नागरिक केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्मस्थान या इनमें से किसी के आधार पर--
के संबंध में किसी भी निर्योषयता, दायित्व, निर्बन्धन या शर्त के अधीन नहीं होगा।
(3) इस अनुच्छेद की कोई बात राज्य को स्त्रियों और बालकों के लिए कोई विशेष उपबंध करने से निवारित नहीं करेगी।
[(4) इस अनुच्छेद की या अनुच्छेद 29 के खंड (2) की कोई बात राज्य को सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े हुए नागरिकों के किन्हीं वर्गों की उन्नति के लिए या अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए कोई विशेष उपबंध करने से निवारित नहीं करेगी।
(1) राज्य, किसी नागरिक के विरुद्ध के केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्मस्थान या इनमें से किसी के आधार पर कोई विभेद नहीं करेगा।
(2) कोई नागरिक केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्मस्थान या इनमें से किसी के आधार पर--
- (2 क) दुकानों, सार्वजनिक भोजनालयों, होटलों और सार्वजनिक मनोरंजन के स्थानों में प्रवेश, या
- (2 ख) पूर्णतः या भागतः राज्य-निधि से पोषित या साधारण जनता के प्रयोग के लिए समर्पित कुओं, तालाबों, स्नानघाटों, सड़कों और सार्वजनिक समागम के स्थानों के उपयोग,
के संबंध में किसी भी निर्योषयता, दायित्व, निर्बन्धन या शर्त के अधीन नहीं होगा।
(3) इस अनुच्छेद की कोई बात राज्य को स्त्रियों और बालकों के लिए कोई विशेष उपबंध करने से निवारित नहीं करेगी।
[(4) इस अनुच्छेद की या अनुच्छेद 29 के खंड (2) की कोई बात राज्य को सामाजिक और शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े हुए नागरिकों के किन्हीं वर्गों की उन्नति के लिए या अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए कोई विशेष उपबंध करने से निवारित नहीं करेगी।
संविधान (पहला संशोधन) अधिनियम, 1951 की धारा 2 द्वारा जोड़ा गय
➤ भारतीय संविधान अनुच्छेद 16 (Article 16) - लोक नियोजन के विषय में अवसर की समता
विवरण(1) राज्य के अधीन किसी पद पर नियोजन या नियुक्ति से संबंधित विषयों में सभी नागरिकों के लिए अवसर की समता होगी।
(2) राज्य के अधीन किसी नियोजन या पद के संबंध में केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, उद्भव, जन्मस्थान, निवास या इनमें से किसी के आधार पर न तो कोई नागरिक अपात्र होगा और न उससे विभेद किया जाएगा।
(3) इस अनुच्छेद की कोई बात संसद को कोई ऐसी विधि बनाने से निवारित नहीं करेगी जो [किसी राज्य या संघ राज्यक्षेत्र की सरकार के या उसमें के किसी स्थानीय या अन्य प्राधिकारी के अधीन वाले किसी वर्ग या वर्र्गों के पद पर नियोजन या नियुक्ति के संबंध में ऐसे नियोजन या नियुक्ति से पहले उस राज्य या संघ राज्यक्षेत्र के भीतर निवास विषयक कोई अपेक्षा विहित करती है।
(4) इस अनुच्छेद की कोई बात राज्य को पिछड़े हुए नागरिकों के किसी वर्ग के पक्ष में, जिनका प्रतिनिधित्व राज्य की राय में राज्य के अधीन सेवाओं में पर्याप्त नहीं है, नियुक्तियों या पदों के आरक्षण के लिए उपबंध करने से निवारित नहीं करेगी।
- (4क) इस अनुच्छेद की कोई बात राज्य को अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के पक्ष में, जिनका प्रतिनिधित्व राज्य की राय में राज्य के अधीन सेवाओं में पर्याप्त नहीं है, राज्य के अधीन सेवाओं में [किसी वर्ग या वर्गों के पदों पर, पारिणामिक ज्येष्ठता सहित],प्रोन्नति के मामलों मेंआरक्षण के लिए उपबंध करने से निवारित नहीं करेगी।
- (4ख) इस अनुच्छेद की कोई बात राज्य को किसी वर्ष में किन्हीं न भरी गई ऐसी रिक्तियों को, जो खंड (4) या खंड (4क) के अधीन किए गए आरक्षण के लिए किसी उपबंध के अनुसार उस वर्ष में भरी जाने के लिए आरक्षित हैं, किसी उत्तरवर्ती वर्ष या वर्षों में भरे जाने के लिए पृथक् वर्ग की रिक्तियों के रूप में विचार करने से निवारित नहीं करेगी और ऐसे वर्ग की रिक्तियों पर उस वर्ष की रिक्तियों के साथ जिसमें वे भरी जा रही हैं, उस वर्ष की रिक्तियों की कुल संख्या के संबंध में पचास प्रतिशत आरक्षण की अधिकतम सीमा का अवधारण करने के लिए विचार नहीं किया जाएगा।
➤ भारतीय संविधान अनुच्छेद 17 (Article 17) - अस्पृश्यता का अंत
विवरणअनुच्छेद 17 में 'अस्पृश्यता' का अंत किया जाता है और उसका किसी भी रूप में आचरण निषिद्ध किया जाता है। 'अस्पृश्यता' से उपजी किसी निर्योषयता को लागू करना अपराध होगा जो विधि के अनुसार दंडनीय होगा।
अनुच्छेद 17- अस्पृश्यता का अंत
अस्पृश्यता पारंपरिक हिंदू समाज से जुड़ा एक खतरा और सामाजिक बुराई है। यह अनादि काल से डॉ. बी.आर. अम्बेडकर जैसे समाज सुधारकों द्वारा किए गए विभिन्न प्रयासों के बावजूद चली आ रही है; और अनुच्छेद 17 के तहत हमारे संविधान में अस्पृश्यता के उन्मूलन पर प्रावधान होने के बावजूद, बुराई अभी भी हमारे देश में चलन में है।
➤ भारतीय संविधान अनुच्छेद 18 (Article 18) - उपाधियों का अंत
विवरण- राज्य, सेना या विद्या संबंधी सम्मान के सिवाय और कोई उपाधि प्रदान नहीं करेगा।
- भारत का कोई नागरिक किसी विदेशी राज्य से कोई उपाधि स्वीकार नहीं करेगा।
- कोई व्यक्ति, जो भारत का नागरिक नहीं है, राज्य के अधीन लाभ या विश्वास के किसी पद को धारण करते हुए किसी विदेशी राज्य से कोई उपाधि राष्ट्रपति की सहमति के बिना स्वीकार नहीं करेगा।
- राज्य के अधीन लाभ या विश्वास का पद धारण करने वाला कोई व्यक्ति किसी विदेशी राज्य से या उसके अधीन किसी रूप में कोई भेंट, उपलब्धि या पद राष्ट्रपति की सहमति के बिना स्वीकार नहीं करे
