
छत्तीसगढ़ रायपुर के स्वतंत्रता सेनानी
छत्तीसगढ़ में भी भारत की तरह बहुत से जगह अंग्रेजो के विरुद्ध आवाज बुलंद हुये थे जिसमे बहुत से स्वतंत्रता सेनानियों ने भाग लिया था जिसमे से बहुत से स्वतंत्रता सेनानियों ने अपनी अमूल्य योगदान देश की आजादी में दिए है जिनको भुला पाना हमारे लिए नामुमकिन है इनके सेवाभाव और समर्पण को हम सब का नमन इन्ही लोगो के कारण ही हम सब आज स्वतंत्र जीवन व्यतीत कर रहे है इन स्वतंत्रता सेनानियों की हम हमेश अभरी रहेंगे
वीर नारायण सिंह Veer Narayan Singh
- वर्ष 1856 में छत्तीसगढ़ में भीषण अकाल पड़ा था। जमींदार नारायण सिंह की प्रजा के समक्ष भूखों मरने की स्थिति थी। उन्होंने अपने गोदाम से अनाज लोगों को बांट दिया, लेकिन वह मदद पर्याप्त नहीं थी। अतः जमींदार नारायण सिंह ने शिवरीनारायण के माखन नामक व्यापारी से अनाज की मांग की। उसने नारायण सिंह का आग्रह ठुकरा दिया।
- नारायण सिंह कुछ किसानों के साथ माखन के गोदाम पहुंचे और उस पर कब्जा कर लिया। इस बात की सूचना जब अंग्रेजों को मिली तो नारायण सिंह को गिरफ्तार करने का आदेश जारी कर दिया गया। उन्हें 24 अक्टूबर 1856 को गिरफ्तार कर रायपुर जेल में डाल दिया गया।
- संबलपुर के क्रांतिकारी सुरेंद्र साय के नारायण सिंह से अच्छे संबंध थे। सिपाहियों की मदद से वह जेल से निकल भागने में कामयाब रहे।
- सोनाखान पहुंच कर नारायण सिंह ने 500 लोगों की सेना बना ली। 20 नवंबर 1857 को रायपुर के असिस्टेंट कमिश्नर लेफ्टिनेंट स्मिथ ने 4 जमादारों व 53 दफादारों के साथ सोनाखान के लिए कूच किया। उसकी सेना ने खरौद में पड़ाव डाला और अतिरिक्त मदद के लिए बिलासपुर को संदेश भेजा।
- सोनाखान के करीब स्मिथ की फौज पर पहाड़ की ओर से नारायण सिंह ने हमला कर दिया। इसमें स्मिथ को भारी नुकसान पहुंचा। उसे पीछे हटना पड़ा। इस बीच, स्मिथ तक कटंगी से अतिरिक्त सैन्य मदद पहुंच गई। बढ़ी ताकत के साथ उसने उस पहाड़ी को घेरना शुरू कर दिया, जिस पर नारायण सिंह मोर्चा बांधे डटे थे। दोनों ओर से दिन भर गोलीबारी होती रही। नारायण सिंह की गोलियां खत्म होने लगी।
- नारायण सिंह ने आत्मसमर्पण कर दिया। उन्हें रायपुर जेल में डाल दिया गया। मुकदमे की कार्यवाही चली और 10 दिसंबर 1857 को उन्हें फांसी दे दी गई।
हनुमान सिंह Hanuman Singh
- नारायण सिंह के बलिदान ने रायपुर के सैनिकों में अंग्रेजी शासन के प्रति घृणा और आक्रोश को तीव्र कर दिया। रायपुर ने भी बैरकपुर की तरह की सैन्यक्रान्ति देखी है। इसके जनक तीसरी रेजिमेन्ट के सैनिक हनुमान सिंह थे। उनकी योजना थी कि रायपुर के अंग्रेज अधिकारियों की हत्या कर छत्तीसगढ़ में अंग्रेज शासन को पंगु बना दिया जाए।
- हनुमान सिंह ने 18 जनवरी 1858 को सार्जेन्ट मेजर सिडवेल की हत्या की थी। एवं अपने साथियों के साथ तोपखाने पर कब्जा कर लिया। सिडवेल की हत्या तथा छावनी में सैन्य विद्रोह की सूचना अंग्रेज अधिकारियों को मिल गई।
