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छत्तीसगढ़ की चित्रकला एवं चित्रकार – Chhattisgarh Painting and Painter

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छत्तीसगढ़ की चित्रकला एवं चित्रकार - Chhattisgarh Painting and Painter

छत्तीसगढ़ की चित्रकला Chhattisgarh Painting

  • लोककला के माध्यम से ही किसी भी राज्य अथवा देश की सामाजिक, राजनैतिक, एतिहासिक परंपराओं को जाना जा सकता है।
  • छत्तीसगढ़ की लोककलाएं यहां की सांस्कृतिक विरासत का प्रतिबिंब है। 
  • छत्तीसगढ़ की लोक चित्र परंपरा सर्वाधिक कल्पना शील है। 
  • छत्तीसगढ़ में लोक चित्रकला के कुछ प्रमुख रूप निम्न लिखित है।

1). आठे कन्हैया Aathe Kanhaiya

आठे कन्हैया Aathe Kanhaiya
  • कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर यह मिट्टी के रंगों से बनाया जाने वाला कथानक चित्र है। 
  • इसमें कृष्ण जन्म की कथा का वण्रन होता है।
  • महिलाये कृष्ण की 8 पुतलियां की पूजा करती है चित्र बनाकर जो कृष्ण के पहले जन्में शिशुओं का प्रतीक है।

2). रंगोली (चौक) Rangoli (check) 

रंगोली (चौक) Rangoli (check) 
  • भारतीय परंपरा में चौक (रंगोलियों) का विशिष्ट स्थान है। 
  • छत्तीसगढ़ में इसे कई अलग नामों व पर्वों के आधार पर बनाया जाता है। 
  • जैसे- डंडा चौक, बिहई चौक, छट्ठी चौक, गुरूवारिया चौक, बेलिया, चांदनी, संकरी, गोलबारी, कादापान, कुसियारा, पुरइनपान आदि। 
  • चौक में पग, चिन्ह, बेलबूटे, ज्यामितिय आकृतियां एवं श्रृखलाबद्ध सज्जा उकेरी जाती है।

3). डंडा रंगोली चौक Danda Rangoli

डंडा रंगोली चौक Danda Rangoli
  • सामान्य पूजा पाठ या किसी खास प्रयोजन जैसे दशहरा की पूजा में इस चौक को बनाया जाता है। 
  • आटे से या कभी-कभी धान से इस चौक को बनाया जाता है। 
  • इसके ऊपर पीढ़ा रखकर पूजा प्रतिष्ठा की जाती है। इसे सुहागिन महिलायें करती है। इसे डंडा चौक कहते है।

4). बिहई रंगोली (चौक) Bihai Rangoli (Chowk)

  • विवाह के समय इस प्रकार के चौक को मायन के दिन पांच दल वाला चैक कन्या तथा सात दल वाला चौक वर पक्ष वालों के घर बनाया जाता है।
  • इसमें चावल आटे का प्रयोग करते हैं।

5). सवनाही Sawnahi

सवनाही Sawnahi
  • छत्तीसगढ़ की महिलायें श्रावण मास की हरेली अमावस्या को घर के मुख्य द्वार पर गोबर से सवनाही का अंकन करती है। 
  • इसमें चार अंगुलियों से घर के चारों ओर मोटी रेखा से घेरा जाता है और मानव, पशुओं तथा शेर के शिकार का चित्रांकन किया जाता है।
  • हरेली के अवसर पर जादू टोने की मान्यता को ध्यान में रखते हुए उससे बचाव के लिये ये अंकन किया जाता है।

6). हरतालिका Hartalika 

 हरतालिका Hartalika 
  • तीजा के अवसर पर महिलाओं द्वारा हरतालिका का चित्रांकन किया जाता है।

7). नोहडोरा Nahdora 

नोहडोरा Nahdora 
  • नया घर बनाते समय दीवारों पर गहन अलंकरण नोहडोरा डालना कहलाता है। 
  • यह कला गीली दिवारों पर बनायी जाती है। इसमें पशु-पक्षी, फूल पत्तियां, पेड़-पौधे आदि का चित्रण किया जाता है।

8). गोवर्धन चित्रकारी Govardhan Painting

गोवर्धन चित्रकारी 
  • गोवर्धन पूजा के समय धन की कोठरी में समृद्धि की कामना के उद्देश्य से अनेक प्रकार के चित्र बनाकर अन्न लक्ष्मी की पूजा की जाती है।

9). घर सिंगार Ghar Singar 

घर सिंगार Ghar Singar
  • संपूर्ण छत्तीसगढ़ में घर सजाने की कला देखने की मिलती है। 
  • लिपी हुई दीवार पर गेरू, काजल, पीली मिट्टी आदि से विभिन्न ज्यामितियां आकृतियां रूपांकन एवं रंग संयोजन किया जाता है।

