भारतीय संविधान की संरचना
भाग V
➤ अनुच्छेद (52 से 151): संघ स्तर पर सरकार
- यह हिस्सा राष्ट्रपति, प्रधान मंत्री, मंत्रियों, अटॉर्नी जनरल, संसद, लोकसभा और राज्य सभा, नियंत्रक और महालेखा परीक्षक के कर्तव्यों और कार्यों से संबंधित है।
- अनुच्छेद 52 से 62 राष्ट्रपति और कार्यकारी की शक्तियों की रूपरेखा। चुनाव, पुन: चुनाव, योग्यता, तरीके, योग्यता और राष्ट्रपति की छेड़छाड़ की प्रक्रिया। अनुच्छेद 63 से 71, वैसे ही, उपराष्ट्रपति की स्थिति पर बात करें और विनियमित करें। अनुच्छेद 72 कुछ मामलों में क्षमादान देने के लिए राष्ट्रपति की शक्ति को बताता है। अनुच्छेद 73 संघ की कार्यकारी शक्तियों की सीमा देता है। अनुच्छेद 74 बताता है कि मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह राष्ट्रपति पर बाध्यकारी है।
- अनुच्छेद 75 का कहना है कि प्रधान मंत्री की सलाह पर प्रधान मंत्री को राष्ट्रपति और अन्य मंत्रियों द्वारा नियुक्त किया जाना है। यह मंत्रियों के लिए कुछ अन्य प्रावधान भी बताता है।
- अनुच्छेद 76 भारत के अटॉर्नी जनरल की नियुक्ति और कर्तव्यों को प्रस्तुत करता है। अनुच्छेद 77-78 सरकारी व्यवसाय के आचरण को नियंत्रित करते हैं।
- अनुच्छेद 79 से 122 संसद के ब्योरे को प्रस्तुत करते हैं। इन घरों के घर, अवधि, सत्र, प्रजनन दोनों का संविधान और संरचना। इसके अलावा, सदस्यों की योग्यता और नियुक्ति, उनके वेतन, वक्ताओं की नियुक्ति और उप-वक्ताओं। इन लेखों में संसद की विधायी प्रक्रिया का भी वर्णन किया गया है। अनुच्छेद 123 अध्यादेश जारी करने के लिए राष्ट्रपति की शक्ति को बताता है।
- अनुच्छेद 124 से 147 केंद्रीय न्यायपालिका का विवरण देते हैं। सुप्रीम कोर्ट की स्थापना, न्यायाधीशों की नियुक्ति, उनके वेतन और शक्तियां। यह भारत के सुप्रीम कोर्ट के कामकाजी, शक्तियों, अधिकार क्षेत्र की प्रक्रियाओं को भी बताता है।
- अनुच्छेद 148 से 151 भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक की भूमिका, शक्तियों, प्रक्रियाओं और कर्तव्यों का वर्णन करते हैं।
➦ भारतीय संविधान अनुच्छेद 52 (Article 52) - भारत का राष्ट्रपति
विवरण- भारत का एक राष्ट्रपति होगा।
➦ भारतीय संविधान अनुच्छेद 53 (Article 53) - संघ की कार्यपालिका शक्ति
विवरण(1) संघ की कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित होगी और वह इसका प्रयोग इस संविधान के अनुसार स्वयं या अपने अधीनस्थ अधिकारियों के द्वारा करेगा।
(2) पूर्वगामी उपबंध की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, संघ के रक्षा बलों का सर्वोच्च समादेश राष्ट्रपति में निहित होगा और उसका प्रयोग विधि द्वारा विनियमित होगा।
(3) इस अनुच्छेद की कोई बात--
राष्ट्रपति का निर्वाचन ऐसे निर्वाचकगण के सदस्य करेंगे जिसमें--
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संविधान (सत्तरवाँ संशोधन) अधिनियम, 1992 की धारा 2 द्वारा (1-6-1995 से) अंतःस्थापित।",
(1) जहाँ तक साध्य हो, राष्ट्रपति के निर्वाचन में भिन्न-भिन्न राज्यों के प्रतिनिधित्व के मापमान में एकरूपता होगी।
- (क) किसी विद्यमान विधि द्वारा किसी राज्य की सरकार या अन्य प्राधिकारी को प्रदान किए गए कृत्य राष्ट्रपति को अंतरित करने वाली नहीं समझी जाएगी; या
