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ताला गाँव , देवरानी-जेठानी मंदिर, दुर्लभ रुद्रशिव

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ताला गाँव , देवरानी-जेठानी मंदिर, दुर्लभ रुद्रशिव

ताला गाँव , देवरानी-जेठानी मंदिर, दुर्लभ रुद्रशिव

ताला गाँव 

यह अतीत में वापस जाने और कालातीत मूर्तियों द्वारा मंत्रमुग्ध होने जैसा है। निश्चित रूप से अनंत काल और कलात्मक पत्थर की मूर्तियों की भूमि, ताला अमेरिकापा के गांव के पास मनियारी नदी के तट पर स्थित है। अक्सर मेकाला के पांडुवामशियों के अभिलेखों में वर्णित संगमग्राम के रूप में पहचाना जाता है, ताला शिवनाथ और मनियारी नदी के संगम पर स्थित है। देवरानी-जेठानी मंदिरों के लिए सबसे मशहूर, ताला की खोज 1873-74 में जे.डी. वेलगर ने की थी, जो प्रसिद्ध पुरातत्वविद् अलेक्जेंडर कनिंघम के सहायक थे । इतिहासकारों ने दावा किया है कि ताला गांव 7-8 वीं शताब्दी ईस्वी की है।

ताला के पास सरगांव में धूम नाथ का मंदिर है। इस मंदिर में भगवान किरारी के शिव स्मारक हैं, और मल्हार यहां से केवल 18 किमी दूर है। ताला बहुमूल्य पुरातात्विक खुदाई की भूमि है जिसने उत्कृष्ट मूर्तिकला के काम को प्रकट किया है। पुरातत्त्वविदों और इतिहासकारों को जटिल रूप से तैयार पत्थर की नक्काशी से मंत्रमुग्ध कर दिया जाता है। इन उत्कृष्ट खुदाई 6 वीं से 10 वीं शताब्दी ईस्वी के दौरान ताला की समृद्धि का वर्णन करती हैं। हालांकि, विभिन्न खुदाई वाले खंडहर प्राप्त हुए और मूर्तिकला-शैली हमें विभिन्न राजवंशों को बताती है जो ताला में शासन करते थे और भगवान शिव के भक्त और शिव धर्म के प्रचारक थे। 

ताला निषाद समाज द्वारा निर्मित विभिन्न मंदिरों का भी घर है, जिसमें राम-जानकी मंदिर, स्वामी पूर्णानंद महाजन मंदिर और गोशाला शामिल हैं।

देवरानी – जेठानी मंदिर, अमेरीकांपा (जिला बिलासपुर)

प्राचीन काल में दक्षिण कोसल के शरभपुरीय राजाओं के राजत्वकाल में मनियारी नदी के तट पर ताला नामक स्थल पर अमेरिकापा गाँव के समीप दो शिव मंदिरों का निर्माण कराया गया था जिनका संछिप्त विवरण निम्नानुसार है –

देवरानी मंदिर 

देवरानी मंदिर – इन मंदिरो प्रस्तोर निर्मित अर्ध भग्नि देवरानी मंदिर, शिव मंदिर है जिसका मुख पूर्व दिशा की ओर है। इस मंदिर के पिछे की तरफ शिवनाथ की सहायक नदी मनियारी प्रवाहित हो रही है । इस मंदिर का माप बाहर की ओर से 7532 फीट है जिसका भुविन्यास अनूठा है । इसमें गर्भगृह ,अन्तराल एवं खुली जगहयुक्त संकरा मुखमंड़प है । मंदिर में पहुच के के लिए मंदिर द्वार की चंद्रशिलायुक्त देहरी तक सीढ़ियाँ निर्मित है । मुख मंडप में प्रवेश द्वार है । मन्दिरं की द्वारसखाओं पर नदी देवियो का अंकन है । सिरदल में ललाट बिम्ब में गजलक्ष्मी का अंकन है । इस मंदिर में उपलब्ध भित्तियो की उचाई 10 फीट है इसमें शिखर अथवा छत का आभाव है इस मंदिर स्थली से हिन्दू मत के विभन्न देवी-देवताओं ,वयंतर देवता,पशु ,पोराणिक आकृतिया ,पुष्पांकन एवं विविध ज्यामितिक एवं अज्यामितिक प्रतिको के अंकनयुक्त प्रतिमाये एवं वास्तुखंड प्राप्त हुए है। 

