
भाग XIII – (अनुच्छेद 301 से 307): भारत के क्षेत्र के भीतर व्यापार, वाणिज्य और संभोग
यह हिस्सा भारत के पूरे क्षेत्र में व्यापार, वाणिज्य और संभोग की आजादी के बारे में बात करता है। यह प्रतिबंध लगाने और राज्यों की शक्तियों को लागू करने के लिए संसद की शक्ति का भी उल्लेख करता है। अनुच्छेद 307 अनुच्छेद 301 से 304 के प्रयोजनों के लिए व्यापार और वाणिज्य करने के लिए एक प्राधिकारी नियुक्त करता है। अनुच्छेद 306 को संविधान (सातवीं संशोधन) अधिनियम 1956 द्वारा निरस्त कर दिया गया था।
भाग XIV – (अनुच्छेद 308 से 323): संघ और राज्यों के तहत सेवाएं
अनुच्छेद 308 से 314 में केंद्रीय लोक सेवा आयोग और इसकी नियुक्तियां, कार्यकाल, बर्खास्तगी, और रैंक में कमी का विवरण दिया गया है।
अनुच्छेद- 315. संघ और राज्यों के लिए लोक सेवा आयोग
- इस अनुच्छेद के उपबंधों के अधीन रहते हुए, संघ के लिए एक लोक सेवा आयोग और प्रत्येक राज्य के लिए एक लोक सेवा आयोग होगा।
- दो या अधिक राज्य यह करार कर सकेंगे कि राज्यों के उस समूह के लिए एक ही लोक सेवा आयोग होगा और यदि इस आशय का संकल्प उन राज्यों में से प्रत्येक राज्य के विधान-मंडल के सदन द्वारा या जहाँ दो सदन हैं वहाँ प्रत्येक सदन द्वारा पारित कर दिया जाता है तो संसद उन राज्यों की आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए विधि द्वारा संयुक्त राज्य लोक सेवा आयोग की (जिसे इस अध्याय में संयुक्त आयोग कहा गया है) नियुक्ति का उपबंध कर सकेगी।
- पूर्वोक्त प्रकार की किसी विधि में ऐसे आनुषंगिक और पारिणामिक उपबंध हो सकेंगे जो उस विधि के प्रयोजनों को प्रभावी करने के लिए आवश्यक या वांछनीय हों।
- यदि किसी राज्य का राज्यपाल संघ लोक सेवा आयोग से ऐसा करने का अनुरोध करता है तो वह राष्ट्रपति के अनुमोदन से उस राज्य की सभी या किन्हीं आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए सहमत हो सकेगा।
- इस संविधान में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो संघ लोक सेवा आयोग या किसी राज्य लोक सेवा आयोग के प्रति निर्देशों का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वे ऐसे आयोग के प्रति निर्देश हैं जो प्रश्नगत किसी विशिष्ट विषय के संबंध में, यथास्थिति, संघ की या राज्य की आवश्यकताओं की पूर्ति करता है।
अनुच्छेद- 316. सदस्यों की नियुक्ति और पदावधि
लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष और अन्य सदस्यों की नियुक्ति, यदि वह संघ आयोग या संयुक्त आयोग है तो, राष्ट्रपति द्वारा और, यदि वह राज्य आयोग है तो, राज्य के राज्यपाल द्वारा की जाएगी
परंतु प्रत्येक लोक सेवा आयोग के सदस्यों में से यथाशक्य निकटतम आधे ऐसे व्यक्ति होंगे जो अपनी-अपनी नियुक्ति की तारीख पर भारत सरकार या किसी राज्य की सरकार के अधीन कम से कम दस वर्ष तक पद धारण कर चुके हैं और उक्त दस वर्ष की अवधि की संगणना करने में इस संविधान के प्रारंभ से पहले की ऐसी अवधि भी सम्मिलित की जाएगी जिसके दौरान किसी व्यक्ति ने भारत में क्राउन के अधीन या किसी देशी राज्य की सरकार के अधीन पद धारण किया है।
