राजस्थान में वन सम्पदा In Hindi | Forest Wealth in Rajasthan In Hindi | राजस्थान में वनों का वर्गीकरण

राजस्थान में वन सम्पदा In Hindi | Forest Wealth in Rajasthan In Hindi | राजस्थान में वनों का वर्गीकरण
राजस्थान में वन सम्पदा 

 Forest Wealth in Rajasthan


राजस्थान का अधिकांश क्षेत्र मरुस्थल है अतः यहाँ वनों का क्षेत्रफल भारत के अन्य राज्यों से काम है। पर अरावली एवं दाक्षिण पूर्वी राजस्थान में बहुतायत में वन पाए जाते है।


राजस्थान में वनों की स्थिति


  • राज्य में 32649 वर्ग किमी क्षेत्र यानी लगभग 9.54 प्रतिशत भू-भाग पर वन हैं।
  • अत्यधिक सघन वन क्षेत्र 72 वर्ग किमी का है। जिसका कुल प्रतिशत 0.02 है।
  • सघन वन क्षेत्र 4448 वर्ग किमी का है, जिसका कुल प्रतिशत 1.30 प्रतिशत है।
  • राजस्थान में सर्वाधिक वन उदयपुर में 3118 वर्ग किमी. है जो 23.24 प्रतिशत है।
  • राज्य में न्यूनतम वन चुरू जिले में है।

राजस्थान में वनों का वर्गीकरण


राजस्थान वन अधिनियम 1953 के अनुसार राजस्थान में वनों को तीन भागों में बांटा गया है।


राजस्थान में आरक्षित वन / संरक्षित वन

  • राजस्थान में आरक्षित वन / संरक्षित वन कुल वनों का 38.16 प्रतिशत है इन वनों पर सरकार का पूर्ण स्वामित्व होता है। इनमें किसी वन सम्पदा का दोहन नहीं कर सकते हैं।

राजस्थान में सुरक्षित / रक्षित वन

  • राजस्थान में सुरक्षित / रक्षित वन कुल वनों का 53.36 प्रतिशत है। इन वनों के दोहन के लिए सरकार कुछ नियमों के आधार पर छुट देती है।

राजस्थान में  अवर्गीकृत वन

  • राजस्थान में अवर्गीकृत वन कुल वनों का 8.48 प्रतिशत है। इन वनों में सरकार द्वारा निर्धारित शुल्क जमा करवाकर वन सम्पदा का दोहन किया जा सकता है।

राजस्थान में विभिन्न वन नीतियां

  • भारत में सबसे पहले 1894 में ब्रिटिश सरकार ने वन नीति बनाई। स्वतंत्रता के पश्चात् 1952 में नई वन नीति बनाई गई। इस वन नीति को 1988 में संशोधित किया गया। इस नीति के अनुसार देश के 33 प्रतिशत भू भाग पर वन होने आवश्यक है।

राजस्थान में सर्वप्रथम 1910 में जोधपुर रियासत ने, 1935 में अलवर रियासत ने वन संरक्षण नीति बनाई। स्वतंत्रता के पश्चात् राजस्थान वन अधिनियम 1953 में पारित किया गया।

राजस्थान में वन सम्पदा Forest Wealth in Rajasthan

राजस्थान में वनों के प्रकार


राजस्थान में मुख्यतः 4 प्रकार के वन पाए जाते है।

शुष्क सागवान वन

  • शुष्क सागवान वन बांसवाड़ा, चितौड़गढ़, प्रतापगढ़, उदयपुर, कोटा तथा बारां में मिलते है। 
  • बांसवाड़ा में सर्वाधिक है। 
  • शुष्क सागवान वन कुल वनों का 7 प्रतिशत हैं इन वनों में बरगद, आम,तेंदुु,गुलर महुआ, साल खैर के वृक्ष मिलते है।