- लेफ्टिनेंट रॉट और लेफ्टिनेंट सी. एच. लूसी स्मिथ ने अन्य सैनिकों के सहयोग से विद्रोह पर काबू पा लिया। हनुमान सिंह के साथ मात्र 17 सैनिक ही थे, लेकिन वह लगातार छः घंटों तक लड़ते रहे। अधिक देर टिकना असंभव था, इसलिए वह वहां से फरार हो गए। इसके बाद वह कभी अंग्रेजों के हाथ नहीं लगे। उनके साथी गिरफ्तार कर लिए गए।
- 22 जनवरी 1858 को इन क्रांतिकारियों को फांसी दे दी गई,जिनके नाम हैं: गाजी खान, अब्दुल हयात, मल्लू, शिवनारायण, पन्नालाल, मतादीन, ठाकुर सिंह, बली दुबे, लल्लासिंह, बुध्दू सिंह, परमानन्द, शोभाराम, दुर्गा प्रसाद, नजर मोहम्मद, देवीदान, जय गोविन्द।
बाबू छोटेलाल श्रीवास्तव Babu Chhotalal Srivastava
- बाबू छोटेलाल श्रीवास्तव दृढ़ता और संकल्प के प्रतीक थे। छत्तीसगढ़ के इतिहास की प्रमुख घटना कंडेल नहर सत्याग्रह के वह सूत्रधार थे।
- छोटेलाल श्रीवास्तव का जन्म 28 फरवरी 1889 को कंडेल के एक संपन्न परिवार में हुआ था।
- पं. सुंदरलाल शर्मा और पं. नारायणराव मेघावाले के संपर्क में आकर उन्होंने राष्ट्रीय आंदोलनों में भाग लेना शुरू कर दिया।
- वर्ष 1915 में उन्होंने श्रीवास्तव पुस्तकालय की स्थापना की। यहां राष्ट्रीय भावनाओं से ओतप्रोत देश की सभी प्रमुख पत्र-पत्रिकाएं मंगवाई जाती थी। आगे चल कर धमतरी का उनका घर स्वतंत्रता संग्राम का एक प्रमुख केंद्र बन गया। वह वर्ष 1918 में धमतरी तहसील राजनीतिक परिषद के प्रमुख आयोजकों में से थे।
- छोटेलाल श्रीवास्तव को सर्वाधिक ख्याति कंडेल नहर सत्याग्रह से मिली। अंग्रेजी सरकार के अत्याचार के खिलाफ उन्होंने किसानों को संगठित किया।
- अंग्रेजी साम्राज्यवाद के खिलाफ संगठित जनशक्ति का यह पहला अभूतपूर्व प्रदर्शन था। वर्ष 1921 में स्वदेशी प्रचार के लिए उन्होंने खादी उत्पादन केंद्र की स्थापना की।
- वर्ष 1922 में श्यामलाल सोम के नेतृत्व में सिहावा में जंगल सत्याग्रह हुआ। बाबू साहब ने उस सत्याग्रह में भरपूर सहयोग दिया।
- जब वर्ष 1930 में रुद्री के नजदीक नवागांव में जंगल सत्याग्रह का निर्णय लिया गया, तब बाबू साहब की उसमें सक्रिय भूमिका रही। उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। जेल में उन्हें कड़ी यातना दी गई।
- वर्ष 1933 में गांधीजी ने पुनः छत्तीसगढ़ का दौरा किया। वह धमतरी गए। वहां उन्होंने छोटेलाल बाबू के नेतृत्व की प्रशंसा की।
- वर्ष 1937 में श्रीवास्तवजी धमतरी नगर पालिका निगम के अध्यक्ष निर्वाचित हुए। वर्ष 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में भी बाबू साहब की सक्रिय भूमिका थी। उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।
- स्वतंत्रता संग्राम के महान तीर्थ कंडेल में 18 जुलाई 1976 को उनका देहावसान हो गया।
पंडित माधवराव सप्रे Pandit Madhavrao Sapre
- भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के आंदोलन में पंडित माधवराव सप्रे का नाम स्वर्णाक्षर में दर्ज है। उनका जन्म 19 जून 1871 को दमोह जिले के पथरिया ग्राम में हुआ था।
- वर्ष 1900 में उन्होंने पं. वामनराव लाखे तथा रामराव चिंचोलकर के सहयोग से रायपुर से ‘छत्तीसगढ़ मित्र’ नामक मासिक पत्र का प्रकाशन प्रारंभ किया।
गुण्डाधुर Gundadhur
- वर्ष 1910 में गुण्डाधुर ने बस्तर में आदिवासियों के साथ भूमकाल विद्रोह का नेतृत्व किया था तथा सबसे पहले बस्तर का पशुबजार लुटा।
- गुण्डाधुर का अभियान तांत्याटोपे की तरह होता था। वे तीव्र गति से एक स्थान से दूसरे स्थान में पहुंच कर लोगो को प्रेरित करते थे।
- इनके नाम से राज्य के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी के लिए पुरस्कार दिया जाता है।
सुरेंद्र साय Surendra Sai
- इनका जन्म ओड़ीसा के संबलपुर जिले के खिड़ा ग्राम में 1809 में हुआ था। 1857 के स्वतंत्रता सग्राम में संबलपुर के साय परिवार की भूमिका विशेष रूप से उल्लेखनीय रही।
- प्रथम भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के अंतिम शहीद सुरेंद्र साय थे।
पंडित रविशंकर शुक्ल Pandit Ravi Shankar Shukla:-
- श्री शुक्लल का जन्म 2 अगस्त 1877 को सागर में हुआ था।
- 31 दिसंबर 1956 को शुक्ला जी का देहावसान हो गया।
- आपने राष्ट्रीय आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई।
- स्वदेशी खादी राष्ट्रीय शिक्षा को बढ़ावा दिया और असहयोग सविनय अवज्ञा तथा भारत छोड़ो आंदोलन में भूमिका निभाई।
- 1923 ई. नागपुर में आयोजित झंडा सत्याग्रह में छत्तीसगढ़ का प्रतिनिधित्व 4 जुलाई 1937 ई. को श्री खरे के प्रथम कांग्रेसी मंत्रिमंडल में शिक्षा मंत्री के रूप में सम्मिलित हुए।
- विद्या मंदिर योजना को क्रियान्वित किया।
- 15 अगस्त 1947 को मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बने और 1956 तक वे इस पद पर बने रहे।
- 1 नवंबर 1956 को नए मध्य प्रदेश के प्रथम संस्थापक मुख्यमंत्री बनने का गौरव प्राप्त हुआ।
पंडित सुंदरलाल शर्मा Pandit Sundarlal Sharma:-
- पं. सुंदरलाल शर्मा का जन्म सन 1881 में राजिम के पास चमसूर नामक गांव में हुआ था।
- 28 दिसंबर 1940 को आपका स्वर्गवास हुआ।
- नाट्य कला,मूर्तिकला व चित्रकला में पारंगत विद्वान श्री शर्मा प्रहलाद चरित्र, करुणा पचीसी व सतनामी भजन माला जैसे ग्रंथों के रचयिता है।
- इनकी छत्तीसगढ़ी दीन लीला छत्तीसगढ़ का प्रथम लोकप्रिय प्रबंध काव्य ग्रंथ है।
- उन्होंने लगभग 18 ग्रंथ लिखे जिनमें 4 नाटक,2 उपन्यास तथा शेष काव्य रचनाए है।
- इन्होंने राजिम में 1907 में संस्कृत पाठशाला रायपुर में सतनामी आश्रम की स्थापना की तथा 1910 में राजिम में प्रथम स्वदेशी दुकान व 1920 के कंडेल सत्याग्रह के सूत्रधार थे।
- छत्तीसगढ़ के राजनीति व देश के स्वतंत्रता आंदोलन में उनका ऐतिहासिक योगदान है।
बैरिस्टर छेदीलाल Barrister chhedilal:-
