
भारत के संविधान संशोधन
संविधान में समय-समय पर आवश्यकता होने पर संशोधन होते रहे हैं. विधायिनी सभा में किसी विधेयक में परिवर्तन, सुधार अथवा उसे निर्दोष बनाने की प्रक्रिया को ‘संशोधन’ कहा जाता है. सभा या समिति के प्रस्ताव के शोधन की क्रिया के लिए भी इस शब्द का प्रयोग होता है. किसी भी देश का संविधान कितनी ही सावधानी से बनाया जाए, किंतु मनुष्य की कल्पना शक्ति की सीमा बंधी हुई है.
संविधान संशोधन की प्रक्रिया
दोनों सदनों में और कभी कभी राज्यो के द्वारा अनुमोदन के बात विधेयक पारित किये जाते का बाद भारत के राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है, उनके द्वरा अनुमति दिए जाने के बाद ही सम्बिधान में संसोधन मेनी होता है, अनुच्छेद 111 के अनुसार जब एक साधारण विधेयक राष्ट्रपति की अनुमति के लिए भेजा जाता हैं तो वह अनुमति दे भी सकता है या उसे सदनों को पुनर्विचार करने के लिए बापस भेज सकता है परंतु अनुच्छेद 368 के अन्तर्गत राष्ट्रपति संविधान संशोधन विधेयक पर अनुमति देने के लिए बाध्य है। और इस विधेयक को प्रस्तुत करने से पूर्व राष्ट्रपति की पूर्वानुमति की आवश्यकता नही होती है।
पहला संविधान संशोधन (1951)
इसके माध्यम से स्वतंत्रता, समानता एवं संपत्ति से संबंधित मौलिक अधिकारों को लागू किए जाने संबंधी कुछ व्यवहारिक कठिनाइयों को दूर करने का प्रयास किया गया. भाषण एवं अभिव्यक्ति के मूल अधिकारों पर इसमें उचित प्रतिबंध की व्यवस्था की गई. साथ ही, इस संशोधन द्वारा संविधान में नौंवी अनुसूची को जोड़ा गया, जिसमें उल्लिखित कानूनों को सर्वोच्च न्यायालय के न्यायिक पुनर्विलोकन की शक्तियों के अंतर्गत परीक्षा नहीं की जा सकती है. इसके द्वारा भारतीय संविधान मे 9वी अनुसूची को जोडा गया है।
दूसरा संविधान संशोधन (1952)
इसके अंतर्गत 1951 की जनगणना के आधार पर लोक सभा में प्रतिनिधित्व को पुनर्व्यवस्थित किया गया.
तीसरा संविधान संशोधन (1954)
अंतर्गत सातवीं अनुसूची को समवर्ती सूची की 33वीं प्रविष्टी के स्थान पर खाद्यान्न, पशुओं के लिए चारा, कच्चा कपास, जूट आदि को रखा गया, जिसके उत्पादन एवं आपूर्ति को लोकहित में समझने पर सरकार उस पर नियंत्रण लगा सकती है.
चौथा संविधान संशोधन (1955)
इसके अंतर्गत व्यक्तिगत संपत्ति को लोकहित में राज्य द्वारा हस्तगत किए जाने की स्थिति में, न्यायालय इसकी क्षतिपूर्ति के संबंध में परीक्षा नहीं कर सकती.
पांचवा संविधान संशोधन (1955)
इस संशोधन में अनुच्छेद 3 में संशोधन किया गया, जिसमें राष्ट्रपति को यह शक्ति दी गई कि वह राज्य विधान- मंडलों द्वारा अपने-अपने राज्यों के क्षेत्र, सीमाओं आदि पर प्रभाव डालने वाली प्रस्तावित केंद्रीय विधियों के बारे में अपने विचार भेजने के लिए कोई समय-सीमा निर्धारित कर सकते हैं.
छठा संविधान संशोधन (1956)
इस संशोधन द्वारा सातवीं अनुसूची के संघ सूची में परिवर्तन कर अंतर्राज्यीय बिक्री कर के अंतर्गत कुछ वस्तुओं पर केंद्र को कर लगाने का अधिकार दिया गया है.
सांतवा संविधान संशोधन (1956)
इस संशोधन द्वारा भाषीय आधार पर राज्यों का पुनर्गठन किया गया, जिसमें अगली तीन श्रेणियों में राज्यों के वर्गीकरण को समाप्त करते हुए राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों में उन्हें विभाजित किया गया. साथ ही, इनके अनुरूप केंद्र एवं राज्य की विधान पालिकाओं में सीटों को पुनर्व्यवस्थित किया गया.
इसके द्वारा राज्यों का पुनर्गठन करके 14 राज्य और 6 केंद्र शासित प्रदेशों को पुनर्गठित किया गया है।
आठवां संविधान संशोधन (1959)
इसके अंतर्गत केंद्र एवं राज्यों के निम्न सदनों में अनुसूचित जाती, अनुसूचित जनजाति एवं आंग्ल भारतीय समुदायों के आरक्षण संबंधी प्रावधानों को दस वर्षों अर्थात 1970 तक बढ़ा दिया गया.