- यदि आयोग के अध्यक्ष का पद रिक्त हो जाता है या यदि कोई ऐसा अध्यक्ष अनुपस्थिति के कारण या अन्य कारण से अपने पद के कर्तव्यों का पालन करने में असमर्थ है तो, यथास्थिति, जब तक रिक्त पद पर खंड (1) के अधीन नियुक्त कोई व्यक्ति उस पद का कर्तव्य भार ग्रहण नहीं कर लेता है या जब तक अध्यक्ष अपने कर्तव्यों को फिर से नहीं संभाल लेता है तब तक आयोग के अन्य सदस्यों में से ऐसा एक सदस्य, जिसे संघ आयोग या संयुक्त आयोग की दशा में राष्ट्रपति और राज्य आयोग की दशा में उस राज्य का राज्यपाल इस प्रयोजन के लिए नियुक्त करे, उन कर्तव्यों का पालन करेगा।
लोक सेवा आयोग का सदस्य, अपने पद ग्रहण की तारीख से छह वर्ष की अवधि तक या संघ आयोग की दशा में पैंसठ वर्ष की आयु प्राप्त कर लेने तक और राज्य आयोग या संयुक्त आयोग की दशा में [बासठ वर्ष] की आयु प्राप्त कर लेने तक इनमें से जो भी पहले हो, अपना पद धारण करेगा।
परंतु –
- लोक सेवा आयोग का कोई सदस्य, संघ आयोग या संयुक्त आयोग की दशा में राष्ट्रपति को और राज्य आयोग की दशा में राज्य के राज्यपाल को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा अपना पद त्याग सकेगा;
- लोक सेवा आयोग के किसी सदस्य को, अनुच्छेद 317 के खंड (1) या खंड (3) में उपबंधित रीति से उसके पद से हटाया जा सकेगा।
कोई व्यक्ति जो लोक सेवा आयोग के सदस्य के रूप में पद धारण करता है, अपनी पदावधि की समाप्ति पर उस पद पर पुनर्नियुक्ति का पात्र नहीं होगा।
अनुच्छेद- 317. लोक सेवा आयोग के किसी सदस्य का हटाया जाना और निलंबित किया जाना
- 01) खंड (3) के उपबंधों के अधीन रहते हुए, लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष या किसी अन्य सदस्य को केवल कदाचार के आधार पर किए गए राष्ट्रपति के ऐसे आदेश से उसके पद से हटाया जाएगा जो उच्चतम न्यायालय को राष्ट्रपति द्वारा निर्देश किए जाने पर उस न्यायालय द्वारा अनुच्छेद 145 के अधीन इस निमित्त विहित प्रक्रिया के अनुसार की गई जाँच पर, यह प्रतिवेदन किए जाने के पश्चात् किया गया है कि, यथास्थिति, अध्यक्ष या ऐसे किसी सदस्य को ऐसे किसी आधार पर हटा दिया जाए।
- 02) आयोग के अध्यक्ष या किसी अन्य सदस्य को, जिसके संबंध में खंड (1) के अधीन उच्चतम न्यायालय को निर्देश किया गया है, संघ आयोग या संयुक्त आयोग की दशा में राष्ट्रपति और राज्य आयोग की दशा में राज्यपाल उसके पद से तब तक के लिए निलंबित कर सकेगा जब तक राष्ट्रपति ऐसे निर्देश पर उच्चतम न्यायालय का प्रतिवेदन मिलने पर अपना आदेश पारित नहीं कर देता है।
- 03) खंड (1) में किसी बात के होते हुए भी, यदि लोक सेवा आयोग का, यथास्थिति, अध्यक्ष या कोई अन्य सदस्य –
- दिवालिया न्यायनिर्णीत किया जाता है,या
- अपनी पदावधि में अपने पद के कर्तव्यों के बाहर किसी सवेतन नियोजन में लगता है,या
- राष्ट्रपति की राय में मानसिक या शारीरिक शैथिल्य के कारण अपने पद पर बने रहने के लिए अयोग्य है, तो राष्ट्रपति, अध्यक्ष या ऐसे अन्य सदस्य को आदेश द्वारा पद से हटा सकेगा।
- 04) यदि लोक सेवा आयोग का अध्यक्ष या कोई अन्य सदस्य, निगमित कंपनी के सदस्य के रूप में और कंपनी के अन्य सदस्यों के साथ सम्मिलित रूप से अन्यथा, उस संविदा या करार से, जो भारत सरकार या राज्य सरकार के द्वारा या निमित्त की गई या किया गया है, किसी प्रकार से संपृक्त या हितबद्ध है या हो जाता है या उसके लाभ या उससे उद्भूत किसी फायदे या उपलब्धि में भाग लेता है तो वह खंड (1) के प्रयोजनों के लिए कदाचार का दोषी समझा जाएगा।
अनुच्छेद- 318. आयोग के सदस्यों और कर्मचारिवृंद की सेवा की शर्तों के बारे में विनियम बनाने की शक्ति
