
भारत की मिट्टियाँ Soils of India
मृदा शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के शब्द सोलम (Solum) से हुई है | जिसका अर्थ है फर्श (Floor) । मृदा, पृथ्वी को एक पतले आवरण में ढके रहती है तथा जल और वायु की उपयुक्त मात्रा के साथ मिलकर पौधों को जीवन प्रदान करती है भारत में सबसे अधिक (43.4%) भूभाग पर जलोढ़ मिट्टी पायी जाती है और अन्य मिट्टियों में काली मिट्टी, लाल मिट्टी और लैटराइट मिट्टी पायी जाती है।
भारत की मिट्टी के प्रकार Soils Types Of India
- मिट्टी को सर्वप्रथम 1879 ई० में डोक शैव ने मिट्टी का वर्गीकरण किया और मिट्टी को सामान्य और असामान्य मिट्टी में विभाजित किया।
- भारत की मिट्टियो को मुख्य रूप से 8 वर्गो में विभाजित किया गया है।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) ने भारत की मिट्टी को आठ समूहों में बांटा है
जल को अवषोषण करने की क्षमता सबसे अधिक दोमट मिट्टी में होती है। मृदा संरक्षण के लिए 1953 में केन्द्रीय मृदा संरक्षण बोर्ड की स्थापना की गयी थी। मरूस्थल की समस्या के अध्ययन के लिए राजस्थान के जोधपुर में अनुसंधान केन्द्र बनाये गये हैं।
- जलोढ़ मिट्टी या कछार मिट्टी (Alluvial Soil)
- काली मिट्टी या रेगुर मिट्टी (Black Soil)
- लाल मिट्टी एवं पिली मिट्टी (Red Soil)
- लैटराइट मिट्टी (Laterite)
- पर्वतीय मिट्टी (Mountain Soil)
- शुष्क एवं मरूस्थलीय मिट्टी (Dry and desert Soil)
- लवणीय मिट्टी या क्षारीय मिट्टी (Saline Soil or alkaline Soil)
- जैविक मिट्टी (Organic Soil)
1) जलोढ़ मिट्टी (दोमट मिट्टी) Jalod Mitti (Alluvial Soil)
- जलोढ़ मिट्टी क्षेत्रफल के दृष्टिकोण से भारत में सबसे अधिक क्षेत्रफल पर पाये जाते है।
- भारत के कुल क्षेत्रफल का लगभग 43.4 प्रतिशत (15 लाख वर्ग किमी) भाग पर जलोढ़ मिट्टी मिलते है।
- जलोढ़ मिट्टी का निर्माण नदियों के निक्षेपण से होता है।
- जलोढ़ मिट्टी में नाइट्रोजन एवं फॉस्फोरस की मात्रा कम होती है। यह कारण है कि जलोढ़ मिट्टी में यूरिया खाद डालना फसल के उत्पादन के लिए आवश्यक होता है।
- जलोढ़ मिट्टी में पोटाश एवं चूना की पर्याप्त मात्रा होती है।
- भारत में उत्तर का मैदान (गंगा का मैदान) सिंध का मैदान, ब्रह्मपुत्र का मैदान गोदावरी का मैदान, कावेरी का मैदान नदियों जलोढ़ मिट्टी के निक्षेपण से बने है।
- जलोढ़ की मिट्टी गेहूँ के फसल के लिए उत्तम माना जाता है। इसके अलावा इसमें धान एवं आलू की खेती भी की जाती है।
- जलोढ़ मिट्टी का निर्माण बलुई मिट्टी एवं चिकनी मिट्टी के मिलने से हुई है।
- जलोढ़ मिट्टी में ही बांगर एवं खादर मिट्टी आते है। बांगर पुराने जलोढ़ मिट्टी को एवं खादर नये जलोढ़ मिट्टी को कहा जाता है।
- जलोढ़ मिट्टी का रंग हल्के धूसर रंग का होता है।
- जलोढ़ मिट्टी में पोटाश व चूना प्रचुर मात्रा में पाया जाता है तथा फास्फोरस, नाइट्रोजन एवं जीवांश की कमी होती है
2) काली मिट्टी Kali Mitti (Black Soil)
- काली मिट्टी क्षेत्रफल की दृष्टिकोण से भारत में दूसरा स्थान रखता है।
- भारत में सबसे ज्यादा काली मिट्टी गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, और तमिलनाडु के लावा क्षेत्रों में पाया जाता है।
- काली मिट्टी का निर्माण ज्वालामुखी के उदगार के कारण बैसाल्ट चट्टान के निर्माण होने से हुई।
- बैसाल्ट के टूटने से काली मिट्टी का निर्माण होता है।
