
छत्तीसगढ़ का इतिहास भारत के इतिहास से प्रभावित रहा है जो मानव सभ्यता के प्रारंभिक विकास से लेकर आधुनिक काल तक के लंबे इतिहास का साक्षी रहा है।
लिपि के विकास के आधार पर छत्तीसगढ़ के इतिहास को तीन भागों में वर्गीकृत किया गया है :-
- प्रागैतिहासिक काल
- आद्य ऐतिहासिक काल (2300 से 1750 ई.पू.)
- ऐतिहासिक काल (1500 से 600 ई.पू.)
छत्तीसगढ़ का प्रागैतिहासिक काल
प्रागौतिहासिक काल के अधिकतर प्रमाण उत्तर छत्तीसगढ़ से प्राप्त हुई। प्रागौतिहासिक काल को पंडित लोचन प्रसाद पांडेय ने “मानव जाती की सभ्यता का जन्म स्थान माना है ” इसका प्रमाण प्राचीनतम आदिवासी क्षेत्रो से प्राप्त हुई है।
यहाँ के गुफाओ एवं शैल चित्रों के रूप में अपना प्राचीनतम स्मृति का ज्ञान कराती है। यहाँ की गुफाओ में उकेरे गए शैल चिंत्रो की खोज सबसे पहले इंजिनियर अमरनाथ दत्त ने 1910
में किया था सिंघनपुर की गुफाओ में लालरंग से पशुओ और सरीसृपों चिन्हो का रूपांकन है जिसमे मनुष्य के चिंत्रों को रेखा के द्वारा खिंच कर बनाया गया है।
छत्तीसगढ़ में प्रागैतिहासिक काल को चार भागों में वर्गीकृत किया गया है :-
- पूर्व पाषाण काल
- मध्य पाषाण काल
- उत्तर पाषाण काल
- नवपाषाण काल
1).पूर्व पाषाण काल (पूरा पाषाण काल)
- रायगढ़ जिले के सिंघनपुर की गुफा पाषाण कालीन शैल चित्रों के लिए प्रसिद्ध है।
2). मध्य पाषाण काल
- रायगढ़ जिले के कबरा पहाड़ की गुफा से लाल रंग के छिपकली’ घड़ियाल ‘कुल्हाड़ी’ सांभर आदि के चित्रकारी अवशेष मिले है।
3). उत्तर पाषाण काल
- उत्तर पाषाण काल के लिए बिलासपुर जिले का धनपुर रायगढ़ जिले के महानदी घाटी प्रसिद्ध है।
4). नवपाषाण काल
- नवपाषाण कालीन साक्ष्य रायगढ़ जिले के टेरम, दुर्ग जिले के अर्जुनी और राजनांदगांव जिले के चितवा डोंगरी से प्राप्त हुए है।
छत्तीसगढ़ में प्रागैतिहासिक काल के प्राप्त साक्ष्य
पाषाण घेरे
- बालोद के करहिभदर, चिरचारी, सोरर से शव को दफना कर बड़े पत्थरों से ढक दिया जाता था।
- कोंडागांव के गढ़धनोरा में मध्य पाषाण युगीन 500 स्मारक प्राप्त हुए हैं। इसकी खोज रमेन्द्र नाथ मिश्र व कामले ने किया है।
शैल चित्र
- कबरापहाड़ (रायगढ़)-सर्वाधिक शैल चित्र प्राप्त हुए है।
लोहे का साक्ष्य
- बालोद जिले के करहिभदर, चिरचारी, सोरर, करकाभाठा से लोहे के औजार व मृदभांड प्राप्त हुआ है।
अन्य महत्वपूर्ण बिंदु
- सबसे लंबी गुफा बोतल्दा की गुफा हैं।
- सर्वाधिक शैल चित्र कबरापहाड़ की गुफा से प्राप्त हुई है।
- सर्वाधिक जानकारी कबरा पहाड़ की गुफा से प्राप्त हुई है।
- प्रागैतिहासिक काल के सर्वाधिक शैलचित्र रायगढ़ जिले में मिले हैं
- प्रागैतिहासिक सबसे प्राचीन गुफा सिंघनपुर की गुफा फिर कबरा पहाड़ की गुफा है।
- छत्तीसगढ़ के शैल चित्रों की खोज सर्वप्रथम 1910 में अंग्रेज इतिहासकार एंडरसन ने किया था।
- नवपाषाणिक अवशेषों की सर्वप्रथम जानकारी डॉक्टर रविंद्र नाथ मिश्रा डॉक्टर भगवान सिंह ने दिया।
छत्तीसगढ़ का आद्यऐतिहासिक काल (2300 से 1750 ई.पू.)
- आद्यऐतिहासिक काल (2300 से 1750 ई.पू.) में सिंधु घाटी सभ्यता को रखा गया है। इस काल से प्राप्त लिपि भाव चित्रात्मक होने के कारण इसे अभी तक पढा नहीं जा सका है।
- यह केवल भारत के पंच प्रदेशों तक ही सीमित था और हमारे छत्तीसगढ इससे अछुता था। इसलिए यहां इसके कोई भी प्रमाण अभी तक नहीं मिले है।
छत्तीसगढ़ का ऐतिहासिक काल (1500 से 600 ई.पू.)
इस काल के अंतर्गत वैदिक सभ्यता को रखा गया है जिसे 2 भागो – ऋग्वैदिक और उत्तर वैदिक काल में बाटा गया है।
1. ऋग्वैदिक काल (1500 से 1000 ई.पू.)
ऋग्वैदिक काल में ऋग्वेद का रचना हुवा एवं सभ्यता के निर्माता आर्य थे। आर्य पंचनद क्षेत्र उत्तर भारत तक ही सिमित थे।
2. उत्तर वैदिक काल (1000 से 600 ई.पू.)
- उत्तर वैदिक काल से छत्तीसगढ़ का उल्लेख मिलना प्रारंभ होता है
- उत्तर वैदिक काल में आर्यो का विस्तार मध्य भारत में होने लगा तथा नर्मदा नदी को रेवा नदी के रूप में उल्लेखित किया गया है अतः कह सकते है की उत्तर वैदिक काल में छत्तीसगढ़ का वर्णन मिलता है।