🚩 गुरु घासीदास
गुरु घासीदास Guru Ghasidas
✍️ प्रस्तावना
छत्तीसगढ़ की पवित्र धरती पर जन्म लेने वाले महान संत गुरु घासीदास जी न केवल सामाजिक चेतना के अग्रदूत थे, बल्कि उन्होंने सत्य, अहिंसा और समानता का जो संदेश दिया, वह आज भी जन-जन के जीवन को प्रेरणा देता है। उन्होंने सतनाम पंथ की स्थापना कर समाज में व्याप्त छुआछूत, ऊँच-नीच और जातिगत भेदभाव को समाप्त करने की दिशा में ऐतिहासिक कार्य किए।
👶 प्रारंभिक जीवन
जन्म: वर्ष 1756 (कुछ स्रोत 1756 से 1761 के बीच मानते हैं)
स्थान: गिरौदपुरी (जिला बलौदाबाजार, छत्तीसगढ़)
जाति: सतनामी (दलित समुदाय)
पिता: महंगूदास जी
माता: अमरावती माता
गुरु घासीदास जी का बचपन बेहद साधारण, ग्रामीण और धार्मिक वातावरण में बीता। उन्होंने जात-पात के विभाजन को बचपन से देखा और अनुभव किया कि किस प्रकार समाज के एक वर्ग को उत्पीड़न और भेदभाव झेलना पड़ता है। यही संवेदना बाद में उनके विचारों और आंदोलन की प्रेरणा बनी।
🙏 सतनाम पंथ की स्थापना
गुरु घासीदास ने छत्तीसगढ़ में सतनाम पंथ की स्थापना की, जिसका मूल उद्देश्य था:
ईश्वर का एक ही नाम है – "सत" (अर्थात् सत्य)
सभी मनुष्य समान हैं
जाति, धर्म, रंग और लिंग के आधार पर कोई भेद नहीं होना चाहिए
भक्ति का मार्ग सरल और सच्चा हो
मुख्य सिद्धांत:
सत्य बोलो
सदाचार अपनाओ
समानता का व्यवहार करो
📢 सामाजिक जागरण
गुरु घासीदास ने समाज में व्याप्त कई कुरीतियों को चुनौती दी, जैसे:
छुआछूत और जातिगत भेदभाव
ब्राह्मणवादी कर्मकांड और अंधविश्वास
बाल-विवाह, दहेज प्रथा आदि
उन्होंने सीधे और सहज भाषा में लोगों को समझाया कि हर व्यक्ति में ईश्वर का अंश है, अतः कोई भी नीच या ऊँचा नहीं है।
उन्होंने ऐसे समय में यह आंदोलन शुरू किया जब दलितों और पिछड़े वर्गों को समाज से पूर्णतः अलग-थलग किया गया था।
🪔 जयंती और पूजा
गुरु घासीदास जयंती: हर वर्ष दिसंबर माह में मनाई जाती है।
स्थल: गिरौदपुरी धाम में विशाल मेला लगता है।
अन्य आयोजन: सतनाम मंदिरों में कीर्तन, भजन, सत्संग, शोभायात्रा
🛕 गिरौदपुरी धाम
यह स्थल अब राज्य स्तरीय तीर्थ के रूप में विकसित हो चुका है।
यहाँ पर 77 फीट ऊँचा जय स्तंभ स्थापित किया गया है।
यह छत्तीसगढ़ के सतनामी समाज का सबसे बड़ा तीर्थ स्थल है।
राज्य सरकार द्वारा यहाँ हर वर्ष सतनाम जयंती महोत्सव का आयोजन किया जाता है।
🧾 गुरु घासीदास के उपदेश
उपदेश | अर्थ |
---|---|
"सतनाम ही ईश्वर है" | सत्य ही परमात्मा है |
"मनखे-मनखे एक समान" | सभी मनुष्य समान हैं |
"झूठ मत बोलो, चोरी मत करो" | नैतिक आचरण अपनाओ |
"पाखंड से दूर रहो" | आडंबर और ढोंग से बचो |
📖 शिक्षा और जीवन दर्शन
गुरु घासीदास औपचारिक शिक्षा से दूर रहे लेकिन उनके विचार अत्यंत गहरे, तर्कसंगत और क्रांतिकारी थे। उन्होंने अपनी शिक्षाओं को आसान भाषा में जनता तक पहुँचाया:
उन्होंने प्रतीक के रूप में 'जय स्तंभ' का उपयोग किया जो उनके सतनाम पंथ की पहचान बना।
उन्होंने किसी धर्म विशेष के विरोध में नहीं, बल्कि सामाजिक सुधार की दृष्टि से कार्य किया।
🧬 उत्तराधिकारी और योगदान
गुरु घासीदास के पुत्र गुरु बालकदास ने उनके विचारों और शिक्षाओं को आगे बढ़ाया।
आज सतनाम पंथ केवल छत्तीसगढ़ में ही नहीं, बल्कि मध्यप्रदेश, झारखंड, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में भी फैला हुआ है।
📊 प्रतियोगी परीक्षा के दृष्टिकोण से तथ्य
गुरु घासीदास का जन्म: गिरौदपुरी (बलौदाबाजार)
सतनाम पंथ के प्रवर्तक
छत्तीसगढ़ के सामाजिक सुधार आंदोलनों में अग्रणी
जय स्तंभ – प्रतीक चिन्ह
गुरु घासीदास विश्वविद्यालय – बिलासपुर में स्थित है
🎯 निष्कर्ष
गुरु घासीदास केवल संत नहीं, बल्कि एक महान समाज सुधारक और विचारक थे। उन्होंने उस समय समाज में बदलाव लाया जब छुआछूत, जातिवाद और असमानता अपने चरम पर थी। उनके सतनाम पंथ ने oppressed वर्गों को आत्मसम्मान, एकता और शिक्षा की दिशा में प्रेरित किया।
आज भी छत्तीसगढ़ और भारत के लाखों लोग उनके विचारों से प्रभावित होकर 'सत' के मार्ग पर चलने का प्रयास करते हैं। उनके योगदान को सदैव याद किया जाएगा।
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