नौवीं संविधान संशोधन (1960)
इसके द्वारा संविधान की प्रथम अनुसूची में परिवर्तन करके भारत और पाकिस्तान के बीच 1958 की संधि की शर्तों के अनुसार बेरुबारी, खुलना आदि क्षेत्र पाकिस्तान को दे दिए गए.
दसवां संविधान संशोधन (1961)
इसके अंतर्गत भूतपूर्व पुर्तगाली अंतः क्षेत्रों दादर एवं नगर हवेली को भारत में शामिल कर उन्हें केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दे दिया गया.
11वां संविधान संशोधन (1962)
इसके अंतर्गत उपराष्ट्रपति के निर्वाचन के प्रावधानों में परिवर्तन कर, इस सन्दर्भ में दोनों सदनों के संयुक्त अधिवेशन को बुलाया गया. साथ ही यह भी निर्धारित की निर्वाचक मंडल में पद की रिक्तता के आधार पर राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के निर्वाचन को चुनौती नहीं दी जा सकती.
12वां संविधान संशोधन (1962)
इसके अंतर्गत संविधान की प्रथम अनुसूची में संशोधन कर गोवा, दमन एवं दीव को भारत में केंद्रशासित प्रदेश के रूप में शामिल कर लिया गया.
13वां संविधान संशोधन (1962)
इसके अंतर्गत नागालैंड के संबंध में विशेष प्रावधान अपनाकर उसे एक राज्य का दर्जा दे दिया गया.
14वां संविधान संशोधन (1963)
इसके द्वारा केंद्र शासित प्रदेश के रूप में पुदुचेरी को भारत में शामिल किया गया. साथ ही इसके द्वारा हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, त्रिपुरा, गोवा, दमन और दीव तथा पुदुचेरी केंद्र शासित प्रदेशों में विधान पालिका एवं मंत्रिपरिषद की स्थापना की गई.
15वां संविधान संशोधन (1963)
इसके अंतर्गत उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवामुक्ति की आयु 60 से बढ़ाकर 62 वर्ष कर दी गई तथा अवकाश प्राप्त न्यायाधीशों की उच्च न्यायालय में नियुक्ति से सबंधित प्रावधान बनाए गए.
16वां संविधान संशोधन (1963)
इसके द्वारा देश की संप्रभुता एवं अखंडता के हित में मूल अधिकारों पर कुछ प्रतिबंध लगाने के प्रावधान रखे गए साथ ही तीसरी अनुसूची में भी परिवर्तन कर शपथ ग्रहण के अंतर्गत ‘मैं भारत की स्वतंत्रता एवं अखंडता को बनाए रखूंगा’ जोड़ा गया.
17वां संविधान संशोधन (1964)
इसमें संपत्ति के अधिकारों में और भी संशोधन करते हुए कुछ अन्य भूमि सुधार प्रावधानों को नौवीं अनुसूची में रखा गया, जिनकी वैधता परीक्षा सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नहीं की जा सकती थी.
18वां संविधान संशोधन (1966)
इसके अंतर्गत पंजाब का भाषीय आधार पर पुनर्गठन करते हुए पंजाबी भाषी क्षेत्र को पंजाब एवं हिंदी भाषी क्षेत्र को हरियाणा के रूप में गठित किया गया. पर्वतीय क्षेत्र हिमाचल प्रदेश को दे दिए गए तथा चंडीगढ़ को केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया.
19वां संविधान संशोधन (1966)
इसके अंतर्गत चुनाव आयोग के अधिकारों में परिवर्तन किया गया एवं उच्च न्यायालयों को चुनाव याचिकाएं सुनने का अधिकार दिया गया.
20वां संविधान संशोधन (1966)
इसके अंतर्गत अनियमितता के आधार पर नियुक्त कुछ जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति को वैधता प्रदान की गई.
21वां संविधान संशोधन (1967)
इसके द्वारा सिंधी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची के अंतर्गत पंद्रहवीं भाषा के रूप में शामिल किया गया.
22वां संविधान संशोधन (1969)
सके द्वारा असम से अलग करके एक नया राज्य मेघालय बनाया गया.
23वां संविधान संशोधन (1969)
इसके अंतर्गत विधान पालिकाओं में अनुसूचित जाती एवं अनुसूचित जनजाति के आरक्षण एवं आंग्ल भारतीय समुदाय के लोगों का मनोनयन और दस वर्षों के लिए बढ़ा दिया गया.
24वां संविधान संशोधन (1971)
इस संशोधन के अंतर्गत संसद की इस शक्ति को स्पष्ट किया गया की वह संशोधन के किसी भी भाग को, जिसमें भाग तीन के अंतर्गत आने वाले मूल अधिकार भी हैं संशोधन कर सकती है ,साथ ही यह भी निर्धारित किया गया कि संशोधन संबंधी विधेयक जब दोनों सदनों से पारित होकर राष्ट्रपति के समक्ष जाएगा तो इस पर राष्ट्रपति द्वारा संपत्ति दिया जाना बाध्यकारी होगा.
26वां संविधान संशोधन (1971)
इसके अंतर्गत भूतपूर्व देशी राज्यों के शासकों की विशेष उपाधियों एवं उनके प्रिवी पर्स को समाप्त कर दिया गया.
28वां संविधान संशोधन (1971):
इसके अंतर्गत मिजोरम एवं अरुणाचल प्रदेश को केंद्र शासित प्रदेशों के में स्थापित किया गया.