➤ भारतीय संविधान अनुच्छेद 19 (Article 19) - वाक्-स्वातंत्र्य आदि विषयक कुछ अधिकारों का संरक्षण
विवरण(1) सभी नागरिकों को--
- (क) वाक्-स्वातंत्र्य और अभिव्यक्ति-स्वातंत्र्य का,
- (ख) शांतिपूर्वक और निरायुध सम्मेलन का,
- (ग) संगम या संघ बनाने का,
- (घ) भारत के राज्यक्षेत्र में सर्वत्र अबाध संचरण का,
- (ङ) भारत के राज्यक्षेत्र के किसी भाग में निवास करने और बस जाने का, [और]
- (छ) कोई वृत्ति, उपजीविका, व्यापार या कारोबार करने का अधिकार होगा।
(3) उक्त खंड के उपखंड (ख) की कोई बात उक्त उपखंड द्वारा दिए गए अधिकार के प्रयोग पर [भारत की प्रभुता और अखंडता] याट लोक व्यवस्था के हितों में युक्तियुक्त निर्बन्धन जहाँ तक कोई विद्यमान विधि अधिरोपित करती है वहाँ तक उसके प्रवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी या वैसे निर्बन्धन अधिरोपित करने वाली कोई विधि बनाने से राज्य को निवारित नहीं करेगी।
(4) उक्त खंड के उपखंड (ग) की कोई बात उक्त उपखंड द्वारा दिए गए अधिकार के प्रयोग पर [भारत की प्रभुता और अखंडता] याट लोक व्यवस्था या सदाचार के हितों में युक्तियुक्त निर्बन्धन जहाँ तक कोई विद्यमान विधि अधिरोपित करती है वहाँ तक उसके प्रवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी या वैसे निर्बन्धन अधिरोपित करने वाली कोई विधि बनाने से राज्य को निवारित नहीं करेगी।
(5) उक्त खंड के [उपखंड (घ) और उपखंड (ङ)] की कोई बात उक्त उपखंडों द्वारा दिए गए अधिकारों के प्रयोग पर साधारण जनता के हितों में या किसी अनुसूचित जनजाति के हितों के संरक्षण के लिए युक्तियुक्त निर्बन्धन जहाँ तक कोई विद्यमान विधि अधिरोपित करती है वहाँ तक उसके प्रवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी या वैसे निर्बन्धन अधिरोपित करने वाली कोई विधि बनाने से राज्य को निवारित नहीं करेगी।
(6) उक्त खंड के उपखंड (छ) की कोई बात उक्त उपखंड द्वारा दिए गए अधिकार के प्रयोग पर साधारण जनता के हितों में युक्तियुक्त निर्बन्धन जहाँ तक कोई विद्यमान विधि अधिरोपित करती है वहाँ तक उसके प्रवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी या वैसे निर्बन्धन अधिरोपित करने वाली कोई विधि बनाने से राज्य को निवारित नहीं करेगी और विशिष्टतया [उक्त उपखंड की कोई बात--
- (i) कोई वृत्ति, उपजीविका, व्यापार या कारबार करने के लिए आवश्यक वृत्तिक या तकनीकी अर्हताओं से, या
- (ii) राज्य द्वारा या राज्य के स्वामित्व या नियंत्रण में किसी निगम द्वारा कोई व्यापार, कारबार, उद्योग या सेवा, नागरिकों का पूर्णतः या भागतः अपवर्जन करके या अन्यथा, चलाए जाने से,
=============================
- संविधान (चवालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 2 द्वारा (20-6-1979 से) अंतःस्थापित।
- संविधान (चवालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 2 द्वारा (20-6-1979 से) उपखंड (च) का लोप किया गया।
- संविधान (पहला संशोधन) अधिनियम, 1951 की धारा 3 द्वारा (भूतलक्षी प्रभाव से) खंड (2) के स्थान पर प्रतिस्थापित।
- संविधान (सोलहवाँ संशोधन) अधिनियम, 1963 की धारा 2 द्वारा अंतःस्थापित।
- संविधान (चवालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 2 द्वारा (20-6-1979 से) ''उपखंड (घ), उपखंड (ङ) और उपखंड (च)'' के स्थान पर प्रतिस्थापित।
- संविधान (पहला संशोधन) अधिनियम, 1951 की धारा 3 द्वारा कुछ शद्बों के स्थान पर प्रतिस्थापित।
➤ भारतीय संविधान अनुच्छेद 20 (Article 20) - अपराधों के लिए दोषसिद्धि के संबंध में संरक्षण
विवरण- कोई व्यक्ति किसी अपराध के लिए तब तक सिद्धदोष नहीं ठहराया जाएगा, जब तक कि उसने ऐसा कोई कार्य करने के समय, जो अपराध के रूप में आरोपित है, किसी प्रवृत्त विधि का अतिक्रमण नहीं किया है या उससे अधिक शास्ति का भागी नहीं होगा जो उस अपराध के किए जाने के समय प्रवृत्त विधि के अधीन अधिरोपित की जा सकती थी।
- किसी व्यक्ति को एक ही अपराध के लिए एक बार से अधिक अभियोजित और दंडित नहीं किया जाएगा।
- किसी अपराध के लिए अभियुक्त किसी व्यक्ति को स्वयं अपने विरुद्ध साक्षी होने के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा।
➤ भारतीय संविधान अनुच्छेद 21 (Article 21) - प्राण और दैहिक स्वतंत्रता का संरक्षण
विवरणकिसी व्यक्ति को उसके प्राण या दैहिक स्वतंत्रता से विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही वंचित किया जाएगा, अन्यथा नहीं।
अनुच्छेद 21- प्राण और दैहिक स्वतंत्रता का संरक्षण भारत का संविधान अपने दृष्टिकोण और प्रस्तुति में उपन्यास है। भारत के विशाल और विविध देश होने के नाते, कई पहलुओं और मुद्दों पर ध्यान दिया जाना ज़रूरी है। भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य में इसके नागरिक सबसे महत्वपूर्ण हैं और यह कानून बनाने वालों का कर्तव्य है कि वे यह सुनिश्चित करें कि कानून किसी भी वर्गीकरण जैसे जाति, रंग या पंथ के प्रत्येक व्यक्ति की समान रूप से रक्षा करता है।
भारत का संविधान भाग III में जीवन का अधिकार (राइट टू लाइफ) और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार देता है। कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 द्वारा दिया गया है। यह अधिकार नागरिकों और गैर-नागरिकों दोनों के लिए उपलब्ध है।
'राइट टू लाइफ' क्या है?