संघ आयोग या संयुक्त आयोग की दशा में राष्ट्रपति और राज्य आयोग की दशा में उस राज्य का राज्यपाल विनियमों द्वारा –
- आयोग के सदस्यों की संख्या और उनकी सेवा की शर्तों का अवधारण कर सकेगा; और
- आयोग के कर्मचारिवृंद के सदस्यों की संख्या और उनकी सेवा की शर्तों के संबंध में उपबंध कर सकेगा:
परंतु लोक सेवा आयोग के सदस्य की सेवा की शर्तों में उसकी नियुक्ति के पश्चात् उसके लिए अलाभकारी परिवर्तन नहीं किया जाएगा।
अनुच्छेद- 319. आयोग के सदस्यों द्वारा ऐसे सदस्य न रहने पर पद धारण करने के संबंध में प्रतिषेध
पद पर न रह जाने पर –
- संघ लोक सेवा आयोग का अध्यक्ष भारत सरकार या किसी राज्य की सरकार के अधीन किसी भी और नियोजन का पात्र नहीं होगा;
- किसी राज्य लोक सेवा आयोग का अध्यक्ष संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष या अन्य सदस्य के रूप में अथवा किसी अन्य राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त होने का पात्र होगा, किन्तु भारत सरकार या किसी राज्य की सरकार के अधीन किसी अन्य नियोजन का पात्र नहीं होगा;
- संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष से भिन्न कोई अन्य सदस्य संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष के रूप में या किसी राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त होने का पात्र होगा, किन्तु भारत सरकार या किसी राज्य की सरकार के अधीन किसी अन्य नियोजन का पात्र नहीं होगा;
- किसी राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष से भिन्न कोई अन्य सदस्य संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष या किसी अन्य सदस्य के रूप में अथवा उसी या किसी अन्य राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त होने का पात्र होगा, किन्तु भारत सरकार या किसी राज्य की सरकार के अधीन किसी अन्य नियोजन का पात्र नहीं होगा।
अनुच्छेद- 320 लोक सेवा आयोगों के कृत्य
- संघ और राज्य लोक सेवा आयोगों का यह कर्तव्य होगा कि वे क्रमशः संघ की सेवाओं और राज्य की सेवाओं में नियुक्तियों के लिए परीक्षाओं का संचालन करें।
- यदि संघ लोक सेवा आयोग से कोई दो या अधिक राज्य ऐसा करने का अनुरोध करते हैं तो उसका यह भी कर्तव्य होगा कि वह ऐसी किन्हीं सेवाओं के लिए, जिनके लिए विशेष अर्हताओं वाले अभ्यर्थी अपेक्षित हैं, संयुक्त भर्ती की स्कीमें बनाने और उनका प्रवर्तन करने में उन राज्यों की सहायता करे।
यथास्थिति, संघ लोक सेवा आयोग या राज्य लोक सेवा आयोग से–
- सिविल सेवाओं में और सिविल पदों के लिए भर्ती की पद्धतियों से संबंधित सभी विषयों पर,
- सिविल सेवाओं और पदों पर नियुक्ति करने में तथा एक सेवा से दूसरी सेवा में प्रोन्नति और अंतरण करने में अनुसरण किए जाने वाले सिद्धांतों पर और ऐसी नियुक्ति, प्रोन्नति या अंतरण के लिए अभ्यर्थियों की उपयुक्तता पर,
- ऐसे व्यक्ति पर, जो भारत सरकार या किसी राज्य की सरकार की सिविल हैसियत में सेवा कर रहा है, प्रभाव डालने वाले, सभी अनुशासनिक विषयों पर, जिनके अंतर्गत ऐसे विषयों से संबंधित अभ्यावेदन या याचिकाएँ हैं,