- ठाकुर छेदीलाल का जन्म 1887 को बिलासपुर जिले के अकलतरा नामक गांव में हुआ था।
- इन्होंने बैरिस्टर की शिक्षा इंग्लैंड से प्राप्त की तथा बिलासपुर में वकालत प्रारंभ की।
- श्री ठाकुर बिलासपुर के प्रथम बैरिस्टर थे।
- सन 1930-31 में छेदीलाल यहां कौशल विदर्भ और नागपुर की संयुक्त कांग्रेस समिति के अध्यक्ष नियुक्त हुए।
- 1941-42 के आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई तथा जेल भी गए।
- छेदीलाल ने हालैंड का स्वाधीनता का इतिहास नामक पुस्तक लिखकर खूब यश कमाया
- श्री ठाकुर सेवा समिति का गठन सेवा समिति पत्रिका का संपादन तथा गुरुकुल कांगड़ी में इतिहास के प्राध्यापक भी रहेे थे।
- इनका 1953 में देहावसान हो गया।
ई.राघवेन्द्र राव E. Raghavendra Rao:-
- ई. राघवेंद्र राव का जन्म 4 अगस्त 1989 को कामठी में हुआ था।
- इनका प्रारंभिक शिक्षा बिलासपुर में तथा बैरिस्टर की शिक्षा लंदन में हुआ।
- 1915 में बिलासपुर नगरपालिका तथा डिस्ट्रिक्ट कॉन्सिल के अध्यक्ष बने तथा जन सेवा में रत हो गए।
- राव जी के चुनाव में विजयी हुए और शिक्षा मंत्री के पद पर नियुक्त्त हुए।
- 1936 में अस्थाई रूप से मध्य प्रदेश के गवर्नर बनाएं गए राव साहब को तत्कालीन वयसराय की कार्यकारिणी समिति का सदस्य मनोनीत कियाा गया तथा उन्हें रक्षा मंत्री का पद भी संभालना पड़ा।
- राव साहब ने आजादी की लड़ाई में सीधा भाग ना लेकर शासकीय पदोंं का उपयोग जनहित के लिए किये।
- 15 जून 1942 को राघवेंद्र राव जी का दिल्ली में देहावसान हो गया।
ठाकुर प्यारेलाल सिंह Thakur Pyarelal Singh:-
- राजनांदगांव जिले के श्री प्यारेलाल सन 1909 में राजनांदगांव में सरस्वती पुस्तकालय की स्थापना की।
- 1920 में बी. एन. सी. मील की हड़ताल का सफल नेतृत्व।
- असहयोग आंदोलन, सविनय अवज्ञा में सक्रिय भूमिका निभाई।
- इन्होंने छत्तीसगढ़ एजुकेशन सोसाइटी की स्थापना तथा रायपुर में छत्तीसगढ़ महासभाा की स्थापना मैं विशेष योगदान दिया।
- छत्तीसगढ़ में सहकारिता आंदोलन के जनक श्री प्यारेलाल 1948 में छत्तीसगढ़़ के बुनकर सहकारी समिति की स्थापना की ताकि बुनकरों की आर्थिक स्थिति सुधरे।
यति यतनलाल Yeti Yatanlal
- इनका जन्म 1894 ई. को बीकानेर में हुआ था , लेकिन इनकी शिक्षा -दीक्षा रायपुर में हुई थी। वर्ष 1930 के आंदोलन में यति यतनलाल ने प्रचार का कार्य किया।
- इन्हे छत्तीसगढ़ में अहिंसा का अग्रदूत कहा जाता है। इन्होने महासमुंद में विवेक वर्धन आश्रम की स्थापना की थी।
- इनके तथा शंकरराव गनौदवाले के नेतृत्व में महासमुंद तहसील में जंगल सत्याग्रह आंदोलन हुआ।
- छत्तीसगढ़ शासन द्वारा इनके नाम पर अहिंसा पुरस्कार वितरण करती है। 19 जुलाई ,1976 को इनका देहांत हो गया।
खूबचंद बघेल Khubchand baghel
- इनका जन्म 19 जुलाई ,1900 में रायपुर जिले के पथरी ग्राम में हुआ था।