29वां संविधान संशोधन (1972)
इसके अंतर्गत केरल भू-सुधार (संशोधन) अधिनियम, 1969 तथा केरल भू-सुधार (संशोधन) अधिनियम, 1971 को संविधान की नौवीं अनुसूची में रख दिया गया, जिससे इसकी संवैधानिक वैधता को न्यायालय में चुनौती न दी जा सके.
31वां संविधान संशोधन (1973)
इसके द्वारा लोक सभा के सदस्यों की संख्या 525 से 545 कर दी गई तथा केंद्र शासित प्रदेशों का प्रतिनिधित्व 25 से घटकर 20 कर दिया गया.
32वां संविधान संशोधन (1974)
संसद एवं विधान पालिकाओं के सदस्य द्वारा दबाव में या जबरदस्ती किए जाने पर इस्तीफा देना अवैध घोषित किया गया एवं अध्यक्ष को यह अधिकार है कि वह सिर्फ स्वेच्छा से दिए गए एवं उचित त्यागपत्र को ही स्वीकार करे.
34वां संविधान संशोधन (1974)
इसके अंतर्गत विभिन्न राज्यों द्वारा पारित बीस भू सुधार अधिनियमों को नौवीं अनुसूची में प्रवेश देते हुए उन्हें न्यायालय द्वारा संवैधानिक वैधता के परीक्षण से मुक्त किया गया.
35वां संविधान संशोधन (1974)
इसके अंतर्गत सिक्किम का सरंक्षित राज्यों का दर्जा समाप्त कर उसे संबंद्ध राज्य के रूप में भारत में प्रवेश दिया गया.
36वां संविधान संशोधन (1975)
इसके अंतर्गत सिक्किम को भारत का बाइसवां राज्य बनाया गया.
37वां संविधान संशोधन (1975)
इसके तहत आपात स्थिति की घोषणा और राष्ट्रपति, राजयपाल एवं केंद्र शासित प्रदेशों के प्रशासनिक प्रधानों द्वारा अध्यादेश जारी किए जाने को अविवादित बनाते हुए न्यायिक पुनर्विचार से उन्हें मुक्त रखा गया.
39वां संविधान संशोधन (1975)
इसके द्वारा राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री एवं लोक सभाध्यक्ष के निर्वाचन संबंधी विवादों को न्यायिक परीक्षण से मुक्त कर दिया गया.
41वां संविधान संशोधन (1976)
इसके द्वारा राज्य लोकसेवा आयोग के सदस्यों की सेवा मुक्ति की आयु सीमा 60 वर्ष कर दी गई, पर संघ लोक सेवा आयोग के सदस्यों की सेवा निवृति की अधिकतम आयु 65 वर्ष रहने दी गई.
42वां संविधान संशोधन (1976)
इसके द्वारा संविधान में व्यापक परिवर्तन लाए गए, जिनमें से मुख्य निम्लिखित थे.
- (क) संविधान की प्रस्तावना में ‘समाजवादी’ ‘धर्मनिरपेक्ष’ एवं ‘एकता और अखंडता’ आदि शब्द जोड़े गए.
- (ख) सभी नीति निर्देशक सिद्धांतो को मूल अधिकारों पर सर्वोच्चता सुनिश्चित की गई.
- (ग) इसके अंतर्गत संविधान में दस मौलिक कर्तव्यों को अनुच्छेद 51(क), (भाग-iv क) के अंतर्गत जोड़ा गया.
- (घ) इसके द्वारा संविधान को न्यायिक परीक्षण से मुख्यत किया गया.
- (ङ) सभी विधान सभाओं एवं लोक सभा की सीटों की संख्या को इस शताब्दी के अंत तक के स्थिर कर दिया गया.
- (च) लोक सभा एवं विधान सभाओं की अवधि को पांच से छह वर्ष कर दिया गया,
- (छ) इसके द्वारा यह निर्धारित किया गया की किसी केंद्रीय कानून की वैधता पर सर्वोच्च न्यायालय एवं राज्य के कानून की वैधता का उच्च न्यायालय परिक्षण करेगा. साथ ही, यह भी निर्धारित किया गया कि किसी संवैधानिक वैधता के प्रश्न पर पांच से अधिक न्यायधीशों की बेंच द्वारा दी तिहाई बहुमत से निर्णय दिया जाना चाहिए और यदि न्यायाधीशों की संख्या पांच तक हो तो निर्णय सर्वसम्मति से होना चाहिए.
- (ज) इसके द्वारा वन संपदा, शिक्षा, जनसंख्या- नियंत्रण आदि विषयों को राज्य सूचि से समवर्ती सूची के अंतर्गत कर दिया गया.
- (झ) इसके अंतर्गत निर्धारित किया गया कि राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद एवं उसके प्रमुख प्रधानमंत्री की सलाह के अनुसार कार्य करेगा.
- (ट) इसने संसद को राष्ट्रविरोधी गतिविधियों से निपटने के लिए कानून बनाने के अधिकार दिए एवं सर्वोच्चता स्थापित की.
