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छत्तीसगढ़ के शिल्प छत्तीसगढ़ के शिल्पकार

छत्तीसगढ़ के शिल्प
छत्तीसगढ़ के शिल्पकार

🧵 छत्तीसगढ़ के शिल्प एवं शिल्पकार

छत्तीसगढ़, जो अपनी प्राकृतिक सुंदरता और सांस्कृतिक विविधता के लिए प्रसिद्ध है, उतना ही समृद्ध है अपने पारंपरिक शिल्पों और शिल्पकारों के योगदान में। यहाँ की मिट्टी, लकड़ी, धातु, कपड़े और पत्थर से बनाई गई कलाकृतियाँ देश-विदेश में अपनी विशिष्ट पहचान रखती हैं। इस राज्य के विभिन्न जनजातीय समूहों ने अपने जीवन के अनुभवों, मान्यताओं और परंपराओं को शिल्पकला में पिरोया है।


🧭 विषय सूची (Table of Contents)

  1.  छत्तीसगढ़ के शिल्पों की विशेषता

  2.  प्रमुख शिल्प प्रकार

    •  डोकरा शिल्प

    •  लौह शिल्प (Iron Craft)

    •  काष्ठ शिल्प (Wood Craft)

    •  माटी शिल्प (Terracotta)

    •  बांस और बाँसुरी कला

    •  कपड़ा शिल्प (कांथा, कोसा सिल्क)

    •  सीप और सींग शिल्प

  3.  शिल्पकला से जुड़े प्रमुख क्षेत्र

  4.  छत्तीसगढ़ के प्रमुख शिल्पकार

  5.  शिल्पों का आर्थिक और सामाजिक महत्व

  6.  संरक्षण और प्रोत्साहन की आवश्यकता

  7.  निष्कर्ष


🪷 1. छत्तीसगढ़ के शिल्पों की विशेषता

छत्तीसगढ़ की शिल्पकला न केवल सौंदर्य का प्रतीक है, बल्कि यह जनजातीय जीवन के गहरे सांस्कृतिक अर्थ भी समेटे हुए है। पारंपरिक शिल्पों में प्राकृतिक रंगों, स्थानीय संसाधनों और हस्तनिर्मित तकनीकों का उपयोग किया जाता है, जिससे हर वस्तु अद्वितीय और जीवंत बनती है।


🛠️ 2. प्रमुख शिल्प प्रकार

🔸 (A) डोकरा शिल्प (Dokra Art) 

    डोकरा आर्ट छत्तीसगढ़

  • यह एक प्राचीन धातु शिल्प है, जिसमें मोम ढलाई (Lost Wax Casting) तकनीक का प्रयोग किया जाता है।

  • इसमें देवी-देवताओं की मूर्तियाँ, जानवर, दीपक, हार-गहने और सजावटी वस्तुएँ बनाई जाती हैं।

  • बस्तर, कांकेर, नारायणपुर इस कला के केंद्र हैं।

🔹 प्रसिद्ध डोकरा शिल्पकार:

  • जगदलपुर के रामसाय मुण्डा – जिनकी कृतियाँ राष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शित होती हैं। 


🔸 (B) लौह शिल्प (Iron Craft)


    लौह शिल्प (Iron Craft)
  • यह बस्तर क्षेत्र की एक खास कला है जिसमें लोहे को गर्म कर हथौड़े से आकृति दी जाती है।

  • आदिवासी देवताओं की मूर्तियाँ, नृत्य करते मानव, पशु, दीपक आदि बनाए जाते हैं।

  • कोंडागांव इस कला के लिए विशेष रूप से जाना जाता है।

🔹 प्रसिद्ध लौह शिल्पकार:

  • राजू नेताम, कमलेश बघेल जैसे कलाकारों को राज्य स्तरीय पुरस्कार मिल चुके हैं। 


🔸 (C) काष्ठ शिल्प (Wood Craft)

  • लकड़ी से मूर्तियाँ, खिलौने, मुखौटे, देवी-देवताओं की आकृतियाँ बनाई जाती हैं।

  • सागौन, बांस, साल जैसी स्थानीय लकड़ियों का उपयोग होता है।

  • राजनांदगांव, कांकेर, जगदलपुर प्रमुख केंद्र हैं।


🔸 (D) माटी शिल्प (Terracotta Art)

  • मिट्टी से घोड़ा, हाथी, दीपक, गणेश प्रतिमाएँ और घरेलू उपयोग की वस्तुएँ बनाई जाती हैं।