अनुच्छेद 21, जो जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार का प्रतीक है, वह अधिकार है जिससे अन्य सभी अधिकार निकलते हैं। जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार के बिना, अन्य सभी मौलिक अधिकार बिल्कुल निरर्थक होंगे।
जब हम अनुच्छेद 21 के अर्थ और निहितार्थों का विश्लेषण करते हैं, तो हम इस पर विचार कर सकते हैं कि यह दो अलग-अलग अधिकारों का प्रतीक है जो वास्तव में अविभाज्य हैं और साथ-साथ चलते हैं। ये दो अधिकार हैं, i) जीवन का अधिकार, और ii) व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार।
अनुच्छेद 21 के तहत उल्लिखित जीवन ’केवल जीने या सांस लेने की शारीरिक क्रिया को नहीं दर्शाता है। भारतीय संविधान में इसका और भी गहरा अर्थ है जो इसके साथ और भी कई अधिकारों को जोड़ता है, जैसे:
- मानव गरिमा के साथ जीने का अधिकार;
- आजीविका का अधिकार;
- स्वास्थ्य का अधिकार;
- प्रदूषण मुक्त हवा का अधिकार;
- गुणवत्तापूर्ण जीवन जीने का अधिकार;
- विदेश जाने का अधिकार;
- एकान्तता का अधिकार;
- एकान्त कारावास के खिलाफ अधिकार;
- विलंबित निष्पादन के खिलाफ अधिकार;
- आश्रय का अधिकार;
- हिरासत में मृत्यु के खिलाफ अधिकार;
- सार्वजनिक फांसी के खिलाफ अधिकार; तथा
- कुछ भी और सब कुछ जो एक गरिमापूर्ण जीवन के मापदंड को पूरा करता है।
➤ भारतीय संविधान अनुच्छेद 21A (Article 21A) - शिक्षा का अधिकार
विवरणराज्य, छह वर्ष से चौदह वर्ष तक की आयु वाले सभी बालकों के लिए निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा देने का ऐसी रीति में, जो राज्य विधि द्वारा, अवधारित करे, उपबंध करगा।
===================
संविधान (छियासीवाँ संशोधन) अधिनियम, 2002 की धारा 2 द्वारा (अधिसूचना की तारीख से) अंतःस्थापित किया जाएगा।
➤ भारतीय संविधान अनुच्छेद 22 (Article 22) - कुछ दशाओं में गिरपतारी और निरोध से संरक्षण
विवरण(1) किसी व्यक्ति को जो गिरपतार किया गया है, ऐसी गिरफ्तारी के कारणों से यथाशीघ्र अवगत कराए बिना अभिरक्षा में निरुद्ध नहीं रखा जाएगा या अपनी रुचि के विधि व्यवसायी से परामर्श करने और प्रतिरक्षा कराने के अधिकार से वंचित नहीं रखा जाएगा।
(2) प्रत्येक व्यक्ति को, जो गिरफ्तार किया गया है और अभिरक्षा में निरुद्ध रखा गया है, गिरफ्तारी के स्थान से मजिस्ट्रेट के न्यायालय तक यात्रा के लिए आवश्यक समय को छोड़कर ऐसी गिरफ्तारी से चौबीस घंटे की अवधि में निकटतम मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया जाएगा और ऐसे किसी व्यक्ति को मजिस्ट्रेट के प्राधिकार के बिना उक्त अवधि से अधिक अवधि के लिए अभिरक्षा में निरुद्ध नहीं रखा जाएगा।
(3) खंड (1) और खंड (2) की कोई बात किसी ऐसे व्यक्ति को लागू नहीं होगी जो--
- (क) तत्समय शत्रु अन्यदेशीय है या
- (ख) निवारक निरोध का उपबंध करने वाली किसी विधि के अधीन गिरपतार या निरुद्ध किया गया है।
(क) ऐसे व्यक्तियों से, जो उच्च न्यायालय के न्यायाधीश हैं या न्यायाधीश रहे हैं या न्यायाधीश नियुक्त होने के लिए अर्हित हैं, मिलकर बने सलाहकार बोर्ड ने तीन मास की उक्त अवधि की समाप्ति से पहले यह प्रतिवेदन नहीं दिया है कि उसकी राय में ऐसे निरोध के लिए पर्याप्त कारण हैं :
परंतु इस उपखंड की कोई बात किसी व्यक्ति का उस अधिकतम अवधि से अधिक अवधि के लिए निरुद्ध किया जाना प्राधिकृत नहीं करेगी जो खंड (7) के उपखंड (ख) के अधीन संसद द्वारा बनाई गई विधि द्वारा विहित की गई है ; या
(ख) ऐसे व्यक्ति को खंड (7) के उपखंड (क) और उपखंड (ख) के अधीन संसद द्वारा बनाई गई विधि के उपबंधों के अनुसार निरुद्ध नहीं किया जाता है।
(5) निवारक निरोध का उपबंध करने वाली किसी विधि के अधीन किए गए आदेश के अनुसरण में जब किसी व्यक्ति को निरुद्ध किया जाता है तब आदेश करने वाला प्राधिकारी यथाशक्य शीघ्र उस व्यक्ति को यह संसूचित करेगा कि वह आदेश किन आधारों पर किया गया है और उस आदेश के विरुद्ध अभ्यावेदन करने के लिए उसे शीघ्रातिशीघ्र अवसर देगा।
(6) खंड (5) की किसी बात से ऐसा आदेश, जो उस खंड में निर्दिष्ट है, करने वाले प्राधिकारी के लिए ऐसे तनयों को प्रकट करना आवश्यक नहीं होगा जिन्हें प्रकट करना ऐसा प्राधिकारी लोकहित के विरुद्ध समझता है।
(7) संसद विधि द्वारा विहित कर सकेगी कि--
- (क) किन परिस्थितियों के अधीन और किस वर्ग या वर्गों के मामलों में किसी व्यक्ति को निवारक निरोध का उपबंध करने वाली किसी विधि के अधीन तीन मास से अधिक अवधि के लिए खंड (4) के उपखंड (क) के उपबंधों के अनुसार सलाहकार बोर्ड की राय प्राप्त किए बिना निरुद्ध किया जा सकेगा ;