44वां संविधान संशोधन (1978)
इसके अंतर्गत राष्ट्रीय आपात स्थिति लागु करने के लिए आंतरिक अशांति के स्थान पर सैन्य विद्रोह का आधार रखा गया एवं आपात स्थिति संबंधी अन्य प्रावधानों में परिवर्तन लाया गया, जिससे उनका दुरुपयोग न हो. इसके द्वारा संपत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकारों के भाग से हटा कर विधेयक (क़ानूनी) अधिकारों की श्रेणी में रख दिया गया. लोक सभा तथा राज्य विधान सभाओं की अवधि 6 वर्ष से घटाकर पुनः 5 वर्ष कर दी गई. उच्चतम न्यायालय को राष्ट्रपति तथा उपराष्ट्रपति के निर्वाचन संबंधी विवाद को हल करने की अधिकारिता प्रदान की गई.
50वां संविधान संशोधन (1984)
इसके द्वारा अनुच्छेद 33 में संशोधन कर सैन्य सेवाओं की पूरक सेवाओं में कार्य करने वालों के लिए आवश्यक सूचनाएं एकत्रित करने, देश की संपत्ति की रक्षा करने और कानून तथा व्यवस्था से संबंधित दायित्व भी दिए गए. साथ ही, इस सेवाओं द्वारा उचित कर्तव्यपालन हेतु संसद को कानून बनाने के अधिकार भी दिए गए.
52वां संविधान संशोधन (1985)
इस संशोधन के द्वारा राजनितिक दल बदल पर अंकुश लगाने का लक्ष्य रखा गया. इसके अंतर्गत संसद या विधान मंडलों के उन सदस्यों को आयोग्य गोश्त कर दिया जाएगा, जो इस दल को छोड़ते हैं जिसके चुनाव चिन्ह पर उन्होंने चुनाव लड़ा था, पर यदि किसी दल की संसदीय पार्टी के एक तिहाई सदस्य अलग दल बनाना चाहते हैं तो उन पर अयोग्यता लागू नहीं होगी। दल बदल विरोधी इन प्रावधानों को संविधान की दसवीं अनुसूची के अंतर्गत रखा गया.
53वां संविधान संशोधन (1986)
इसके अंतर्गत अनुच्छेद 371 में खंड ‘जी’ जोड़कर मिजोरम को राज्य का दर्जा दिया गया.
54वां संविधान संशोधन (1986)
इसके द्वारा संविधान की दूसरी अनुसूची के भाग ‘डी’ में संशोधन कर न्यायाधीशों के वेतन में वृद्धि का अधिकार संसद को दिया गया.
55वां संविधान संशोधन (1986)
इसके अंतर्गत अरुणाचल प्रदेश को राज्य बनाया गया.
56वां संविधान संशोधन (1987)
इसके अंतर्गत गोवा को एक राज्य का दर्जा दिया गया तथा दमन और दीव को केंद्रशासित प्रदेश के रूप में ही रहने दिया गया.
57वां संविधान संशोधन (1987)
इसके अंतर्गत अनुसुचित जनजातियों के आरक्षण के संबंध में मेघालय, मिजोरम, नागालैंड एवं अरुणाचल प्रदेश की विधान सभा सीटों का परिसीमन इस शताब्दी के अंत तक के लिए किया गया.
58वां संविधान संशोधन (1987)
इसके द्वारा राष्ट्रपति को संविधान का प्रामाणिक हिंदी संस्करण प्रकाशित करने के लिए अधिकृत किया गया.
60वां संविधान संशोधन (1988)
इसके अंतर्गत व्यवसाय कर की सीमा 250 रुपये से बढ़ाकर 2500 रुपये प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष कर दी गई.46).
61वां संविधान संशोधन (1989)
इसके द्वारा मतदान के लिए आयु सीमा 21 वर्ष से घटाकर 18 लेन का प्रस्ताव था.
65वां संविधान संशोधन (1990)
इसके द्वारा अनुच्छेद 338 में संशोधन करके अनुसूचित जाति तथा जनजाति आयोग के गठन की व्यवस्था की गई है.
69वां संविधान संशोधन (1991)
- भारत सरकार ने 24 दिसम्बर 1987 को दिल्ली के प्रशासन से संबंधित विभिन्न मामलों का अध्ययन करने तथा प्रशासनिक ढाँचे को चुस्त बनाने के उपाय सुझाने के लिए एक कमेटी गठित की थी।
- पूरी जाँच-पड़ताल और अध्ययन के बाद इस समिति ने यह सिफारिश की थी कि दिल्ली एक केंद्रशासित प्रदेश बना रहे और इसमें एक विधानसभा तथा एक मंत्रिपरिषद भी हो, जो आम आदमी से संबंधित मामलों के बारे में पूरी तरह से अधिकारसंपन्न हो।
- कमेटी ने यह सिफारिश की थी कि स्थायित्व और सुदृढ़ता को दृष्टि में रखते हुए एसी व्यवस्था की जाए, जिससे राष्ट्रीय राजधानी को अन्य केंद्रशासित प्रदेशों की तुलना में एक विशेष दर्जा प्राप्त हो।
- यह अधिनियम उपरोक्त सिफारिशों को लागू करने के लिए पारित किया गया।
70वां संविधान संशोधन (1992)
दिल्ली और पुदुचेरी संघ राज्य क्षेत्रों की विधान सभाओं के सदस्यों को राष्ट्रपति के लिए निर्वाचक मंडल में सम्मिलित किया गया.