शुष्क पतझड़ वन

  • शुष्क पतझड़ वन वन उदयपुर, राजसमंद, चितौड़गढ़, भीलवाड़ा, सवाई माधाुपुर व बुंदी में मिलते हैं।
  • शुष्क पतझड़ वन कुल वनों का 27 प्रतिशत हैं। 
  • शुष्क पतझड़ वनों में छोकड़ा, आम, खैर , ढाक, बांस, जामुन, नीम आदि के वृक्ष मिलते हैं।


उष्ण कटिबंधीय कांटेदार वन

  • उष्ण कटिबंधीय कांटेदार वन पश्चिमी राजस्थान जोधपुर, बीकानेर, जालौर, सीकर, झुंझनू में मिलते हैं।
  • उष्ण कटिबंधीय कांटेदार वनकुल वनों का 65 प्रतिशत हैं  उष्ण कटिबंधीय कांटेदार वनों में बबूल, खेजड़ी, केर, बेर, आदि के वृक्ष मिलते है।



उष्ण कटिबंधीय सदाबहार वन

  • उष्ण कटिबंधीय सदाबहार वन केवल माउंट आबू के चारों तरफ ही पाये जाते हैं। ये सघन वन वर्ष भर हरे – भरे रहते है। उष्ण कटिबंधीय सदाबहार वनो का क्षेत्रफल मात्र 0.4 प्रतिशत है।
  • उष्ण कटिबंधीय सदाबहार वनों में आम, धाक, जामुन, सिरिस, अम्बरतरी, बेल के वृक्ष मिलते है।

राजस्थान में वन सम्पदा

  • बांस – बांसवाड़ा, चितौड़गढ़, उदयपुर, सिरोही।
  • कत्था – उदयपुर, चितौडगढ़, झालावाड़, बूंदी, भरतपूर।
  • तेन्दुपत्ता – उदयपुर, चितौड़गढ़, बारां, कोटा, बूंदी, बांसवाड़ा।
  • खस – भरतपुर, सवाईमाधोपुर, टोंक।
  • महुआ – डुंगरपुर, उदयपुर, चितौड़गढ़,झालावाड़।
  • आंवल या झाबुई – जोधपुर, पाली, सिरोही, उदयपुर।
  • मोम – अलवर, भरतपुर, सिरोही, जोधपुर।
  • गोंद – बाड़मेर का चैहट्टन क्षेत्र।
राजस्थान में वन सम्पदा Forest Wealth in Rajasthan

राजस्थान में वानिकी कार्यक्रम

अरावली वृक्षारोपण योजना

  • अरावली क्षेत्र को हरा भरा करने के लिए जापान सरकार(OECF – overseas economic co. fund) के सहयोग से 01.04.1992 को यह परियोजना 10 जिलों (अलवर,जयपुर,नागौर, झुंझनूं, पाली, सिरोही, उदयपुर, बांसवाड़ा, दौसा, चितौड़गढ़) में 31 मार्च 2000 तक चलाई गई।

मरूस्थल वृक्षारोपण परियोजना

  • मरूस्थल क्षेत्र में मरूस्थल के विस्तार को रोकने के लिए वर्ष 1978 में 10 जिलों में चलाई गई। इस परियोजना में केन्द्र व राज्य सरकार की भागीदारी 75 : 25 की थी।

वानिकी विकास कार्यक्रम

  • वर्ष 1995-96 से लेकर 2002 तक जापान सरकार के सहयोग से यह कार्यक्रम 15 गैर मरूस्थलीय जिलों में चलाया गया।

इंदिरा गांधी क्षेत्र वृक्षारोपण परियोजना

  • सन् 1991 में इंदिरा गाँधी नहर परियोजना की नहरों के किनारे किनारे वृक्षारोपण एवं चारागाह हेतु यह कार्यक्रम जी जापान सरकार के सहयोग से चालाया गया। वर्ष 2002 में यह पूरा हो गया।