- (ख) राष्ट्रपति से भिन्न अन्य प्राधिकारियों को विधि द्वारा कृत्य प्रदान करने से संसद को निवारित नहीं करेगी।
➦ भारतीय संविधान अनुच्छेद 54 (Article 54 ) - राष्ट्रपति का निर्वाचन
विवरणराष्ट्रपति का निर्वाचन ऐसे निर्वाचकगण के सदस्य करेंगे जिसमें--
- संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्य; और
- राज्यों की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य, होंगे।
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संविधान (सत्तरवाँ संशोधन) अधिनियम, 1992 की धारा 2 द्वारा (1-6-1995 से) अंतःस्थापित।",
➦ भारतीय संविधान अनुच्छेद 55 (Article 55) - राष्ट्रपति के निर्वाचन की रीति
विवरण(1) जहाँ तक साध्य हो, राष्ट्रपति के निर्वाचन में भिन्न-भिन्न राज्यों के प्रतिनिधित्व के मापमान में एकरूपता होगी।
(2) राज्यों में आपस में ऐसी एकरूपता तथा समस्त राज्यों और संघ में समतुल्यता प्राप्त कराने के लिए संसद और प्रत्येक राज्य की विधान सभा का प्रत्येक निर्वाचित सदस्य ऐसे निर्वाचन में जितने मत देने का हकदार है उनकी संख्या निम्नलिखित रीति से अवधारित की जाएगी, अर्थात्
स्पष्टीकरण--इस अनुच्छेद में, ''जनसंख्या'' पद से ऐसी अंतिम पूर्ववर्ती जगणना में अभिनिश्चित की गई जनसंख्या अभिप्रेत है जिसके सुसंगत आंकड़े प्रकाशित हो गए हैं :
परंतु इस स्पष्टीकरण में अंतिम पूर्ववर्ती जनगणना के प्रति, जिसके सुसंगत आंकड़े प्रकाशित हो गए हैं,
निर्देश का, जब तक सन् [2026] के पश्चात् की गई पहली जनगणना के सुसंगत आंकड़े प्रकाशित नहीं हो जाते हैं, यह अर्थ लगाया जाएगा कि वह 1971 की जनगणना के प्रति निर्देश है।]
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संविधान (बयासीवाँ संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 12 द्वारा (3-1-1977 से) स्प-टीकरण के स्थान पर प्रतिस्थापित।
संविधान (चौरासीवाँ संशोधन) अधिनियम, 2001 की धारा 2 द्वारा \"2000\" के स्थान पर प्रतिस्थापित।
(1) राष्ट्रपति अपने पद ग्रहण की तारीख से पांच वर्ष की अवधि तक पद धारण करेगा:
परंतु—
कोई व्यक्ति, जो राष्ट्रपति के रूप में पद धारण करता है या कर चुका है, इस संविधान के अन्य उपबंधों के अधीन रहते हुए उस पद के लिए पुनर्निर्वाचन का पात्र होगा।
1) कोई व्यक्ति राष्ट्रपति निर्वाचित होने का पात्र तभी होगा जब वह
स्पष्टीकरण--इस अनुच्छेद के प्रयोजनों के लिए, कोई व्यक्ति केवल इस कारण कोई लाभ का पद धारण करने वाला नहीं समझा जाएगा कि वह संघ का राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति या किसी राज्य का राज्यपाल* है अथवा संघ का या किसी राज्य का मंत्री है।
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संविधान (सात्व संशोधन) अधिनियम, 1956 की धरा 29 और अनुसूची द्वारा \"या राजप्रमुख या उप-राज्यप्रमुख \" शब्दों का लोप किया गया
प्रत्येक राष्ट्रपति और प्रत्येक व्यक्ति, जो राष्ट्रपति के रूप में कार्य कर रहा है या उसके कृत्यों का निर्वहन कर रहा है, अपना पद ग्रहण करने से पहले भारत के मुख्य न्यायमूर्ति या उसकी अनुपस्थिति में उच्चतम न्यायालय के उपलब्ध ज्येष्ठतम न्यायाधीश के समक्ष निम्नलिखित प्ररूप में शपथ लेगा या प्रतिज्ञान करेगा और उस पर अपने हस्ताक्षर करेगा, अर्थात्: --