71वां संविधान संशोधन (1992)
आठवीं अनुसूची में कोंकणी, मणिपुरी और नेपाली भाषा को सम्मिलित किया गया.
73वां संविधान संशोधन (1992-93)
इसके अंतर्गत संविधान में ग्याहरवीं अनुसूची जोड़ी गई. इसके पंचायती राज संबंधी प्रावधानों को सम्मिलित किया गया है.
74वां संविधान संशोधन(1993)
इसके अंतर्गत संविधान में बारहवीं अनुसूची शामिल की गई, जिसमें नगरपालिका, नगर निगम और नगर परिषदों से संबंधित प्रावधान किए गए हैं.
76वां संविधान संशोधन (1994)
इस संशोधन अधिनियम द्वारा संविधान की नवीं अनुसूची में संशोधन किया गया है और तमिल नाडु सरकार द्वारा पारित पिछड़े वर्गों के लिए सरकारी नौकरियों में 69 प्रतिशत आरक्षण का उपबंध करने वाली अधिनियम को नवीं अनुसूची में शामिल कर दिया गया है.
78वां संविधान संशोधन (1995)
इसके द्वारा नवीं अनुसूची में विभिन्न राज्यों द्वारा पारित 27 भूमि सुधर विधियों को समाविष्ट किया गया है. इस प्रकार नवीं अनुसूची में सम्मिलित अधिनियमों की कुल संख्या 284 हो गई है.
79वां संविधान संशोधन (1999)
अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण की अवधि 25 जनवरी 2010 तक के लिए बढ़ा दी गई है. इस संशोधन के माध्यम से व्यवस्था की गई कि अब राज्यों को प्रत्यक्ष केंद्रीय करों से प्राप्त कुल धनराशि का 29 % हिस्सा मिलेगा.
80वां संविधान संशोधन (2000)
- दसवें वित्त आयोग की सिफरिशों के आधार पर संविधान (80 वाँ संशोधन) अधिनियम-2000 में संघ और राज्यों के बीच करों से एकत्र राजस्व बाँटने के बारे में वैकल्पिक योजना पर अमल करने की व्यवस्था की गई है।
- इस योजना के अनुसार आयकर, उत्पादन शुल्कों, विशेषत: उत्पादन शुल्कों तथा रेल यात्री किरायों पर कर के बदले अनुदानों के लिए अब तक राज्य सरकारों को केंद्रीय करों तथा शुल्कों से एकत्र कुल राजस्व का जितना हिस्सा मिलता था अब उसका 26 प्रतिशत भाग राज्यों को दिया जाएगा।
82वां संविधान संशोधन (2000)
इस संशोधन के द्वारा राज्यों को सरकारी नौकरियों से आरक्षित रिक्त स्थानों की भर्ती हेतु प्रोन्नति के मामलों में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के अभ्यर्थियों के लिए न्यूनतम प्राप्ताकों में छूट प्रदान करने की अनुमति प्रदान की गई है.
83वां संविधान संशोधन (2000)
इस संशोधन द्वारा पंचायती राज सस्थाओं में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षण का प्रावधान न करने की छूट प्रदान की गई है. अरुणाचल प्रदेश में कोई भी अनुसूचित जाति न होने के कारन उसे यह छूट प्रदान की गई है.
84वां संविधान संशोधन (2001)
इस संशोधन अधिनियम द्वारा लोक सभा तथा विधान सभाओं की सीटों की संख्या में वर्ष 2016 तक कोई परिवर्तन न करने का प्रावधान किया गया है.
85वां संविधान संशोधन (2001)
सरकारी सेवाओं में अनुसूचित जाति जनजाति के अभ्यर्थियों के लिए पदोन्नति में आरक्षण की व्यवस्था.
86वां संविधान संशोधन (2002)
इस संशोधन अधिनियम द्वारा देश के 6 से 14 वर्ष तक के बच्चों के लिए अनिवार्य एवं निःशुल्क शिक्षा को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता देने संबंधी प्रावधान किया गया है, इसे अनुच्छेद 21 (क) के अंतर्गत संविधान जोड़ा गया है. इस अधिनियम द्वारा संविधान के अनुच्छेद 51 (क) में संशोधन किए जाने का प्रावधान है.
87वां संविधान संशोधन (2003)
परिसीमन में संख्या का आधार 1991 की जनगणना के स्थान पर 2001 कर दी गई है.