- ऐसे व्यक्ति द्वारा या उसके संबंध में, जो भारत सरकार या किसी राज्य की सरकार के अधीन या भारत में क्राउन के अधीन या किसी देशी राज्य की सरकार के अधीन सिविल हैसियत में सेवा कर रहा है या कर चुका है, इस दावे पर कि अपने कर्तव्य के निष्पादन में किए गए या किए जाने के लिए तात्पर्यित कार्यों के संबंध में उसके विरुद्ध संस्थित विधिक कार्यवाहियों की प्रतिरक्षा में उसके द्वारा उपगत खर्च का, यथास्थिति, भारत की संचित निधि में से या राज्य की संचित निधि में से संदाय किया जाना चाहिए,
- भारत सरकार या किसी राज्य की सरकार या भारत में क्राउन के अधीन या किसी देशी राज्य की सरकार के अधीन सिविल हैसियत में सेवा करते समय किसी व्यक्ति को हुई क्षतियों के बारे में पेंशन अधिनिर्णित किए जाने के लिए किसी दावे पर और ऐसे अधिनिर्णय की रकम विषयक प्रश्न पर परामर्श किया जाएगा और इस प्रकार उसे निर्देशित किए गए किसी विषय पर तथा ऐसे किसी अन्य विषय पर, जिसे, यथास्थिति, राष्ट्रपति या उस राज्य का राज्यपाल उसे निर्देशित करे, परामर्श देने का लोक सेवा आयोग का कर्तव्य होगा :
- परंतु अखिल भारतीय सेवाओं के संबंध में तथा संघ के कार्यकलाप से संबंधित अन्य सेवाओं और पदों के संबंध में भी राष्ट्रपति तथा राज्य के कार्यकलाप से संबधित अन्य सेवाओं और पदों के संबंध में राज्यपाल उन विषयों को विनिर्दिष्ट करने वाले विनियम बना सकेगा जिनमें साधारणतया या किसी विशिष्ट वर्ग के मामले में या किन्हीं विशिष्ट परिस्थितियों में लोक सेवा आयोग से परामर्श किया जाना आवश्यक नहीं होगा।
- खंड (3) की किसी बात से यह अपेक्षा नहीं होगी कि लोक सेवा आयोग से उस रीति के संबंध में, जिससे अनुच्छेद 16 के खंड (4) में निर्दिष्ट कोई उपबंध किया जाना है या उस रीति के संबंध में, जिससे अनुच्छेद 335 के उपबंधों को प्रभावी किया जाना है, परामर्श किया जाए।
- राष्ट्रपति या किसी राज्य के राज्यपाल द्वारा खंड (3) के परंतुक के अधीन बनाए गए सभी विनियम, बनाए जाने के पश्चात् यथाशीघ्र, यथास्थिति, संसद के प्रत्येक सदन या राज्य के विधान-मंडल के सदन या प्रत्येक सदन के समक्ष कम से कम चौदह दिन के लिए रखे जाएँगे और निरसन या संशोधन द्वारा किए गए ऐसे उपांतरणों के अधीन होंगे जो संसद के दोनों सदन या उस राज्य के विधान-मंडल का सदन या दोनों सदन उस सत्र में करें जिसमें वे इस प्रकार रखे गए हैं।
अनुच्छेद- 321. लोक सेवा आयोगों के कृत्यों का विस्तार करने की शक्ति
- यथास्थिति, संसद द्वारा या किसी राज्य के विधान-मंडल द्वारा बनाया गया कोई अधिनियम संघ लोक सेवा आयोग या राज्य लोक सेवा आयोग द्वारा संघ की या राज्य की सेवाओं के संबंध में और किसी स्थानीय प्राधिकारी या विधि द्वारा गठित अन्य निगमित निकाय या किसी लोक संस्था की सेवाओं के संबंध में भी अतिरिक्त कृत्यों के प्रयोग के लिए उपबंध कर सकेगा।
अनुच्छेद- 322. लोक सेवा आयोगों के व्यय
- संघ या राज्य लोक सेवा आयोग के व्यय, जिनके अंतर्गत आयोग के सदस्यों या कर्मचारिवृंद को या उनके संबंध में संदेय कोई वेतन, भत्ते और पेंशन हैं, यथास्थिति, भारत की संचित निधि या राज्य की संचित निधि पर भारित होंगे।
अनुच्छेद-323. लोक सेवा आयोगों के प्रतिवेदन
- संघ आयोग का यह कर्तव्य होगा कि वह राष्ट्रपति को आयोग द्वारा किए गए कार्य के बारे में प्रतिवर्ष प्रतिवेदन दे और राष्ट्रपति ऐसा प्रतिवेदन प्राप्त होने पर उन मामलों के संबंध में, यदि कोई हों, जिनमें आयोग की सलाह स्वीकार नहीं की गई थी, ऐसी अस्वीकृति के कारणों को सपष्ट करने वाले ज्ञापन सहित उस प्रतिवेदन की प्रति संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष रखवाएगा।