ईश्वर की शपथ लेता हूँ
\"मैं, अमुक -------------------------------कि मैं श्रद्धापूर्वक भारत के राष्ट्रपति के पद का कार्यपालन सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञान करता हूँ।
(अथवा राष्ट्रपति के कृत्यों का निर्वहन) करूंगा तथा अपनी पूरी योग्यता से संविधान और विधि का परिरक्षण, संरक्षण और प्रतिरक्षण करूँगा और मैं भारत की जनता की सेवा और कल्याण में निरत रहूँगा।\"।
(1) जब संविधान के ओंतक्रमण के लिए राष्ट्रपति पर महाभियोग चलाना हो, तब संसद का कोई सदन आरोप लगाएगा।
(2) ऐसा कोई आरोप तब तक नहीं लगाया जाएगा जब तक कि---
(4) यदि अन्वेषण के परिणामस्वरूप यह घोषित करने वाला संकल्प कि राष्ट्रपति के विरुद्ध लगाया गया आरोप सिद्ध हो गया है, आरोप का अन्वेषण करने या कराने वाले सदन की कुल सदस्य संख्या के कम से कम दो-तिहाई बहुमत द्वारा पारित कर दिया जाता है तो ऐसे संकल्प का प्रभाव उसके इस प्रकार पारित किए जाने की तारीख से राष्ट्रपति को उसके पद से हटाना होगा।
➦ भारतीय संविधान अनुच्छेद 62 (Article 62) -
- (क) किसी राज्य की विधान सभा के प्रत्येक निर्वाचित सदस्य के उतने मत होंगे जितने कि एक हजार के गुणित उस भागफल में हों जो राज्य की जनसंख्या को उस विधान सभा के निर्वाचित सदस्यों की कुल संख्या से भाग देने पर आए;
- (ख) यदि एक हजार के उक्त गुणितों को लेने के बाद शेष पाँच सौ से कम नहीं है तो उपखंड (क) में निर्दिष्ट प्रत्येक सदस्य के मतों की संख्या में एक और जोड़ दिया जाएगा;
- (ग) संसद के प्रत्येक सदन के प्रत्येक निर्वाचित सदस्य के मतों की संख्या वह होगी जो उपखंड (क) और उपखंड (ख) के अधीन राज्यों की विधान सभाओं के सदस्यों के लिए नियत कुल मतों की संख्या को, संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्यों की कुल संख्या से भाग देने पर आए, जिसमें आधे से अधिक भिन्न को एक गिना जाएगा और अन्य भिन्नों की उपेक्षा की जाएगी।
स्पष्टीकरण--इस अनुच्छेद में, ''जनसंख्या'' पद से ऐसी अंतिम पूर्ववर्ती जगणना में अभिनिश्चित की गई जनसंख्या अभिप्रेत है जिसके सुसंगत आंकड़े प्रकाशित हो गए हैं :
परंतु इस स्पष्टीकरण में अंतिम पूर्ववर्ती जनगणना के प्रति, जिसके सुसंगत आंकड़े प्रकाशित हो गए हैं,
निर्देश का, जब तक सन् [2026] के पश्चात् की गई पहली जनगणना के सुसंगत आंकड़े प्रकाशित नहीं हो जाते हैं, यह अर्थ लगाया जाएगा कि वह 1971 की जनगणना के प्रति निर्देश है।]
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संविधान (बयासीवाँ संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 12 द्वारा (3-1-1977 से) स्प-टीकरण के स्थान पर प्रतिस्थापित।
संविधान (चौरासीवाँ संशोधन) अधिनियम, 2001 की धारा 2 द्वारा \"2000\" के स्थान पर प्रतिस्थापित।
➦ भारतीय संविधान अनुच्छेद 56 (Article 56) - राष्ट्रपति की पदावधि
विवरण(1) राष्ट्रपति अपने पद ग्रहण की तारीख से पांच वर्ष की अवधि तक पद धारण करेगा:
परंतु—
- (क) राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा अपना पद त्याग सकेगा;
- (ख) संविधान का ओंतक्रमण करने पर राष्ट्रपति को अनुच्छेद 61 में उपबंधित रीति से चलाए गए महाभियोग द्वारा पद से हटाया जा सकेगा;