राजस्थान वन एवं जैविक विविधता परियोजना

  • वनों की बढोतरी के अलावा वन्य जीवों के संरक्षण हेतु यह कार्यक्रम भी जापान सरकार के सहयोग से 2003 में प्रारम्भ किया गया। इन कार्यक्रमों के अलावा सामाजिक वानिकी योजना 85-86, जनता वन योजन 1996, ग्रामीण वनीकरण समृद्धि योजना 2001-02 एवं नई परियोजना (आदिवासी क्षेत्र में वनों को बढ़ाने हेतु) हरित राजस्थान 2009 अन्य वनीकरण के कार्यक्रम है।

राजस्थान में वनों से जुड़े रोचक तथ्य

  • राजस्थान में सर्वाधिक धोकड़ा के वन है।
  • जैसलमेर के कुलधरा में कैक्टस गार्डन विकसित किया जा रहा है।
  • पलास/ढाक के फूलों से लदा वृक्ष जंगल की आग कहलाता है। इसका वानस्पतिक नाम ब्यूटिया मोनोस्पर्मा है।
  • जोधपुर में देश का पहला मरू वानस्पतिक उद्यान माचिया सफारी पार्क में स्थापित किया जा रहा है। जिसमे मरू प्रदेश की प्राकृति वनस्पति संरक्षित की जायेगी।
  • शेखावटी क्षेत्र में घास के मैदान बीड़ कहलाते है।कुमट,कैर, सांगरी, काचरी व गूंदा के फुल पचकूटा कहलाते हैं।
  • केन्द्र सरकार ने मरूस्थलीकरण को रोकन के लिए अक्टूबर 1952 में मरू. वृक्षारोपण शोध केन्द्र की स्थापना जोधपुर में की थी।
  • शुष्क वन अनुसंधान संस्थान, जोधपुर में है।
  • राजसमंद जिले में खमनौर(हल्दीघाटी) व देलवाड़ा क्षेत्र को चंदन वन कहते हैं।
  • जोधपुर जिले के खेजड़ली गांव में 1730 में बिश्नोई समाज के 363 स्त्री पुरूषों ने इमरती देवी बिश्नोई के नेतृत्व में अपने प्राणों की आहुति दे दी। इसी स्मृति में खेजड़ली गांव में भाद्रपद शुक्ल दशमी को मेला लगता है।
  • वन संरक्षण, वन अनुसंधान, वन विकास एवं वानिकी लेखन में उत्कृष्ण कार्य करने वाले व्यक्ति या संस्था के लिए 1994-95 में अमृता देवी स्मृति पुरस्कार प्रारम्भ किया गया।
  • पाली जिले के सोजत सिटी में पर्यावरण पार्क विकसित किया जा रहा है।
  • खेजड़ी केा रेगिस्तान का कल्पवृक्ष कहते है। इसे शमी, जांटी(पंजाबी, हरियाणी, राजस्थानी), छोकड़ा(सिन्धी) , पेयमय(तमिल), बन्नी(कन्नड़), प्रोसोपिस सिनोरिया(विज्ञान) में कहते हैं 1983 में इसे राज्य वृक्ष घोषित किया गया। इसकी पत्तियों को लुम फली को सांगरी कहते है।
  • रोहिड़ा को मरूस्थल का सागवान, राजस्थान की मरूशौभा, मारवाड़ टीका कहते है।इस पर केसरिया फुल आते हैं। इन फुलों को 1983 में राज्य पुष्प घोषित किया गया। इसका वानस्पतिक नाम टिकोमेला अण्डलेटा है।
  • पूर्व मुख्य सचिव मीणा लाल मेहता क प्रयासों से झालाना वन खण्ड, जयपुर में स्मृति वन विकसित किया गया है। 20.03.2006 में इसका नाम बदलकर कर्पूर चन्द कुलिस स्मृति वन कर दिया गया है।

     
    राजस्थान में वन सम्पदा Forest Wealth in Rajasthan
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