- (ख) किसी वर्ग या वर्गों के मामलों में कितनी अधिकतम अवधि के लिए किसी व्यक्ति को निवारक निरोध का उपबंध करने वाली किसी विधि के अधीन निरुद्ध किया जा सकेगा ; और
- (ग) खंड (4) के उपखंड (क) के अधीन की जाने वाली जांच में सलाहकार बोर्ड द्वारा अनुसरण की जाने वाली प्रक्रिया क्या होगी।]
संविधान (चवालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 3 के प्रवर्तित होने पर, अनुच्छेद 22 उस अधिनियम की धारा 3 में निदेशित रूप में संशोधित हो जाएगा। उस अधिनियम की धारा 3 का पाठ परिशिष्ट 3 में देखि
➤ भारतीय संविधान अनुच्छेद 23 (Article 23) - मानव के दुर्व्यापार और बलात्श्रम का प्रतिषेध
विवरण- मानव का दुर्व्यापार और बेगार तथा इसी प्रकार का अन्य बलात्श्रम प्रतिषिद्ध किया जाता है और इस उपबंध का कोई भी उल्लंघन अपराध होगा जो विधि के अनुसार दंडनीय होगा।
- इस अनुच्छेद की कोई बात राज्य को सार्वजनिक प्रयोजनों के लिए अनिवार्य सेवा अधिरोपित करने से निवारित नहीं करेगी। ऐसी सेवा अधिरोपित करने में राज्य केवल धर्म, मूलवंश, जाति या वर्ग या इनमें से किसी के आधार पर कोई विभेद नहीं करेगा।
➤ भारतीय संविधान अनुच्छेद 24 (Article 24) - कारखानों आदि में बालकों के नियोजन का प्रतिषेध
विवरणचौदह वर्ष से कम आयु के किसी बालक को किसी कारखाने या खान में काम करने के लिए नियोजित नहीं किया जाएगा या किसी अन्य परिसंकटमय नियोजन में नहीं लगाया जाएगा।
➤ भारतीय संविधान अनुच्छेद 25 (Article 25) -
अंतःकरण की और धर्म की अबाध रूप से मानने, आचरण और प्रचार करने की स्वतंत्रता
विवरण
(1) लोक व्यवस्था, सदाचार और स्वास्नय तथा इस भाग के अन्य उपबंधों के अधीन रहते हुए, सभी व्यक्तियों को अंतःकरण की स्वतंत्रता का और धर्म के अबाध रूप से मानने, आचरण करने और प्रचार करने का समान हक होगा।
(2) इस अनुच्छेद की कोई बात किसी ऐसी विद्यमान विधि के प्रवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी या राज्य को कोई ऐसी विधि बनाने से निवारित नहीं करेगी जो--
स्पष्टीकरण 2--खंड (2) के उपखंड (ख) में हिंदुओं के प्रति निर्देश का यह अर्थ लगाया जाएगा कि उसके अंतर्गत सिक्ख, जैन या बौद्ध धर्म के मानने वाले व्यक्तियों के प्रति निर्देश है और हिंदुओं की धार्मिक संस्थाओं के प्रति निर्देश का अर्थ तदनुसार लगाया जाएगा।
(1) लोक व्यवस्था, सदाचार और स्वास्नय तथा इस भाग के अन्य उपबंधों के अधीन रहते हुए, सभी व्यक्तियों को अंतःकरण की स्वतंत्रता का और धर्म के अबाध रूप से मानने, आचरण करने और प्रचार करने का समान हक होगा।
(2) इस अनुच्छेद की कोई बात किसी ऐसी विद्यमान विधि के प्रवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी या राज्य को कोई ऐसी विधि बनाने से निवारित नहीं करेगी जो--
- (क) धार्मिक आचरण से संबद्ध किसी आर्थिक, वित्तीय, राजनैतिक या अन्य लौकिक क्रियाकलाप का विनियमन या निर्बन्धन करती है;
- (ख) सामाजिक कल्याण और सुधार के लिए या सार्वजनिक प्रकार की हिंदुओं की धार्मिक संस्थाओं को हिंदुओं के सभी वर्गों और अनुभागों के लिए खोलने का उपबंध करती है।
स्पष्टीकरण 2--खंड (2) के उपखंड (ख) में हिंदुओं के प्रति निर्देश का यह अर्थ लगाया जाएगा कि उसके अंतर्गत सिक्ख, जैन या बौद्ध धर्म के मानने वाले व्यक्तियों के प्रति निर्देश है और हिंदुओं की धार्मिक संस्थाओं के प्रति निर्देश का अर्थ तदनुसार लगाया जाएगा।
➤ भारतीय संविधान अनुच्छेद 26 (Article 26) - धार्मिक कार्यों के प्रबंध की स्वतंत्रता
विवरणलोक व्यवस्था, सदाचार और स्वास्नय के अधीन रहते हुए, प्रत्येक धार्मिक संप्रदाय या उसके किसी अनुभाग को -
- (क) धार्मिक और पूर्त प्रयोजनों के लिए संस्थाओं की स्थापना और पोषण का,
- (ख) अपने धर्म विषयक कार्यों का प्रबंध करने का,
- (ग) जंगम और स्थावर संपत्ति के अर्जन और स्वामित्व का, और
- (घ) ऐसी संपत्ति का विधि के अनुसार प्रशासन करने का, अधिकार होगा।
➤ भारतीय संविधान अनुच्छेद 27 (Article 27) -
किसी विशिष्ट धर्म की अभिवृद्धि के लिए करों के संदाय के बारे में स्वतंत्रता
विवरण
किसी भी व्यक्ति को ऐसे करों का संदाय करने के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा जिनके आगम किसी विशिष्ट धर्म या धार्मिक संप्रदाय की अभिवृद्धि या पोषण में व्यय करने के लिए विनिर्दिष्ट रूप से विनियोजित किए जाते हैं।
➤ भारतीय संविधान अनुच्छेद 28 (Article 28) -
किसी भी व्यक्ति को ऐसे करों का संदाय करने के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा जिनके आगम किसी विशिष्ट धर्म या धार्मिक संप्रदाय की अभिवृद्धि या पोषण में व्यय करने के लिए विनिर्दिष्ट रूप से विनियोजित किए जाते हैं।