88वां संविधान संशोधन (2003)
- यह संशोधन केंद्र सरकार द्वारा सरकारी बजट में अधिसूचित होने की तारीख से प्रभावी माना जाएगा।
- संविधान के अनुच्छेद 268 के बाद निम्नलिखित अनुच्छेद जोड़ा जाए:
- “268 ए (1) सेवाओं पर कर भारत सरकार द्वारा लगाया जाएगा और इन करों का संग्रहण और उपयोग भारत सरकार और राज्यों द्वारा धारा (2) में दिए प्रावधानों के अनुसार किया जाएगा।”
- (2) किसी भी वित्तीय वर्ष में धारा (1) में दिए गए प्रावधानों के मुताबिक लगाए गए ऐसे किसी भी कर को- (क) भारत सरकार और राज्य एकत्रित करेंगे; (ख) भारत सरकार और राज्यों द्वारा इसका उचित इस्तेमाल किया जाएगा और यह संग्रहण और उपयोग उन सिद्धांतों के आधार पर किया जाएगा जैसा कि संसद के क़ानून के द्वारा निर्धारित किया हो।
- संविधान के अनुच्छेद 270 की धारा (1) में ‘अधिनियम 268 और 269’ के स्थान पर ‘अधिनियम 268, 268ए और 269’ लिखा जाए।
- संविधान की सातवीं अनुसूची में सूची I-केंद्रीय सूची में 92 बी के बाद ’92सी-सेवाओं पर कर’ को सूचीबद्ध किया जाए।
89वां संविधान संशोधन (2003)
अनुसूचित जनजाति के लिए पृथक राष्ट्रीय आयोग की स्थापना की व्यवस्था.
90वां संविधान संशोधन (2003)
असम विधान सभा में अनुसूचित जनजातियों और गैर अनुसूचित जनजातियों का प्रतिनिधित्व बरक़रार रखते हुए बोडोलैंड, टेरिटोरियल कौंसिल क्षेत्र, गैर जनजाति के लोगों के अधिकारों की सुरक्षा.
91वां संविधान संशोधन (2003)
दल बदल व्यवस्था में संशोधन, केवल सम्पूर्ण दल के विलय को मान्यता, केंद्र तथा राज्य में मंत्रिपरिषद के सदस्य संख्या क्रमशः लोक सभा तथा विधान सभा की सदस्य संख्या का 15 प्रतिशत होगा (जहां सदन की सदस्य संख्या 40-50 है, वहां अधिकतम 12 होगी).
92वां संविधान संशोधन (2003)
संविधान की आंठवीं अनुसूची में बोडो, डोगरी, मैथली और संथाली भाषाओँ का समावेश.
93वां संविधान संशोधन (2006)
शिक्षा संस्थानों में अनुसूचित जाति/ जनजाति और अन्य पिछड़े वर्गों के नागरिकों के दाखिले के लिए सीटों के आरक्षण की व्यवस्था, संविधान के अनुच्छेद 15 की धरा 4 के प्रावधानों के तहत की गई है.
94वां संविधान संशोधन (2006)
जनजातियां हेतु पृथक मंत्रालय(मध्य प्रदेश, छतीसगढ़, उड़ीसा व झारखण्ड)।
95वां संविधान संशोधन (2009)
लोकसभा व विधानसभाओं में एस.सी. व एस.टी. व आंग्ल भारतीयों के लिए आरक्षरण आरक्षण के लिए 10 वर्ष के लिए 2020 तक वृद्धि।
SC ST के लिए लोकसभा और विधानसभाओं में आरक्षण को 60 से 70 साल तक के लिए बढ़ाया गया
96वां संविधान संशोधन (2010)
इसमें उड़ीसा का नाम बदलकर ओड़िसा करने का उड़िया भाषा का नाम ऑडियो करने का प्रावधान किया गया है स्थान में वहां
97वां संविधान संशोधन (2011)
इसके द्वारा संविधान के भाग 9 में भाग लोक है जोड़ा गया और हर नागरिक को ऑपरेटिव सोसाइटी के गठन का अधिकार दिया गया
98वां संविधान संशोधन (2012)
कर्नाटक के राज्यपाल को हैदराबाद कर्नाटक क्षेत्र के लिए एक अलग विकास बोर्ड गठित करने का अधिकार दिया गया
99वां संविधान संशोधन (2014)
राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग का गठन सर्वोच्च न्यायालय द्वारा घोषित सन 2015 बांग्लादेश सीमा समझौता लागू किया गया
100वां संविधान संशोधन (2015)
बांग्लादेश के स्दाथ भूमि- सीमा सम्झौता (LBA) लागू किया गया
103वाँ संविधान संशोधन (2015)
जैन समुदाय को अल्पसंख्यक का दर्जा
108वां संविधान संशोधन (2008)
इसके अन्तर्गत लोक सभा व राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान है
109वाॅ संविधान संशोधन
पंचायती राज्य में महिला आरक्षण 33% से 50%
110वां संविधान संशोधन (2010)
स्थानीक निकायों में महिलाओं के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान।
111वां संविधान संशोधन
सहकारी संस्थाओं के नियमित चुनाव और उनमें आरक्षण।
112वां संविधान संशोधन
नगर निकायों में महिलाओं के 33 प्रतिशत के स्थान पर 50 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान।
113वां संविधान संशोधन
आठवीं अनुसूची में उडि़या भाषा के स्थान पर ओडिया किया जाना।
114वां संविधान संशोधन
उच्च न्यायालयों में जजों की संवानिवृति आयु 62 वर्ष से बढ़ाकर 65 वर्ष किया जाना।
115वां संविधान संशोधन
वस्तु एवं सेवा कर (GST) हेतु परिषद व विवाद निस्तारण प्राधिकरण की स्थापना।
116वां संविधान संशोधन 2011
लोकपाल बिल लोकसभा ने पारित कर दिया है, राज्यसभा में विचाराधीन है।
117वां संविधान संशोधन 2012
SC व ST को सरकारी सेवाओं में पदोन्नति आरक्षण
118वां संविधान संशोधन 2012 :
- पूर्वोत्तर क्षेत्र (पुनर्गठन) संशोधन विधेयक, 2012.
- मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम (संशोधन) विधेयक, 2012
- विनियोग (संख्या-4) विधेयक, 2012
- संविधान (118वां संशोधन) विधेयक, 2012
- गैर कानूनी गतिविधियां (रोकथाम) संशोधन विधेयक, 2012
- बैंकिंग कानून (संशोधन) विधेयक, 2012
- सुरक्षा हित एवं ऋण वसूली कानूनों का प्रवर्तन (संशोधन) विधेयक, 2012
119वां संविधान संशोधन 2013 :बांग्लादेश सीमा समझौते की ओर एक कदम
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने 28 मई 2015 को 119 वें संविधान संशोधन विधेयक, 2013 को मंजूरी दे दी। इससे पहले, यह विधेयक मई 2015 में संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित कर दिया गया था। यह विधेयक भारत बांग्लादेश के बीच भूमि सीमा समझौते (लैंड बाउंड्री एग्रीमेंट) से संबंधित है जिसके तहत दोनों देशों की सीमा के मध्य मौजूद कुछ क्षेत्रों के आदान-प्रदान का प्रावधान है। इस विधेयक के अनुपालन के लिए संविधान की पहली अनुसूची में संशोधन किया जायेगा।
विधेयक का प्रभाव
- इस विधेयक के प्रभावी होने के बाद बांग्लादेश को भारत से 111 परिक्षेत्र मिलेंगे (17160 एकड़) जबकि भारत को बांग्लादेश से 51 परिक्षेत्र (7110 एकड़) प्राप्त होंगे।
- असम में भारत को 470 एकड़ भूमि बांग्लादेश से प्राप्त होगी जबकि 268 एकड़ बांग्लादेश को दिया जायेगा।
- परिक्षेत्र प्रत्येक देश के एक छोटे भूभाग को कहते हैं जो दूसरे देश के अधिकार क्षेत्र में घिरा होता है। इस विधेयक में असम, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा तथा मेघालय में मौजूद परिक्षेत्र शामिल हैं।
120वां संविधान संशोधन 2013 :न्यायिक नियुक्तियां आयोग के गठन हेतु
राज्यसभा ने न्यायिक नियुक्तियां आयोग (जेएसी) के गठन के लिए संविधान (120वां संशोधन) विधेयक (The Constitution (120th Amendment) Bill 2013) 5 सितंबर 2013 को पारित कर दिया. यह आयोग सर्वोच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति की मौजूदा कोलेजियम (चयन मंडल) प्रणाली का स्थान लेगा. विधेयक के पक्ष में 131 और विरोध में 1 मत पड़े. भारतीय जनता पार्टी के सदस्यों के सदन से वॉक आउट कर दिया.
न्यायिक नियुक्ति आयोग विधेयक 2013 को संसद की स्थायी समिति में भेज दिया गया. इस विधेयक में प्रस्तावित आयोग के गठन की बात कही गई है. इससे पहले सरकार और विपक्ष कोलेजियम प्रणाली को समाप्त करने पर एक मत थे. कानून मंत्री कपिल सिब्बल ने संविधान संशोधन विधेयक पर चर्चा का जवाब देते हुए कहा कि न्यायाधीशों की नियुक्ति में कार्यपालिका की भूमिका जरूरी है. उन्होंने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति की वर्तमान प्रणाली ठीक से काम नहीं कर रही है.
कोलेजियम प्रणाली
कोलेजियम प्रणाली पांच न्यायाधीशों का एक समूह है. जिसमें सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश और सर्वोच्च न्यायालय के चार अन्य वरिष्ठ न्यायाधीश होते हैं. इसका अध्यक्ष सर्वोच्च न्यायालय का प्रधान न्यायाधीश होता है. यह समूह ही उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति की सिफारिश करता है.