जेठानी मंदिर 

जेठानी मंदिर – दक्षिणाभीमुखी यह भगवान शिव को समर्पित है । भग्नाोवशेष के रूप में ज्ञात संरचना उत्खननन से अनावृत किया गया है। किन्तु कोई भी इसे देखकर इसकी भू-निर्माण योजना के विषय में जान सकता है।सामने इसके गर्भगृह एवं मंडप है जिसमे पहुँचाने के लिए दक्षिण, पूर्व एवं पश्चिम दिशा से प्रविष्ट होते थे । मंदिर का प्रमुख प्रवेश द्वार चौड़ी सीढियों से सम्बन्ध था । इसके चारों ओर बड़े एवं मोटे स्तंभों की यष्टियां बिखरी पड़ी हुई है और ये उनके प्रतीकों के अन्कंयुक्त है। स्तंभ के निचले भाग पर कुम्भ बने हुए है । स्तंभों के ऊपरी भाग पर कुम्भ आमलक घट पर आधारित दर्शाया गया है जो कीर्तिमुख से निकली हुई लतावल्लरी से अलंकृत है । मंदिर का गर्भगृह वाला भाग बहुत अधिक क्षतिग्रस्त है और मंदिर के ऊपरी शिखर भाग के कोई प्रणाम प्राप्त नहीं हुए हैं । दिग्पाल देवता या गजमुख चबूतरे पर निर्मित किये गये है निःसंदेह ताला स्तिथ स्मारकों के अवशेष भारतीय स्थापत्यकला के विलक्षण उदहारण है । छत्तीसगढ़ के स्थासपत्यअ कला की मौलिक्ताा इसके पाषाण खण्डा में जिवित हो उठी है।

दुर्लभ रुद्रशिव

देवरानी-जेठानी मंदिर भारतीय मूर्तिकला और कला के लिए बहुत प्रसिद्ध है। 1987-88 के दौरान था देवरानी मंदिर में प्रसिद्ध खुदाई में भगवान शिव की एक बेहद अनोखी ‘रुद्र’ छवि वाली मूर्ति प्रकट हुई।
शिव हमें भगवान के व्यक्तित्व के विभिन्न रंगों में एक झलक देता है। शैव धर्म के संबंध में, शिव की यह अनूठी मूर्ति विभिन्न प्राणियों का उपयोग करके तैयार की जाती है। प्रतीत होता है कि मूर्तिकार ने अपने शरीर रचना का हिस्सा बनने के लिए हर कल्पनीय प्राणी का उपयोग किया है, जिसमें से नाग एक पसंदीदा प्रतीत होता है। कोई भी ऐसा महसूस कर सकता है जैसे पृथ्वी पर जीवन के विकास को इस सृजन के लिए थीम के रूप में लिया जाता है। अपने विभिन्न शारीरिक भागों में आ रहे हैं, हम शायद ऊपर से धीरे-धीरे नीचे से शुरू हो सकते हैं।

  • रूद्रशिव के नाम से संबोधित की जाने वाली एक प्रतिमा सर्वाधिक महत्वापूर्ण है। 
  • यह विशाल एकाश्ममक द्विभूजी प्रतिमा समभंगमुद्रा में खड़ी है तथा इसकी उचांई 2.70 मीटर है । 
  • यह प्रतिमा शास्त्र के लक्षणों की दृष्टी से विलक्षण प्रतिमा है । 
  • इसमें मानव अंग के रूप में अनेक पशु, मानव अथवा देवमुख एवं सिंह मुख बनाये गये है । 
  • इसके सिर का जटामुकुट (पगड़ी) जोड़ा सर्पों से निर्मित है । ऐसा प्रतीत होता है कि यहाँ के कलाकार को सर्प-आभूषण बहुत प्रिय था क्योंकि प्रतिमा में रुद्रशिव का कटी, हाथ एवं अंगुलियों को सर्प के भांति आकार दिया गया है। 
  • इसके अतिरिक्त प्रतिमा के ऊपरी भाग पर दोनों ओर एक-एक सर्पफण छत्र कंधो के ऊपर प्रदर्शित है । 
  • इसी तरह बायें पैर लिपटे हुए, फणयुक्त सर्प का अंकन है। 
  • दुसरे जीव जन्तुओ में मोर से कान एवं कुंडल, आँखों की भौहे एवं नाक छिपकली से,मुख की ठुड्डी केकड़ा से निर्मित है तथा भुजायें मकरमुख से निकली हैं । 
  • सात मानव अथवा देवमुख शरीर के विभिन अंगो में निर्मित हैं । 
  • ऊपर बतलाये अनुसार अद्वितीय होने के कारण विद्वानों के बीच इस प्रतिमा की सही पहचान को लेकर अभी भी विवाद बना हुआ है । 
  • शिव के किसी भी ज्ञात स्वरुप के शास्त्रोक्त प्रतिमा लक्षण पूर्ण रूप से न मिलने के कारण इसे शिव के किसी स्वरुप विशेष की प्रतिमा के रूप में अभिरान सर्वमान्य नहीं है । 
  • निर्माण शैली के आधार पर ताला के पुरावशेषों को छठी शती ईसवीं के पूर्वाद्ध में रखा जा सकता है। 

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