➤ भारतीय संविधान अनुच्छेद 28 (Article 28) -
कुछ शिक्षा संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा या धार्मिक उपासना में उपस्थित होने के बारे में स्वतंत्रता
विवरण
➤ भारतीय संविधान अनुच्छेद 30 (Article 30) -
- राज्य-निधि से पूर्णतः पोषित किसी शिक्षा संस्था में कोई धार्मिक शिक्षा नहीं दी जाएगी।
- खंड (1) की कोई बात ऐसी शिक्षा संस्था को लागू नहीं होगी जिसका प्रशासन राज्य करता है किंतु जो किसी ऐसे विन्यास या न्यास के अधीन स्थापित हुई है जिसके अनुसार उस संस्था में धार्मिक शिक्षा देना आवश्यक है।
- राज्य से मान्यता प्राप्त या राज्य-निधि से सहायता पाने वाली शिक्षा संस्था में उपस्थित होने वाले किसी व्यक्ति को ऐसी संस्था में दी जाने वाली धार्मिक शिक्षा में भाग लेने के लिए या ऐसी संस्था में या उससे संलग्न स्थान में की जाने वाली धार्मिक उपासना में उपस्थित होने के लिए तब तक बाध्य नहीं किया जाएगा जब तक कि उस व्यक्ति ने, या यदि वह अवयस्क है तो उसके संरक्षक ने, इसके लिए अपनी सहमति नहीं दे दी है।
➤ भारतीय संविधान अनुच्छेद 29 (Article 29) - अल्पसंख्यक-वर्गों के हितों का संरक्षण
विवरण- (29 -1) भारत के राज्यक्षेत्र या उसके किसी भाग के निवासी नागरिकों के किसी अनुभाग को, जिसकी अपनी विशेष भाषा, लिपि या संस्कृति है, उसे बनाए रखने का अधिकार होगा।
- (29 -2) राज्य द्वारा पोषित या राज्य-निधि से सहायता पाने वाली किसी शिक्षा संस्था में प्रवेश से किसी भी नागरिक को केवल धर्म, मूलवंश, जाति, भाषा या इनमें से किसी के आधार पर वंचित नहीं किया जाएगा।
➤ भारतीय संविधान अनुच्छेद 30 (Article 30) -
शिक्षा संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन करने का अल्पसंख्यक-वर्गों का अधिकार
विवरण
(1) धर्म या भाषा पर आधारित सभी अल्पसंख्यक-वर्र्गों को अपनी रुचि की शिक्षा संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन का अधिकार होगा।
31संविधान (चवालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 6 द्वारा (20-6-1979 से) निरसित।
➤ भारतीय संविधान अनुच्छेद 31A (Article 31A) -
(1) धर्म या भाषा पर आधारित सभी अल्पसंख्यक-वर्र्गों को अपनी रुचि की शिक्षा संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन का अधिकार होगा।
- (1क) खंड (1) में निर्दिष्ट किसी अल्पसंख्यक-वर्ग द्वारा स्थापित और प्रशासित शिक्षा संस्था की संपत्ति के अनिवार्य अर्जन के लिए उपबंध करने वाली विधि बनाते समय, राज्य यह सुनिश्चित करेगा कि ऐसी संपत्ति के अर्जन के लिए ऐसी विधि द्वारा नियत या उसके अधीन अवधारित रकम इतनी हो कि उस खंड के अधीन प्रत्याभूत अधिकार निर्बन्धित या निराकृत न हो जाए।
➤ भारतीय संविधान अनुच्छेद 31 (Article 31) - संपत्ति का अनिवार्य अर्जन
विवरण31संविधान (चवालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 6 द्वारा (20-6-1979 से) निरसित।
➤ भारतीय संविधान अनुच्छेद 31A (Article 31A) -
संपदाओं आदि के अर्जन के लिए उपबंध करने वाली विधियों की व्यावृत्ति
विवरण
(1) अनुच्छेद
13 में अंतर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी,--
(क) ''संपदा'' पद का किसी स्थानीय क्षेत्र के संबंध में वही अर्थ है जो उस पद का या उसके समतुल्य स्थानीय पद का उस क्षेत्र में प्रवृत्त भू-धृतियों से संबंधित विद्यमान विधि में है और इसके अंतर्गत –
(1) अनुच्छेद
13 में अंतर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी,--
- (क) किसी संपदा के या उसमें किन्हीं अधिकारों के राज्य द्वारा अर्जन के लिए या किन्हीं ऐसे अधिकारों के निर्वापन या उनमें परिवर्तन के लिए, या
- (ख) किसी संपत्ति का प्रबंध लोकहित में या उस संपत्ति का उचित प्रबंध सुनिश्चित करने के उद्देश्य से परिसीमित अवधि के लिए राज्य द्वारा ले लिए जाने के लिए, या
- (ग) दो या अधिक निगमों को लोकहित में या उन निगमों में से किसी का उचित प्रबंध सुनिश्चित करने के उद्देश्य से समामेलित करने के लिए, या
- (घ) निगमों के प्रबंध अभिकर्ताओं, सचिवों और कोषाध्यक्षों, प्रबंध निदेशकों, निदेशकों या प्रबंधकों के किन्हीं अधिकारों या उनके शेयरधारकों के मत देने के किन्हीं अधिकारों के निर्वापन या उनमें परिवर्तन के लिए, या
- (ङ) किसी खनिज या खनिज तेल की खोज करने या उसे प्राप्त करने के प्रयोजन के लिए किसी करार, पट्टे या अनुज्ञप्ति के आधार पर प्रोद्भूत होने वाले किन्हीं अधिकारों के निर्वापन या उनमें परिवर्तन के लिए या किसी ऐसे करार, पट्टे या अनुज्ञप्ति को समय से पहले समाप्त करने या रद्द करने के लिए,