- राज्य आयोग का यह कर्तव्य होगा कि वह राज्य के राज्यपाल को आयोग द्वारा किए गए कार्य के बारे में प्रतिवर्ष प्रतिवेदन दे और संयुक्त आयोग का यह कर्तव्य होगा कि ऐसे राज्यों में से प्रत्येक के, जिनकी आवश्यकताओं की पूर्ति संयुक्त आयोग द्वारा की जाती है, राज्यपाल को उस राज्य के संबंध में आयोग द्वारा किए गए कार्य के बारे में प्रतिवर्ष प्रतिवेदन दे और दोनों में से प्रत्येक दशा में ऐसा प्रतिवेदन प्राप्त होने पर, राज्यपाल उन मामलों के संबंध में, यदि कोई हों, जिनमें आयोग की सलाह स्वीकार नहीं की गई थी, ऐसी अस्वीकृति के कारणों को स्पष्ट करने वाले ज्ञापन सहित उस प्रतिवेदन की प्रति राज्य के विधान-मंडल के समक्ष रखवाएगा।
भाग XIV-A (अनुच्छेद 323 ए और 323 बी): ट्रिब्यूनल
यह हिस्सा प्रशासनिक ट्रिब्यूनल, उनकी रचना, कामकाजी, क्षेत्राधिकार, प्रक्रियाओं, शक्तियों और विभिन्न राज्यों में ट्रिब्यूनल द्वारा उपयोग किए जाने वाले अपवादों से संबंधित है। इसे 42 वें संशोधन द्वारा वर्ष 1976 में संघ, राज्यों या स्थानीय सरकारी कर्मचारियों के संबंध में विवादों और शिकायतों को सुनने के लिए पेश किया गया था।
भाग XV – (अनुच्छेद 324 से 329 ए): चुनाव निर्वाचन आयोग
यह हिस्सा चुनाव और चुनाव आयोग के आचरण से संबंधित है। यह चुनाव आयोग में निहित होने के लिए अधीक्षण, दिशा, और चुनावों के नियंत्रण का अधिकार देता है। तीन निर्वाचन आयुक्तों को उनमें से एक के साथ मुख्य निर्वाचन आयुक्त के रूप में नियुक्त किया जाना है जो चुनाव के संचालन के लिए जिम्मेदार होंगे। अनुच्छेद 329 ए को संविधान 44 वें संशोधन अधिनियम 1978 द्वारा निरस्त कर दिया गया था।
324. निर्वाचनों के अधीक्षण, निदेशन और नियंत्रण का निर्वाचन आयोग में निहित होना—
(1) इस संविधान केअधीन संसद् और प्रत्येक राज्य के विधान-मंडल के लिए कराए जाने वाले सभी निर्वाचनों के लिए तथा राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के पदों के लिए निर्वाचनों के लिए निर्वाचक-नामावली तैयारकराने का और उन सभी निर्वाचनों के संचालन का अधीक्षण, निदेशन और नियंत्रण, [1]* * *एक आयोग में निहित होगा (जिसे इस संविधान में निर्वाचन आयोग कहा गया है) ।
(2) निर्वाचन आयोग मुख्य निर्वाचन आयुक्त और उतने अन्य निर्वाचन आयुक्तों से, यदि कोई हों, जितने राष्ट्रपति समय-समय पर नियत करे, मिलकर बनेगा तथा मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति, संसद् द्वारा इस निमित्त बनाई गईविधि के उपबंधों के अधीन रहते हुए, राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी ।
(3) जब कोई अन्य निर्वाचन आयुक्त इस प्रकार नियुक्त किया जाता है तब मुख्य निर्वाचन आयुक्त निर्वाचन आयोग के अध्यक्ष के रूप में कार्य करेगा ।
(4) लोक सभा के और प्रत्येक राज्य की विधान सभा के प्रत्येक साधारण निर्वाचन से पहले तथा विधान परिषद् वाले प्रत्येक राज्य की विधान परिषद् के लिए प्रथम साधारण निर्वाचन से पहले और उसके पश्चात् प्रत्येक द्विवार्षिक निर्वाचन से पहले, राष्ट्रपति निर्वाचन आयोग से परामर्श करने के पश्चात्, खंड (1) द्वारा निर्वाचन आयोग को सौपें गए कॄत्यों के पालन में आयोग की सहायता के लिए उतने प्रादेशिक आयुक्तों की भी नियुक्ति कर सकेगा जितने वह आवश्यक समझे ।