- (ग) राष्ट्रपति, अपने पद की अवधि समाप्त हो जाने पर भी, तब तक पद धारण करता रहेगा जब तक उसका उत्तराधिकारी अपना पद ग्रहण नहीं कर लेता है।
➦ भारतीय संविधान अनुच्छेद 57 (Article 57) - पुनर्निर्वाचन के लिए पात्रता
विवरणकोई व्यक्ति, जो राष्ट्रपति के रूप में पद धारण करता है या कर चुका है, इस संविधान के अन्य उपबंधों के अधीन रहते हुए उस पद के लिए पुनर्निर्वाचन का पात्र होगा।
➦ भारतीय संविधान अनुच्छेद 58 (Article 58) - राष्ट्रपति निर्वाचित होने के लिए अर्हताए
विवरण1) कोई व्यक्ति राष्ट्रपति निर्वाचित होने का पात्र तभी होगा जब वह
- (क) भारत का नागरिक है,
- (ख) पैंतीस वर्ष की आयु पूरी कर चुका है, और
- (ग) लोकसभा का सदस्य निर्वाचित होने के लिए अर्हित है।
स्पष्टीकरण--इस अनुच्छेद के प्रयोजनों के लिए, कोई व्यक्ति केवल इस कारण कोई लाभ का पद धारण करने वाला नहीं समझा जाएगा कि वह संघ का राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति या किसी राज्य का राज्यपाल* है अथवा संघ का या किसी राज्य का मंत्री है।
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संविधान (सात्व संशोधन) अधिनियम, 1956 की धरा 29 और अनुसूची द्वारा \"या राजप्रमुख या उप-राज्यप्रमुख \" शब्दों का लोप किया गया
➦ भारतीय संविधान अनुच्छेद 59 (Article 59) - राष्ट्रपति के पद के लिए शर्तें
विवरण- राष्ट्रपति संसद के किसी सदन का या किसी राज्य के विधान-मंडल के किसी सदन का सदस्य नहीं होगा और यदि संसद के किसी सदन का या किसी राज्य के विधान-मंडल के किसी सदन का कोई सदस्य राष्ट्रपति निर्वाचित हो जाता है तो यह समझा जाएगा कि उसने उस सदन में अपना स्थान राष्ट्रपति के रूप में अपने पद ग्रहण की तारीख से रिक्त कर दिया है।
- राष्ट्रपति अन्य कोई लाभ का पद धारण नहीं करेगा।
- राष्ट्रपति, बिना किराया दिए, अपने शासकीय निवासों के उपयोग का हकदार होगा और ऐसी उपलब्धियों, भत्तों और विशेषाधिकारों का भी, जो संसद, विधि द्वारा अवधारित करे और जब तक इस निमित्त इस प्रकार उपबंध नहीं किया जाता है तब तक ऐसी उपलब्धियों, भत्तों और विशेषाधिकारों का, जो दूसरी अनुसूची में विनिर्दिष्ट हैं, हकदार होगा।
- राष्ट्रपति की उपलब्धियाँ और भत्ते उसकी पदावधि के दौरान कम नहीं किए जाएँगे।
➦ भारतीय संविधान अनुच्छेद 60 (Article 60) - राष्ट्रपति द्वारा शपथ या प्रतिज्ञान
विवरणप्रत्येक राष्ट्रपति और प्रत्येक व्यक्ति, जो राष्ट्रपति के रूप में कार्य कर रहा है या उसके कृत्यों का निर्वहन कर रहा है, अपना पद ग्रहण करने से पहले भारत के मुख्य न्यायमूर्ति या उसकी अनुपस्थिति में उच्चतम न्यायालय के उपलब्ध ज्येष्ठतम न्यायाधीश के समक्ष निम्नलिखित प्ररूप में शपथ लेगा या प्रतिज्ञान करेगा और उस पर अपने हस्ताक्षर करेगा, अर्थात्: --
ईश्वर की शपथ लेता हूँ
\"मैं, अमुक -------------------------------कि मैं श्रद्धापूर्वक भारत के राष्ट्रपति के पद का कार्यपालन सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञान करता हूँ।
(अथवा राष्ट्रपति के कृत्यों का निर्वहन) करूंगा तथा अपनी पूरी योग्यता से संविधान और विधि का परिरक्षण, संरक्षण और प्रतिरक्षण करूँगा और मैं भारत की जनता की सेवा और कल्याण में निरत रहूँगा।\"।