(क) ''संपदा'' पद का किसी स्थानीय क्षेत्र के संबंध में वही अर्थ है जो उस पद का या उसके समतुल्य स्थानीय पद का उस क्षेत्र में प्रवृत्त भू-धृतियों से संबंधित विद्यमान विधि में है और इसके अंतर्गत –
- (i) कोई जागीर, इनाम या मुआफी अथवा वैसा ही अन्य अनुदान और तमिलनाडु और केरल राज्यों में कोई जन्मअधिकार भी होगा;
- (ii) रैयतबाड़ी, बंदोबस्त के अधीन धृत कोई भूमि भी होगी;
- (iii) कृषि के प्रयोजनों के लिए या उसके सहायक प्रयोजनों के लिए धृत या पट्टे पर दी गई कोई भूमि भी होगी, जिसके अंतर्गत बंजर भूमि, वन भूमि, चरागाह या भूमि के कृषकों, कृषि श्रमिकों और ग्रामीण कारीगरों के अधिभाग में भवनों और अन्य संरचनाओं के स्थल हैं ;
(ख) ''अधिकार'' पद के अंतर्गत, किसी संपदा के संबंध में, किसी स्वत्वधारी, उप-स्वत्वधारी, अवर स्वत्वधारी, भू-धृतिधारक, रैयत, अवर रैयत या अन्य मध्यवर्ती में निहित कोई अधिकार और भू-राजस्व के संबंध में कोई अधिकार या विशेषाधिकार होंगे।
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संविधान (पहला संशोधन) अधिनियम, 1951 की धारा 4 द्वारा (भूतलक्षी प्रभाव से) अंतःस्थापित।
संविधान (चौथा संशोधन) अधिनियम, 1955 की धारा 3 द्वारा (भूतलक्षी प्रभाव से) खंड (1) के स्थान पर प्रतिस्थापित।
संविधान (चवालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 7 द्वारा (20-6-1979 से) ''अनुच्छेद 14, अनुच्छेद 19 या अनुच्छेद 31'' के स्थान पर प्रतिस्थापित।
संविधान (सत्रहवाँ संशोधन) अधिनियम, 1964 की धारा 2 द्वारा अंतःस्थापित।
संविधान (सत्रहवाँ संशोधन) अधिनियम, 1964 की धारा 2 द्वारा (भूतलक्षी प्रभाव से) उपखंड (क) के स्थान पर प्रतिस्थापित।
मद्रास राज्य (नाम-परिवर्तन) अधिनियम, 1968 (1968 का 53) की धारा 4 द्वारा (14-1-1969 से) ''मद्रास'' के स्थान पर प्रतिस्थापित।
संविधान (चौथा संशोधन) अधिनियम, 1955 की धारा 3 द्वारा (भूतलक्षी प्रभाव से) अंतःस्थापित।
➤ भारतीय संविधान अनुच्छेद 31B (Article 31B) -
कुछ अधिनियमों और विनियमों का विधिमान्यकरण
विवरण
अनुच्छेद 31क में अंतर्विष्ट उपबंधों की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, नवीं अनुसूची में विनिर्दिष्ट अधिनियमों और विनियमों में से और उनके उपबंधों में से कोई इस आधार पर शून्य या कभी शून्य हुआ नहीं समझा जाएगा कि वह अधिनियम, विनियम या उपबंध इस भाग के किन्हीं उपबंधों द्वारा प्रदत्त अधिकारों में से किसी से असंगत है या उसे छीनता है या न्यून करता है और किसी न्यायालय या अधिकरण के किसी प्रतिकूल निर्णय, डिक्री या आदेश के होते हुए भी, उक्त अधिनियमों और विनियमों में से प्रत्येक, उसे निरसित या संशोधित करने की किसी सक्षम विधान-मंडल की शक्ति के अधीन रहते हुए, प्रवृत्त बना रहेगा।
➤ भारतीय संविधान अनुच्छेद 31C (Article 31C) -
अनुच्छेद 31क में अंतर्विष्ट उपबंधों की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, नवीं अनुसूची में विनिर्दिष्ट अधिनियमों और विनियमों में से और उनके उपबंधों में से कोई इस आधार पर शून्य या कभी शून्य हुआ नहीं समझा जाएगा कि वह अधिनियम, विनियम या उपबंध इस भाग के किन्हीं उपबंधों द्वारा प्रदत्त अधिकारों में से किसी से असंगत है या उसे छीनता है या न्यून करता है और किसी न्यायालय या अधिकरण के किसी प्रतिकूल निर्णय, डिक्री या आदेश के होते हुए भी, उक्त अधिनियमों और विनियमों में से प्रत्येक, उसे निरसित या संशोधित करने की किसी सक्षम विधान-मंडल की शक्ति के अधीन रहते हुए, प्रवृत्त बना रहेगा।
➤ भारतीय संविधान अनुच्छेद 31C (Article 31C) -
कुछ निदेशक तत्त्वों को प्रभावी करने वाली विधियों की व्यावृत्ति
विवरण
अनुच्छेद 13 में किसी बात के होते हुए भी, कोई विधि, जो भाग 4 में अधिकथित सभी या किन्हीं तत्त्वों को सुनिश्चित करने के लिए राज्य की नीति को प्रभावी करने वाली है, इस आधार पर शून्य नहीं समझी जाएगी कि वह अनुच्छेद 14 या अनुच्छेद 19 द्वारा प्रदत्त अधिकारों में से किसी से असंगत है या उसे छीनती है या न्यून करती है और कोई विधि, जिसमें यह घोषणा है कि वह ऐसी नीति को प्रभावी करने के लिए है, किसी न्यायालय में इस आधार पर प्रश्नगत नहीं की जाएगी कि वह ऐसी नीति को प्रभावी नहीं करती है :
परंतु जहाँ ऐसी विधि किसी राज्य के विधान-मंडल द्वारा बनाई जाती है वहाँ इस अनुच्छेद के उपबंध उस विधि को तब तक लागू नहीं होंगे जब तक ऐसी विधि को, जो राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित रखी गई है, उसकी अनुमति प्राप्त नहीं हो गई है।
***********************
संविधान (पच्चीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1971 की धारा 3 द्वारा (20-4-1972 से) अंतःस्थापित।