(5) संसद् द्वारा बनाई गई किसी विधि के उपबंधों के अधीन रहते हुए, निर्वाचन आयुक्तों और प्रादेशिक आयुक्तों की सेवा की शर्तें और पदावधि ऐसी होंगी जो राष्ट्रपति नियम द्वारा अवधारित करे :
परन्तु मुख्य निर्वाचन आयुक्त को उसके पद से उसी रीति से और उन्हीं आधारों पर ही हटाया जाएगा , जिस रीति से और जिन आधारों पर उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश को हटाया जाता है अन्यथा नहीं और मुख्य निर्वाचन आयुक्त की सेवा की शर्तों में उसकी नियुक्ति के पश्चात् उसके लिए अलाभकारी परिवर्तन नहीं किया जाएगा :
परन्तु यह और कि किसी अन्य निर्वाचन आयुक्त या प्रादेशिक आयुक्त को मुख्य निर्वाचन आयुक्त की सिफारिश पर ही पद से हटाया जाएगा , अन्यथा नहीं ।
(6) जब निर्वाचन आयोग ऐसा अनुरोध करे तब, राष्ट्रपति या किसी राज्य का राज्यपाल [2]* * * निर्वाचन आयोग या प्रादेशिक आयुक्त को उतने कर्मचारिवॄन्द उपलब्ध कराए गा जितने खंड (1) द्वारा निर्वाचन आयोग को सौपें गए कॄत्यों के निर्वहन के लिए आवश्यक हों ।
325. धर्म, मूलवंश, जाति या लिंग के आधार पर किसी व्यक्ति का निर्वाचक-नामावली में साम्मिलित किए जाने के लिए अपात्र न होना और उसके द्वारा किसी विशेष निर्वाचक-नामावली में साम्मिलित किए जाने का दावा न किया जाना—संसद् के प्रत्येक सदन या किसी राज्य के विधान-मंडल के सदन या प्रत्येक सदन के लिए निर्वाचन के लिए प्रत्येक प्रादेशिक निर्वाचन-क्षेत्र के लिए एक साधारण निर्वाचक-नामावली होगी और केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या इनमें से किसी के आधार पर कोई व्यक्ति ऐसी किसी नामावली में साम्मिलित किए जाने के लिए अपात्र नहीं होगा या ऐसे किसी निर्वाचन-क्षेत्र के लिए किसी विशेष निर्वाचक-नामावली में साम्मिलित किए जाने का दावा नहीं करेगा ।
326. लोक सभा और राज्यों की विधान सभाओं के लिए निर्वाचनों का वयस्क मताधिकार के आधार पर होना—लोक सभा और प्रत्येक राज्य की विधान सभा के लिए निर्वाचन वयस्क मताधिकार के आधार पर होंगे अर्थात् प्रत्येक व्यक्ति , जो भारत का नागरिक है और ऐसी तारीख को, जो समुचित विधान-मंडल द्वारा बनाई गई किसी विधि द्वारा या उसके अधीन इस निमित्त नियत की जाए, कम से कम [3][अठारह वर्ष] की आयु का है और इस संविधान या समुचित विधान-मंडल द्वारा बनाई गई किसी विधि के अधीन अनिवास, चित्तविकॄति, अपराध या भ्रष्ट या अवैध आचरण के आधार पर अन्यथा निरर्हित नहीं कर दिया जाता है, ऐसे किसी निर्वाचन में मतदाता के रूप में रजिस्ट्रीकॄत होने का हकदार होगा ।
327. विधान-मंडल के लिए निर्वाचनों के संबंध में उपबंध करने की संसद् की शक्ति —इस संविधान के उपबंधों के अधीन रहते हुए , संसद् समय-समय पर, विधि द्वारा, संसद् के प्रत्येक सदन या किसी राज्य के विधान-मंडल के सदन या प्रत्येक सदन के लिए निर्वाचनों से संबंधित या संसक्त सभी विषयों के संबंध में, जिनके अंतर्गत निर्वाचक-नामावली तैयार कराना, निर्वाचन-क्षेत्रों का परिसीमन और ऐसे सदन या सदनों का सम्यक् गठन सुनिाश्चित करने के लिए अन्य सभी आवश्यक विषय हैं, उपबंध कर सकेगी ।