- दक्षिण भारत में काली मिट्टी को ‘रेगूर’ (रेगूड़) कहा जाता है।
- केरल में काली मिट्टी को ‘शाली’ कहा जाता है।
- उत्तर भारत में काली मिट्टी को ‘केवाल’ के नाम से जाना जाता है।
- काली मिट्टी में भी नाइट्रोजन एवं फॉस्फोरस की मात्रा कम होती है।
- इसमें लोहा, चूना, मैग्नीशियम एवं एलूमिना की मात्रा अधिक हाती है।
- काली मिट्टी में पोटाश की मात्रा भी पर्याप्त होती है।
- काली मिट्टी पैदा की जाने वाली मुख्य फसलें कपास, मूंगफली, सोयाबीन, तिलहन एवं गेहूं इत्यादि हैं।
- काली मिट्टी में लोहे की अंश अधिक होने के कारण इसका रंग काला होता है।
- काली मिट्टी में जल जल्दी नहीं सुखता है अर्थात इसके द्वारा अवषोषित जल अधिक दिनों तक बना रहता है, जिससे इस मिट्टी में धान की उपज अधिक होती है।
- काली मिट्टी सुखने पर बहुत अधिक कड़ी एवं भीगने पर तुरंत चिपचिपा हो जाती है।
- भारत में लगभग 5.46 लाख वर्ग किमी. (18 %) पर काली मिट्टी का विस्तार है।
3) लाल मिट्टी Lal Mitti (Red Soil)
- लाल मिट्टी का क्षेत्रफल के दृष्टिकोण से भारत में तीसरा स्थान है।
- भारत में 5.18 लाख वर्ग किमी. (15 .6%)पर लाल मिट्टी का विस्तार है।
- लाल मिट्टी का विस्तार मुख्य तौर से तमिलनाडु, कर्नाटक, दक्षिण पूर्वी महाराष्ट्र, ओडिशा, पूर्वी मध्य प्रदेश, बुन्देलखंड के कुछ भागों में तथा छोटा नागपुर में है।
- लाल मिट्टी का निर्माण ग्रेनाइट, नीस और सिस्ट जैसे खनिजों के टूटने से हुई है। ग्रेनाइट चट्टान आग्नेय शैल का उदाहरण है।
- भारत में क्षेत्रफल की दृष्टिकोण से सबसे अधिक क्षेत्रफल पर तमिलनाडु राज्य में लाल मिट्टी विस्तृत है।
- लाल मिट्टी के नीचे अधिकांश खनिज मिलते हैं।
- लाल मिट्टी में भी नाइट्रोजन एवं फॉस्फोरस की मात्रा कम होती है।
- लाल मिट्टी में मौजूद आयरनर ऑक्साइड(Fe2O3) के कारण इसका रंग लाल दिखाई पड़ता है।
- समें लोहे का अंश सबसे अधिक होता है।
- लाल मिट्टी फसल के उत्पादन के लिए अच्छी नहीं मानी जाती है।
- लाल मिट्टी में ज्यादा करके मोटे अनाज जैसे- ज्वार, बाजरा, मूँगफली, अरहर, तम्बाकू, मकई, इत्यादि होते है। कुछ हद तक धान की खेती इस मिट्टी में की जाती है, लेकिन काली मिट्टी के अपेक्षा धान का भी उत्पादन कम होता है।
पीली मिट्टी Pili Mitti (Yellow Soil)
- पीली मिट्टी भारत में सबसे अधिक पीली मिट्टी केरल राज्य में है।
- जिस क्षेत्र में लाल मिट्टी होते है एवं उस मिट्टी में अधिक वर्षा होती है तो अधिक वर्षा के कारण लाल मिट्टी के रासायनिक तत्व अलग हो जाते है, जिसमें उस मिट्टी का रंग पीला मिट्टी दिखाई देने लगता है।
4) लैटेराइट मिट्टी Laterite Mitti (Laterite Soil)
- लैटेराइट मिट्टी क्षेत्रफल के दृष्टिकोण से भारत में चौथा स्थान है।
- यह मिट्टी भारत में 1.26 लाख वर्ग किमी. क्षेत्र पर फैला हुआ है।
- लैटेराइट मिट्टी में लौह ऑक्साइड एवं अल्यूमिनियम ऑक्साइड की मात्रा अधिक होती है लेकिन नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटाष, चुना एवं कार्बनिक तत्वों की कमी पायी जाती है।
- लैटेराइट मिट्टी चाय, कॉॅफी कहबा, रबर, काजू और सिनकोना फसल के लिए सबसे अच्छी मानी जाती है।
- भारत में लैटेराइट मिट्टी असम, कर्नाटक एवं तमिलनाडु राज्य में अधिक मात्रा में पाये जाते है।
- लैटेराइट मिट्टी पहाड़ी एवं पठारी क्षेत्र में पाये जाते है।