संविधान (बयालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 4 द्वारा (3-1-1977 से) ''अनुच्छेद 39 के खंड (ख) या खंड (ग) में विनिर्दिष्ट सिद्धांतों'' के स्थान पर प्रतिस्थापित। धारा 4 को उच्चतम न्यायालय द्वारा, मिनर्वा मिल्स लि. और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य (1980) 2 एस.सी.सी. 591 में अधिमान्य घोषित कर दिया गया।
संविधान (चवालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 8 द्वारा (20-6-1979 से) ''अनुच्छेद 14, अनुच्छेद 19 या अनुच्छेद 31'' के स्थान पर प्रतिस्थापित।
उच्चतम न्यायालय ने केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973) अनुपूरक एस.सी.आर. 1 में कोष्ठक में दिए गए उपबंध को अधिमान्य घोषित कर दिया है।
➤ भारतीय संविधान अनुच्छेद 32 (Article 32) -
अनुच्छेद 13 में किसी बात के होते हुए भी, कोई विधि, जो भाग 4 में अधिकथित सभी या किन्हीं तत्त्वों को सुनिश्चित करने के लिए राज्य की नीति को प्रभावी करने वाली है, इस आधार पर शून्य नहीं समझी जाएगी कि वह अनुच्छेद 14 या अनुच्छेद 19 द्वारा प्रदत्त अधिकारों में से किसी से असंगत है या उसे छीनती है या न्यून करती है और कोई विधि, जिसमें यह घोषणा है कि वह ऐसी नीति को प्रभावी करने के लिए है, किसी न्यायालय में इस आधार पर प्रश्नगत नहीं की जाएगी कि वह ऐसी नीति को प्रभावी नहीं करती है :
परंतु जहाँ ऐसी विधि किसी राज्य के विधान-मंडल द्वारा बनाई जाती है वहाँ इस अनुच्छेद के उपबंध उस विधि को तब तक लागू नहीं होंगे जब तक ऐसी विधि को, जो राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित रखी गई है, उसकी अनुमति प्राप्त नहीं हो गई है।
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संविधान (पच्चीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1971 की धारा 3 द्वारा (20-4-1972 से) अंतःस्थापित।
संविधान (बयालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 4 द्वारा (3-1-1977 से) ''अनुच्छेद 39 के खंड (ख) या खंड (ग) में विनिर्दिष्ट सिद्धांतों'' के स्थान पर प्रतिस्थापित। धारा 4 को उच्चतम न्यायालय द्वारा, मिनर्वा मिल्स लि. और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य (1980) 2 एस.सी.सी. 591 में अधिमान्य घोषित कर दिया गया।
संविधान (चवालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 8 द्वारा (20-6-1979 से) ''अनुच्छेद 14, अनुच्छेद 19 या अनुच्छेद 31'' के स्थान पर प्रतिस्थापित।
उच्चतम न्यायालय ने केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973) अनुपूरक एस.सी.आर. 1 में कोष्ठक में दिए गए उपबंध को अधिमान्य घोषित कर दिया है।
➤ भारतीय संविधान अनुच्छेद 32 (Article 32) -
इस भाग द्वारा प्रदत्त अधिकारों को प्रवर्तित कराने के लिए उपचार
विवरण
(1) इस भाग द्वारा प्रदत्त अधिकारों को प्रवर्तित कराने के लिए समुचित कार्यवाहियों द्वारा उच्चतम न्यायालय में समावेदन करने का अधिकार प्रत्याभूत किया जाता है।
(2) इस भाग द्वारा प्रदत्त अधिकारों में से किसी को प्रवर्तित कराने के लिए उच्चतम न्यायालय को ऐसे निदेश या आदेश या रिट, जिनके अंतर्गत बंदी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, प्रतिषेध, अधिकार-पृच्छा और उत्प्रेषण रिट हैं, जो भी समुचित हो, निकालने की शक्ति होगी।
(3) उच्चतम न्यायालय को खंड (1) और खंड (2) द्वारा प्रदत्त शक्तियों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, संसद, उच्चतम न्यायालय द्वारा खंड (2) के अधीन प्रयोक्तव्य किन्हीं या सभी शक्तियों का किसी अन्य न्यायालय को अपनी अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के भीतर प्रयोग करने के लिए विधि द्वारा सशक्त कर सकेगी।
(4) इस संविधान द्वारा अन्यथा उपबंधित के सिवाय, इस अनुच्छेद द्वारा प्रत्याभूत अधिकार निलंबित नहीं किया जाएगा।
➤ भारतीय संविधान अनुच्छेद 33 (Article 33) -
(1) इस भाग द्वारा प्रदत्त अधिकारों को प्रवर्तित कराने के लिए समुचित कार्यवाहियों द्वारा उच्चतम न्यायालय में समावेदन करने का अधिकार प्रत्याभूत किया जाता है।
(2) इस भाग द्वारा प्रदत्त अधिकारों में से किसी को प्रवर्तित कराने के लिए उच्चतम न्यायालय को ऐसे निदेश या आदेश या रिट, जिनके अंतर्गत बंदी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, प्रतिषेध, अधिकार-पृच्छा और उत्प्रेषण रिट हैं, जो भी समुचित हो, निकालने की शक्ति होगी।