10). विवाह चित्र Vivah Chitr 

विवाह चित्र Vivah Chitr
  • विवाह आदि अवसरों पर छत्तीसगढ़ में चितेरे जाति के लोग दीवारों पर चित्रांकन के लिये आमंत्रित किये जाते हैं ये दीवारों पर द्वारों पर देवी-देवताओं, पशु पक्षियों, विवाह प्रसंग आदि का अंकन करते हैं।

11). गोदना Godna 

 गोदना Godna
  • लोक चित्र शैली का एक अनूठा उदाहरण गोदना भी है। 
  • छत्तीसगढ़ की महिलाएं आभूषण स्वरूप विभिन्न आकारों में गोदना गुदवाते हैं। 
  • उनकी दृष्टि में गोदना चिरसंगिनी हैं, जो मृत्यु पर्यन्त उनके साथ रहता है।
  • गोदना लोक जीवन का प्रतीक एवं जीवन्त लोक चित्रकला का उदाहरण है।

12). बालपुर चित्रकला Balpur Chitrkla

बालपुर चित्रकला Balpur Chitrkla
  • उड़ीसा के बालपुर से आए चितेर जाति के लोग अपनी बालपुर चित्रकला के लिए जाने जाते हैं।
  • इसमें पौराणिक चित्रकथाओं का अंकन किया जाता है।


13). भित्ति चित्र Bhitti chitr 

भित्ति चित्र Bhitti chitr 
  • रायगढ़ के पास स्थित कबरा पहाड़ की गुफाओं की भित्ती शैली इसके स्पष्ट उदाहरण है।

14). हाथा Hatha 

  • हाथ से बनाए गए थापों को हाथा कहा जाता है।

छत्तीसगढ़ के चित्रकार Chhattisgarh Painter

1). बेलगूर मंडावी

  • नाराणयपुर जिले के गढ़बंगाल के निवासी बेलगूर मंडावी मुड़िया जनजाति के है। ये जनजाति जीवन के राष्ट्रीय चित्रकार है।

2). जनगण सिंह श्याम

  • जनगण सिंह श्याम गोंडी चित्रकारी के पहले कलाकार है।
  • इनकी लोककला का प्रमुख विषय ग्रामीण जीवन रहा है।
  • इनके चित्रां में जनजातियों का जीवन विविधता के साथ एक संपूर्ण इकाई के रूप में जीवन्त हो उठता है।

3). आनंद सिंह श्याम और श्रीमती कलावती गोड़

  • आनंद सिंह श्याम और श्रीमती कलावती गोड़ ये दोनों पति-पत्नि ने गोंड़ी अलंकरण परंपरा को विषय क्षेत्र बनाते हुए अनेक चित्र उकेरे है। 

4). नर्मदा सोनसाय

  • रायपुर निवासी श्री सोनसाय जनजातियों में प्रचलित चित्रों की निपुर्ण कलाकार है।

5). श्री निवास विश्वकर्मा

  • निवास विश्वकर्मा बस्तर की माटी के गौरव पुत्र है। दृश्य चित्र उनका प्रिय विषय था।

6). बंशीलाल विश्वकर्मा

  • बंशीलाल विश्वकर्मा न केवल बस्तर के ख्याति लब्ध चित्रकार है बल्कि मूर्तिकला, काष्टकला, बेल, मेटल कला और पाषाण प्रतिमाएं के लिए भी अनोखे सर्जक है। 
  • इन्होंने बस्तर में ‘‘आकृति‘‘, नामक कला संस्था की स्थापना की थी। जिसके माध्यम से नई पीढ़ी के शिल्पकार अपनी परंपरागत कला के सृजन में संलग्न है।

7). देवेन्द्र सिंह ठाकुर

  • बीजापुर में जन्मु देवेन्द्र सिंह ठाकुर राज्य के प्रतिष्ठित चित्रकार हैं।
  • ये दृश्य चित्र बनाने में अत्यंत प्रतिभाशाली रहे।

8). खेमदास वैष्णव

  • दंतेवाड़ा में जन्में खेमदास वैष्णव बस्तर के पारंपरिक चित्रकला की अस्मिता को व्यापक रूप से राष्ट्रीय स्तर पर उजागर करने का कार्य किया।

9). बनामाली रामनेताम

  • कांकेर जिले के ग्राम बनसागर (अमोड़ा) के निवासी वनमाली रामनेताम राज्य के प्रमुख चित्रकारों में एक है।

10). सुरेश विश्वकर्मा

  • जगदलपुर निवासी सुरेश विश्वकर्मा प्रतिभाशाली चित्रशिल्पी हैं, वे चित्रशिल्प के अलावा काष्ठकला एवं मूर्तिकला के भी सिद्धहस्त कलाकार है।

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