328. किसी राज्य के विधान-मंडल के लिए निर्वाचनों के संबंध में उपबंध करने की उस विधान-मंडल की शक्ति —इस संविधान के उपबंधों के अधीन रहते हुए और जहां तक संसद् इस निमित्त उपबंध नहीं करती है वहां तक, किसी राज्य का विधान-मंडल समय-समय पर, विधि द्वारा, उस राज्य के विधान-मंडल के सदन या प्रत्येक सदन के लिए निर्वाचनों से संबंधित या संसक्त सभी विषयों के संबंध में, जिनके अंतर्गत निर्वाचक-नामावली तैयार कराना और ऐसे सदन या सदनों का सम्यक् गठन सुनिाश्चित करने के लिए अन्य सभी आवश्यक विषय हैं, उपबंध कर सकेगा ।
329. निर्वाचन संबंधी मामलों में न्यायालयों के हस्तक्षेप का वर्जन—[4][इस संविधान में किसी बात के होते हुए भी [5]* * *–]
(क) अनुच्छेद 327 या अनुच्छेद 328 के अधीन बनाई गई या बनाई जाने के लिए तात्पर्यित किसी ऐसी विधि की विधिमान्यता, जो निर्वाचन-क्षेत्रों के परिसीमन या ऐसे निर्वाचन-क्षेत्रों को स्थानों के आबंटन से संबंधित है, किसी न्यायालय में प्रश्नगत नहीं की जाएगी ;
(ख) संसद् के प्रत्येक सदन या किसी राज्य के विधान-मंडल के सदन या प्रत्येक सदन के लिए कोई निर्वाचन ऐसी निर्वाचन अर्जी पर ही प्रश्नगत किया जाएगा , जो ऐसे प्राधिकारी को और ऐसी रीति से प्रस्तुत की गई है जिसका समुचित विधान-मंडल द्वारा बनाई गई विधि द्वारा या उसके अधीन उपबंध किया जाए, अन्यथा नहीं ।
[6]329क. [प्रधान मंत्री और अध्यक्ष के मामले में संसद् के लिए निर्वाचनों के बारे में विशेष उपबंध ]—संविधान (चवालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 36 द्वारा (20-6-1979 से) निरसित ।
[1] संविधान (उन्नीसवां संशोधऩ) अधिनियम, 1966 की धारा 2 द्वारा “जिसके अंतर्गत संसद् के और राज्य के विधान-मंडलों के निर्वाचनों से उदभूत या संसक्त संदेहों और विवाद के निर्णय के लिए निर्वाचन न्यायाधिकरण की नियुक्ति भी है” शब्दों का लोप किया गया ।
[2] संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “या राजप्रमुख” शब्दों का लोप किया गया ।
[3] संविधान (इकसठवां संशोधन) अधिनियम, 1988 की धारा 2 द्वारा “इक्कीस वर्ष ” के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
[4] संविधान (उनतालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1975 की धारा 3 द्वारा कुछ शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित ।
[5] संविधान (चवालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 35 द्वारा (20-6-1979 से) “परंतु अनुच्छेद 329क के उपबंधों के अधीन रहते हुए” शब्दों, अंकों और अक्षर का लोप किया गया ।
[6] संविधान (उनतालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1975 की धारा 4 द्वारा अंतःस्थापित ।
भाग XVI – (अनुच्छेद 330 से 342): कुछ वर्गों से संबंधित विशेष प्रावधान
यह हिस्सा अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, और एंग्लो-भारतीय प्रतिनिधित्व के लिए कुछ प्रावधानों से संबंधित है। अनुच्छेद 330 और 332 अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए क्रमशः लोगों और विधान सभाओं के लिए आरक्षित सीटें, जबकि अनुच्छेद 331 और 333 उन्हें एंग्लो-इंडियन समुदाय के लिए आरक्षित करते हैं। अनुच्छेद 338 अनुसूची जाति के राष्ट्रीय आयोग की स्थापना का विवरण देता है जबकि पिछड़ा वर्ग की शर्तों की जांच करने के लिए अनुच्छेद 339 से 342 प्रक्रियाओं को निर्धारित करता है।
भाग XVII – (लेख 343 से 351): आधिकारिक भाषा