(3) उच्चतम न्यायालय को खंड (1) और खंड (2) द्वारा प्रदत्त शक्तियों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, संसद, उच्चतम न्यायालय द्वारा खंड (2) के अधीन प्रयोक्तव्य किन्हीं या सभी शक्तियों का किसी अन्य न्यायालय को अपनी अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के भीतर प्रयोग करने के लिए विधि द्वारा सशक्त कर सकेगी।
(4) इस संविधान द्वारा अन्यथा उपबंधित के सिवाय, इस अनुच्छेद द्वारा प्रत्याभूत अधिकार निलंबित नहीं किया जाएगा।
➤ भारतीय संविधान अनुच्छेद 33 (Article 33) -
इस भाग द्वारा प्रदत्त अधिकारों का, बलों आदि को लागू होने में, उपांतरण करने की संसद की शक्ति
विवरण
संसद, विधि द्वारा, अवधारण कर सकेगी कि इस भाग द्वारा प्रदत्त अधिकारों में से कोई,--
(क) सशस्त्र बलों के सदस्यों को, या
(ख) लोक व्यवस्था बनाए रखने का भारसाधन करने वाले बलों के सदस्यों को, या
(ग) आसूचना या प्रति आसूचना के प्रयोजनों के लिए राज्य द्वारा स्थापित किसी ब्यूरो या अन्य संगठन में नियोजित व्यक्तियों को, या
(घ) खंड (क) से खंड (ग) में निर्दिष्ट किसी बल, ब्यूरो या संगठन के प्रयोजनों के लिए स्थापित दूरसंचार प्रणाली में या उसके संबंध में नियोजित व्यक्तियों को,
लागू होने में, किस विस्तार तक निर्बन्धित या निराकृत किया जाए जिससे उनके कर्तव्यों का उचित पालन और उनमें अनुशासन बना रहना सुनिश्चित रहे।
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संविधान (पचासवाँ संशोधन) अधिनियम, 1984 की धारा 2 द्वारा अनुच्छेद 33 के स्थान पर प्रतिस्थापित।
➤ भारतीय संविधान अनुच्छेद 34 (Article 34) -
संसद, विधि द्वारा, अवधारण कर सकेगी कि इस भाग द्वारा प्रदत्त अधिकारों में से कोई,--
(क) सशस्त्र बलों के सदस्यों को, या
(ख) लोक व्यवस्था बनाए रखने का भारसाधन करने वाले बलों के सदस्यों को, या
(ग) आसूचना या प्रति आसूचना के प्रयोजनों के लिए राज्य द्वारा स्थापित किसी ब्यूरो या अन्य संगठन में नियोजित व्यक्तियों को, या
(घ) खंड (क) से खंड (ग) में निर्दिष्ट किसी बल, ब्यूरो या संगठन के प्रयोजनों के लिए स्थापित दूरसंचार प्रणाली में या उसके संबंध में नियोजित व्यक्तियों को,
लागू होने में, किस विस्तार तक निर्बन्धित या निराकृत किया जाए जिससे उनके कर्तव्यों का उचित पालन और उनमें अनुशासन बना रहना सुनिश्चित रहे।
**************************
संविधान (पचासवाँ संशोधन) अधिनियम, 1984 की धारा 2 द्वारा अनुच्छेद 33 के स्थान पर प्रतिस्थापित।
➤ भारतीय संविधान अनुच्छेद 34 (Article 34) -
जब किसी क्षेत्र में सेना विधि प्रवृत्त है तब इस भाग द्वारा प्रदत्त अधिकारों पर निर्बन्धन
विवरण
इस भाग के पूर्वगामी उपबंधों में किसी बात के होते हुए भी, संसद विधि द्वारा संघ या किसी राज्य की सेवा में किसी व्यक्ति की या किसी अन्य व्यक्ति की किसी ऐसे कार्य के संबध में क्षतिपूर्ति कर सकेगी जो उसने भारत के राज्यक्षेत्र के भीतर किसी ऐसे क्षेत्र में, जहाँ सेना विधि प्रवृत्त थी, व्यवस्था के बनाए रखने या पुनःस्थापन के संबंध में किया है या ऐसे क्षेत्र में सेना विधि के अधीन पारित दंडादेश, दिए गए दंड, आदि समपहरण या किए गए अन्य कार्य को विधिमान्य कर सकेगी।
इस संविधान में किसी बात के होते हुए भी,-- 143
(क) संसद को शक्ति होगी और किसी राज्य के विधान-मंडल को शक्ति नहीं होगी कि वह--
इस भाग के पूर्वगामी उपबंधों में किसी बात के होते हुए भी, संसद विधि द्वारा संघ या किसी राज्य की सेवा में किसी व्यक्ति की या किसी अन्य व्यक्ति की किसी ऐसे कार्य के संबध में क्षतिपूर्ति कर सकेगी जो उसने भारत के राज्यक्षेत्र के भीतर किसी ऐसे क्षेत्र में, जहाँ सेना विधि प्रवृत्त थी, व्यवस्था के बनाए रखने या पुनःस्थापन के संबंध में किया है या ऐसे क्षेत्र में सेना विधि के अधीन पारित दंडादेश, दिए गए दंड, आदि समपहरण या किए गए अन्य कार्य को विधिमान्य कर सकेगी।
➤ भारतीय संविधान अनुच्छेद 35 (Article 35) - इस भाग के उपबंधों को प्रभावी करने के लिए विधान
विवरणइस संविधान में किसी बात के होते हुए भी,-- 143
(क) संसद को शक्ति होगी और किसी राज्य के विधान-मंडल को शक्ति नहीं होगी कि वह--
- अनुच्छेद 35A
- (i) जिन विषयों के लिए अनुच्छेद 16 के खंड (3), अनुच्छेद 32 के खंड (3), अनुच्छेद 33 और अनुच्छेद 34 के अधीन संसद विधि द्वारा उपबंध कर सकेगी उनमें से किसी के लिए, और
- (ii) ऐसे कार्यों के लिए, जो इस भाग के अधीन अपराध घोषित किए गए हैं, दंड विहित करने के लिए,-विधि बनाए और संसद इस संविधान के प्रारंभ के पश्चात् यथाशक्य शीघ्र ऐसे कार्यों के लिए, जो उपखंड (iii) में निर्दिष्ट हैं, दंड विहित करने के लिए विधि बनाएगी;
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