  • पाटन, साजा, दुर्ग, कवर्धा क्षेत्र के शिल्पकार इस कला में निपुण हैं।


🔸 (E) बांस शिल्प (Bamboo Craft)

  • बांस से झूले, टोकरियाँ, चटाइयाँ, बांसुरी, बर्तन, दीवार सजावट आदि बनाए जाते हैं।

  • यह कला विशेष रूप से गोंड, मुरिया, बिझवार जनजातियों द्वारा विकसित की गई है।


🔸 (F) वस्त्र और कपड़ा शिल्प

📌 कोसा सिल्क (Kosa Silk):

  • छत्तीसगढ़ की पहचान बना यह रेशमी कपड़ा चंपा, कोरबा और बिलासपुर में बनता है।

  • हाथ से बुना गया यह कपड़ा शादी-ब्याह और उत्सवों में लोकप्रिय है।

📌 कांथा सिलाई और रंगाई:

  • साड़ी और सलवार-कुर्ते पर पारंपरिक डिज़ाइन बनाए जाते हैं।


🔸 (G) सीप और सींग शिल्प

  • जानवरों के सींग और सीपों से गहने, चूड़ियाँ, सजावटी वस्तुएँ बनाई जाती हैं।

  • सुकमा और दंतेवाड़ा इस कला के केंद्र हैं।




🗺️ 3. शिल्पकला के प्रमुख क्षेत्र

शिल्पप्रमुख क्षेत्र
डोकराबस्तर, कांकेर
लौह शिल्पनारायणपुर, कोंडागांव
लकड़ी शिल्पजगदलपुर, राजनांदगांव
कोसा सिल्कचंपा, कोरबा
मिट्टी शिल्पदुर्ग, कवर्धा
बांस शिल्पबलरामपुर, सूरजपुर
सींग शिल्पदंतेवाड़ा, सुकमा



🧑‍🎨 4. छत्तीसगढ़ के प्रमुख शिल्पकार

नामशिल्प कलासम्मान
रामसाय मुंडाडोकरा शिल्पराष्ट्रीय पुरस्कार
कमलेश नेतामलौह शिल्पराज्य सम्मान
रितेश सायबांस शिल्पजिला पुरस्कार
उर्मिला साहूमिट्टी शिल्पमहिला शिल्पकार पुरस्कार

📈 5. शिल्पों का आर्थिक और सामाजिक महत्व

  • रोजगार का स्रोत: ग्रामीण और जनजातीय समाज के लिए यह आत्मनिर्भरता का साधन है।

  • महिला सशक्तिकरण: कई शिल्पों में महिलाओं की भागीदारी प्रमुख है।

  • विदेशी मांग: कोसा सिल्क और डोकरा शिल्प की अंतरराष्ट्रीय बाजारों में माँग है।

  • पर्यटन से जुड़ाव: छत्तीसगढ़ पर्यटन विभाग "लोककला ग्राम" और "शिल्प मेलों" के माध्यम से इसे बढ़ावा देता है।


🏛️ 6. संरक्षण और प्रोत्साहन की आवश्यकता

  • सरकारी योजनाएँ: “हस्तशिल्प विकास निगम”, “शिल्प गुरुकुल योजना”, “ODOP (One District One Product)” आदि।

  • ई-कॉमर्स: डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से शिल्पकारों को सीधे बाजार तक पहुँच।

  • शिक्षा और प्रशिक्षण: युवाओं को आधुनिक डिज़ाइनिंग और विपणन तकनीकों की शिक्षा देना।


7. निष्कर्ष

छत्तीसगढ़ के शिल्प और शिल्पकार केवल कलात्मक उत्पाद नहीं बनाते, बल्कि वे राज्य की आत्मा और संस्कृति के जीवंत वाहक हैं। यह शिल्प परंपराएँ न केवल स्थानीय अर्थव्यवस्था को मजबूती देती हैं, बल्कि वैश्विक स्तर पर भारत की सांस्कृतिक पहचान को भी समृद्ध करती हैं। इन्हें संरक्षित करने और नई पीढ़ी तक पहुँचाने की जिम्मेदारी हम सबकी है।


➦ नोट - इस पेज पर आगे और भी जानकारियां अपडेट की जायेगी, उपरोक्त जानकारियों के संकलन में पर्याप्त सावधानी रखी गयी है फिर भी किसी प्रकार की त्रुटि अथवा संदेह की स्थिति में स्वयं किताबों में खोजें तथा फ़ीडबैक/कमेंट के माध्यम से हमें भी सूचित करें।

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