121वां संविधान संशोधन 2014 :राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग विधेयक
उच्चतम न्यायालय और देश के विभिन्न राज्यों के उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए संविधान के अनुच्छेद 124(2) और 217 के निर्वचन पर आधारित ‘कॉलेजियम’ व्यवस्था की जगह अब ‘न्यायिक नियुक्ति आयोग’ का गठन किया जाएगा। इस व्यवस्था को स्थापित करने के लिए संसद ने संविधान संशोधन (121वां) विधेयक, 2014 के साथ-साथ न्यायिक नियुक्ति आयोग विधेयक, 2014 को भी पारित कर दिया है, किंतु संविधानिक व्यवस्था के अंतर्गत इन दोनों विधेयकों पर अभी कम से कम देश के आधे राज्यों की विधान सभाओं का अनुसमर्थन आवश्यक होने के कारण इस पर राष्ट्रपति का हस्ताक्षर नहीं हो सका है।
122वां संविधान संशोधन2016 :वस्तु एवं सेवा कर विधेयक (GST Bill)
भारत में वस्तु एवं सेवा कर विधेयक (Goods and Services Tax Bill या GST Bill) एक बहुचर्चित विधेयक है जिसमें 1 जुलाई 2017 से पूरे देश में एकसमान मूल्य वर्धित कर लगाने का प्रस्ताव है। इस कर को वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) कहा गया है। यह एक अप्रत्यक्ष कर होगा जो पूरे देश में निर्मित उत्पादों और सेवाओं के विक्रय एवं उपभोग पर लागू होगा। 03 अगस्त 2016 को राज्यसभा में यह बिल पारित हो गया।
123वां संविधान संशोधन 2017
राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा
124वां संविधान संशोधन 2019
सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को 10 फीसदी आरक्षण
संबंधित तथ्य
- 9 जनवरी, 2019 को राज्य सभा द्वारा 124 वां सविधान संशोधन विधेयक, 2019 को पारित करने के साथ ही संसद द्वारा इसे पारित किया गया।
- इससे पूर्व 8 जनवरी, 2019 को लोक सभा ने इस विधेयक को पारित कर दिया था।
- 7 जनवरी, 2019 को केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा उच्च जातियों के आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश के क्षेत्र में 10 प्रतिशत आरक्षण को स्वीकृति प्रदान की गई।
- यह विधेयक भारतीय संविधान के अनु. 15 और 16 में संशोधन प्रस्तावित करता है।
- यह पहला अवसर है जब गैर जाति, गैर-धर्म आधारित आरक्षण प्रदान किए जाने का प्रस्ताव किया गया है।
- इस आरक्षण प्रस्ताव के लागू होने के पश्चात आरक्षण कोटा वर्तमान 50 प्रतिशत से बढ़कर 60 प्रतिशत हो जाएगा।
- उल्लेखनीय है कि इस संविधान संशोधन विधेयक को संसद के दोनों सदनों द्वारा अलग-अलग उस सदन की कुल सदस्य संख्या के बहुमत द्वारा तथा उस सदन के उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों के कम-से-कम दो-तिहाई बहुमत द्वारा पारित कर दिया गया है।
125वां संविधान संशोधन 2019
केंद्र सरकार ने संसद में 125वां संवैधानिक संशोधन विधेयक प्रस्तुत किया है, इसका उद्देश्य उत्तर-पूर्वी भारत में 10 स्वायत्त परिषदों की वित्तीय तथा कार्यकारी शक्तियों में वृद्धि करना है।
संशोधन विधेयक की विशेषताएंइस संशोधन विधेयक से असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम के लगभग 1 करोड़ जनजातीय लोग प्रभावित होंगे, इस विधेयक के मुख्य बिंदु निम्नलिखित हैं :
- असम, मेघालय, मिजोरम और त्रिपुरा को अधिक वित्तीय संसाधन उपलब्ध करवाने के लिए अनुच्छेद 280 में संशोधन किया जाएगा, इससे स्वायत्त परिषद् अधिक विकास के कार्य कर सकेंगीं।
- मौजूदा स्वायत्त जिला परिषदों का नाम बदलकर स्वायत्त क्षेत्रीय परिषद् किया जाएगा क्योंकि इन परिषदों का क्षेत्राधिकार एक जिले से अधिक होगा।
- असम में कारबी आंगलोंग स्वायत्त क्षेत्रीय परिषद् तथा दिमा हसाओ स्वायत्त परिषद् के क्षेत्राधिकार में 30 अन्य विषयों को शामिल किया जायेगा।
- निम्न स्तर पर भी लोकतंत्र को मज़बूत बनाने के लिए निर्वाचित ग्रामीण म्युनिसिपल परिषद् के लिए भी संशोधन प्रस्तावित है।
- संशोधन के द्वारा ग्रामीण परिषदों को आर्थिक विकास, सामाजिक न्याय इत्यादि कार्य के लिए शक्तियां दी जायेंगी। यह शक्तियां कृषि, भूमि सुधार, सिंचाई जल प्रबंधन, पशु पालन, ग्रामीण विद्युतीकरण, छोटे स्तर के उद्योग तथा सामाजिक वानिकी इत्यादि कार्य के लिए दी जायेंगी।
126वां संविधान संशोधन विधेयक, 2019
- 12 दिसंबर, 2019 को राज्य सभा में भारतीय संविधान का 126वां संविधान संशोधन विधेयक, 2019 पारित किया गया।
- लोक सभा द्वारा यह विधेयक इससे पूर्व पारित किया जा चुका है।
- यह भारतीय संविधान का 104वां संशोधन है।
- इस विधेयक के तहत भारतीय संविधान के अनुच्छेद 334 में संशोधन किया गया है।
- इस विधेयक के तहत लोक सभा और विधानसभाओं में अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के लिए आरक्षण की अवधि को 10 वर्ष और बढ़ाया गया है।
- इसमें अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए लोक सभा और राज्य विधानसभाओं में 25 जनवरी, 2030 तक सीटों का आरक्षण बढ़ाने का प्रावधान किया गया है।
- पूर्व में इस आरक्षण की समय सीमा 25 जनवरी, 2020 तक थी।
- इस संविधान संशोधन विधेयक द्वारा संसद में एंग्लो इंडियन समुदाय के प्रदत्त आरक्षण को समाप्त कर दिया गया है।
- आरक्षण के तहत एंग्लो-इंडियन समुदाय के 2 सदस्य लोक सभा में प्रतिनिधित्व करते आ रहे थे।