- लैटेराइट मिट्टी काजू फसल के लिए सबसे अच्छी मानी जाती है।
- लैटेराइट में लौह ऑक्साइड एवं अल्यूमिनियम ऑक्साइड की मात्रा अधिक होती है, लेकिन इस मिट्टी में नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटास एवं चूना की कमी होती है।
- लैटेराइट मिट्टी की भी रंग लाल होती है।
- जब वर्षा होती है तब इस मिट्टी से चूना-पत्थर बहकर अलग हो जाती है, जिसके कारण यह मिट्टी सुखने पर लोहे के समान कड़ा हो जाती है।
- लैटेराइट मिट्टी सबसे ज्यादा केरल में पाई जाती है
5) पर्वतीय मिट्टी Parvtiy Mitti (Mountain soil)
- पर्वतीय मिट्टी को वनीय मिट्टी भी कहते हैं
- पर्वतीय मिट्टी में कंकड़ एवं पत्थर की मात्रा अधिक होती है।
- पर्वतीय मिट्टी में भी पोटाश, फास्फोरस एवं चूने की कमी होती है।
- पहाड़ी क्षेत्र में खास करके बागबानी कृषि होती है।
- पहाड़ी क्षेत्र में ही झूम खेती होती है।
- पर्वतीय मिट्टियाँ कश्मीर से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक फैली हई है।
- झूम खेती सबसे ज्यादा नागालैंड में की जाती है।
- पर्वतीय क्षेत्र में सबसे ज्यादा गरम मसाले की खेती की जाती है।
6) शुष्क एवं मरूस्थलीय मिट्टी Marusthliy Mittiy (Dry and desert Soil)
- शुष्क एवं मरूस्थलीय मिट्टी मुख्य रूप से राजस्थान, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, दक्षिणी पंजाब के भागों में पायीं जातीं हैं
- शुष्क एवं मरूस्थलीय मिट्टी में घुलनशील लवण एवं फास्फोरस की मात्रा अधिक होती है।
- इस मिट्टी में नाइट्रोजन एवं कार्बनिक तत्व की मात्रा कम होती है।
- शुष्क एवं मरूस्थलीय मिट्टी तेलहन के उत्पादन के लिए अधिक उपर्युक्त मानी जाती है।
- शुष्क एवं मरूस्थलीय मिट्टी जल की व्यवस्था होने के बाद मरूस्थलीय मिट्टी में भी अच्छी फसल की उत्पादन होती है।
- शुष्क एवं मरूस्थलीय मिट्टी में तिलहन के अलावा ज्वार, बाजरा एवं रागी की खेती होती है।
- पानी की कमी और अधिक तापमान के कारण ये मृदाएँ टूटकर बालू के कणों में विखंडित हो जातीं हैं
- शुष्क एवं मरूस्थलीय मिट्टी सबसे कम उपजाऊ होती है
7) लवणीय मिट्टी या क्षारीय मिट्टी Lavdiy Ya Chhariy Mitti (Saline Soil or Alkaline Soil)
- लवणीय मिट्टी को क्षारीय मिट्टी, रेह मिट्टी, उसर मिट्टी एवं कल्लर मिट्टी के नाम से भी जाना जाता है।
- क्षारीय मिट्टी उस क्षेत्र में पाये जाते हैं, जहाँ पर जल की निकास की सुविधा नहीं होती है।
- वैसे क्षेत्र की मिट्टी में सोडियम, कैल्सियम एवं मैग्नीशियम की मात्रा बढ़ जाती है, जिससे वह मिट्टी क्षारीय हो जाती है।
- क्षारीय मिट्टी का निर्माण समुद्रतटीय मैदान में अधिक होती है।
- क्षारीय मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा कम होती है।
- भारत में क्षारीय मिट्टी पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी राजस्थान एवं केरल के तटवर्ती क्षेत्र में पाये जाते हैं।
- क्षारीय मिट्टी में नारियल की अच्छी खेती होती है।
8) जैविक मिट्टी Jaivik Mitti (Organic Soil )
- जैविक मिट्टी को दलदली मिट्टी के नाम से भी जाना जाता है।
- जैविक मिट्टी भारत में केरल, उत्तराखंड एवं पश्चिम बंगाल के क्षेत्र में पाये जाते है।
- जैविक मिट्टी में भी फॉस्फोरस एवं पोटाश की मात्रा कम होती है, लेकिन लवण की मात्रा अधिक होती है।
- जैविक मिट्टी फसल के उत्पादन के लिए अच्छी मानी जाती है।