इस भाग के अनुच्छेद 343 में कहा गया है कि संघ की आधिकारिक भाषा देवनागरी लिपि में हिंदी होगी। अनुच्छेद 344 आधिकारिक भाषा पर एक कमीशन और संसद की समिति प्रदान करता है। अनुच्छेद 345 से 347 क्षेत्रीय भाषाओं की भूमिकाओं का वर्णन करता है जबकि लेख 348 से 351 नीचे दिए गए हैं अधिनियमों और बिलों में सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालय में उपयोग की जाने वाली भाषाएं। इन अनुच्छेदों में हिंदी और अन्य भाषाओं के विकास के कुछ निर्देश भी शामिल हैं।
भाग XVIII – (लेख 352 से 360): आपातकालीन प्रावधान
आपातकाल के प्रावधान जर्मन संविधान से उधार लिया गया है। अनुच्छेद 352 आपातकाल की खरीद के प्रक्रिया और अन्य विवरणों का वर्णन करता है जबकि अनुच्छेद 353 आपातकाल के प्रभाव का वर्णन करता है। अनुच्छेद 354 से 359 आपातकाल के दौरान आवेदन, कर्तव्यों, प्रावधानों और विधायी शक्तियों का अभ्यास विवरण। अनुच्छेद 360 वित्तीय आपातकाल के प्रावधान प्रदान करता है।
भाग XIX – (लेख 361 से 367): विविध
अनुच्छेद 361 राष्ट्रपति और अन्य विधायकों की सुरक्षा के लिए प्रदान करता है। अनुच्छेद 362 जिसे संविधान (छठी छठी संशोधन) अधिनियम 1971 द्वारा निरस्त किया गया था, के पास भारतीय राज्यों के शासकों के अधिकार और विशेषाधिकार थे। इसी प्रकार, अनुच्छेद 363 ए शासकों और उनके निजी पर्स के समाप्ति के लिए दी गई किसी भी मान्यता को समाप्त कर देता है। अनुच्छेद 366 संविधान में उपयोग किए गए शब्दों की कुछ सामान्य परिभाषा देता है।
भाग XX – (अनुच्छेद 368): संविधान में संशोधन
संविधान के सबसे महत्वपूर्ण लेखों में से एक संविधान को संविधान और प्रक्रिया में संशोधन करने की शक्ति प्रदान करता है। यहां हमें केशवनंद भारती बनाम केरल राज्य के प्रसिद्ध मामले को ध्यान में रखना चाहिए जिसमंक सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संविधान की मूल संरचना में संशोधन नहीं किया जा सकता है।
भाग XXI – (अनुच्छेद 369 से 392): अस्थायी, संक्रमणकालीन और विशेष प्रावधान
अनुच्छेद 369 राज्य सूची और समवर्ती सूची में कुछ मामलों के संबंध में कानून बनाने के लिए संसद को अस्थायी शक्ति देता है। बहुत बहस और विवादास्पद अनुच्छेद 370 जम्मू-कश्मीर राज्य के संबंध में प्रावधानों के लिए विशेष लेकिन अस्थायी स्थिति प्रदान करता है। यह अनुच्छेद राज्य सूची में दिए गए मामलों को बनाने की अनुमति नहीं देता है। अनुच्छेद राज्य विधानमंडल को विशेष शक्तियां भी देता है।
अनुच्छेद 371 और 371 ए क्रमशः गुजरात, महाराष्ट्र और नागालैंड राज्य को विशेष विशेषाधिकार और प्रावधान देता है। असम के लिए अनुच्छेद 371 बी, मणिपुर के लिए 371 सी, आंध्र प्रदेश के लिए 371 डी और ई, सिक्किम के लिए 371 एफ, मिजोरम के लिए 371 जी, अरुणाचल प्रदेश के लिए 371 एच और गोवा के लिए 371 आई।
भाग XXII – (अनुच्छेद 393 से 395): हिंदी में लघु शीर्षक, प्रारंभ, आधिकारिक पाठ और दोहराना
संविधान को अपने “लघु शीर्षक” रूप में भारत का संविधान कहा जा सकता है। अनुच्छेद 394 का कहना है कि संविधान 26 जनवरी 1950 को लागू होगा। अनुच्छेद 394 ए हिंदी भाषा में आधिकारिक पाठ की वार्ता। अनुच्छेद 395 ने भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 और भारत सरकार अधिनियम 1935 को एक साथ समर्थन देने वाले सभी अधिनियमों के साथ दोहराया।
पिछला – Part 11