- बघेल ने वर्ष 1920 में कांग्रेस के नागपुर में आयोजित 35 वे अधिवेशन में चिकित्सा शिविर में वालण्टियर (कार्यकर्ता ) के रूप में कार्य किया था।
- वर्ष 1939 के त्रिपुरी अधिवेशन में इन्होने स्वयंसेवको के कमांडर के रूप में कार्य किया।
- वर्ष 1950 में आचार्य कृपलानी के आह्यन पर ये कृषक मजदूर पार्टी में शामिल हो गए।
- वर्ष 1951 में आम चुनाव में ये विधानसभा के लिए पार्टी से निर्वाचित हुए।
- वर्ष 1965 में ये राज्यसभा के लिए चुने गए। 22 फरवरी,1969 को इनका निधन हो गया।
ठाकुर रामप्रसाद पोटाई Thakur Ramprasad Potai
- इनका जन्म कांकेर जिले के करमोती गांव में वर्ष 1904 में हुआ था। इन्होने छत्तीसगढ़ के स्वतंत्रता संग्राम में अग्रणी भूमिका निभाई।
- वर्ष 1942 -46 के मध्य इन्होने कांकेर ,नरहपुर तथा भानुप्रतापपुर में युवको के साथ गांधीवादी राष्ट्रीय वाचनालय तथा खद्दर प्रचारक क्लब की स्थापना करके राष्ट्रवादी गतिविधियों का संचालन किया।
- वर्ष 1946 में वे संविधान सभा में कांकेर से चयनित हुए।
- वर्ष 1947 में कांकेर स्टेट कांकेर का गठन हुआ ,जिसके अध्यक्ष रामप्रसाद पोटाई बने।
- इन्होने जनजातियों एवं गैर – जनजातीय कृषको व खेतिहरों को सामाजिक एवं राष्ट्र सेवा में समर्पित होने हेतु प्रेरित किया। वर्ष 1976 में उनका निधन हो गया।
राधाबाई Radha Bai
- इनका जन्म नागपुर में हुआ था। नौ वर्ष की अल्पायु में ही विधवा होने के पश्चात इन्होने अपना सारा जीवन सामाजिक कार्य में लगाया। वे पेशे से दाई का काम करती थी ,किन्तु रायपुर के लोगो में डॉ. के रूप में जानी जाती थी।
- सविनय अवज्ञा आंदोलन ,स्वराज आंदोलन के दौरान ये गिरफ्तार भी हुई। 2 जनवरी ,1950 को इनका निधन हो गया।
संत यति यतनलाल Saint Yeti Yatanlal
- संत यति यतनलाल राजस्थान के बीकानेर शहर में 1894 में जन्म लेने के महज 6 महीने में अपने माता-पिता को खो दिया, जिसके बाद गुरु ब्राह्मल ने लालन-पालन किया.
- अपने गुरु के साथ ढाई साल की उम्र में रायपुर आए. गणित और भाषा में बहुत ही कम समय में सिद्धहस्त हो गए. संस्कृत साहित्य और इतिहास इनके प्रिय विषय थे.
- 19 वर्ष की उम्र में राजनीति में प्रवेश किया.
- यति यतन लाल ने 1930 के सविनय अवज्ञा आंदोलन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई. विवेक वर्धन आश्रम से संबद्ध संत यतनलाल ने शंकरराव गनौदवाले के साथ मिलकर महासमुन्द में जंगल सत्याग्रह शुरू किया.
- महात्मा गांधी के निर्देश पर ग्रामोद्योग और अनुसूचित जाति के उत्थान के साथ-साथ हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए काम करने वाले संत यतिनलाल को स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भागीदारी की वजह से कई बार जेल जाना पड़ा.
- प्रखर वक्ता, लेखन और समाज सुधारक यति यतनलाल के योगदान को देखते हुए छत्तीसगढ़ सरकार ने उनके नाम से सम्मान की घोषणा की, जो हर साल अहिंसा और गौसेवा में सक्रिय लोगों अथवा संस्थाओं को प्रदान किया जाता है.