➦ भारतीय संविधान अनुच्छेद 61 (Article 61) - राष्ट्रपति पर महाभियोग चलाने की प्रक्रिया
विवरण(1) जब संविधान के ओंतक्रमण के लिए राष्ट्रपति पर महाभियोग चलाना हो, तब संसद का कोई सदन आरोप लगाएगा।
(2) ऐसा कोई आरोप तब तक नहीं लगाया जाएगा जब तक कि---
- (क) ऐसा आरोप लगाने की प्रस्थापना किसी ऐसे संकल्प में अंतर्विष्ट नहीं है, जो कम से कम चौदह दिन की ऐसी लिखित सूचना के दिए जाने के पश्चात् प्रस्तावित किया गया है जिस पर उस सदन की कुल सदस्य संख्या के कम से कम एक-चौथाई सदस्यों ने हस्ताक्षर करके उस संकल्प को प्रस्तावित करने का अपना आशय प्रकट किया है; और
- (ख) उस सदन की कुल सदस्य संख्या के कम से कम दो-तिहाई बहुमत द्वारा ऐसा संकल्प पारित नहीं किया गया है।
(4) यदि अन्वेषण के परिणामस्वरूप यह घोषित करने वाला संकल्प कि राष्ट्रपति के विरुद्ध लगाया गया आरोप सिद्ध हो गया है, आरोप का अन्वेषण करने या कराने वाले सदन की कुल सदस्य संख्या के कम से कम दो-तिहाई बहुमत द्वारा पारित कर दिया जाता है तो ऐसे संकल्प का प्रभाव उसके इस प्रकार पारित किए जाने की तारीख से राष्ट्रपति को उसके पद से हटाना होगा।
➦ भारतीय संविधान अनुच्छेद 62 (Article 62) -
राष्ट्रपति के पद में रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचन करने का समय और आकस्मिक रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचित व्यक्ति की पदावधि
विवरण
➦ भारतीय संविधान अनुच्छेद 65 (Article 65) -
- राष्ट्रपति की पदावधि की समाप्ति से हुई रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचन, पदावधि की समाप्ति से पहले ही पूर्ण कर लिया जाएगा।
- राष्ट्रपति की मृत्यु, पदत्याग या पद से हटाए जाने या अन्य कारण से हुई उसके पद में रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचन, रिक्ति होने की तारीख के पश्चात् यथाशीघ्र और प्रत्येक दशा में छह मास बीतने से पहले किया जाएगा और रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचित व्यक्ति, अनुच्छेद 56 के उपबंधों के अधीन रहते हुए, अपने पद ग्रहण की तारीख से पाँच वर्ष की पूरी अवधि तक पद धारण करने का हकदार होगा।
➦ भारतीय संविधान अनुच्छेद 63 (Article 63) - भारत का उपराष्ट्रपति
विवरण- भारत का एक उपराष्ट्रपति होगा।
➦ भारतीय संविधान अनुच्छेद 64 (Article 64 ) उपराष्ट्रपति का राज्यसभा का पदेन सभापति
विवरण
- उपराष्ट्रपति का राज्यसभा का पदेन सभापति होना
➦ भारतीय संविधान अनुच्छेद 65 (Article 65) -
राष्ट्रपति के पद में आकस्मिक रिक्ति के दौरान या उसकी अनुपस्थिति में उपराष्ट्रपति का राष्ट्रपति के रूप में कार्य करना या उसके कृत्यों का निर्वहन
विवरण
(1) उपराष्ट्रपति का निर्वाचन [संसद के दोनों सदनों के सदस्यों से मिलकर बनने वाले निर्वाचकगण के सदस्यों]* द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा होगा और ऐसे निर्वाचन में मतदान गुप्त होगा।
(2) उपराष्ट्रपति संसद के किसी सदन का या किसी राज्य के विधान-मंडल के किसी सदन का सदस्य नहीं होगा और यदि संसद के किसी सदन का या किसी राज्य के विधान-मंडल के किसी सदन का कोई सदस्य उपराष्ट्रपति निर्वाचित हो जाता है तो यह समझा जाएगा कि उसने उस सदन में अपना स्थान उपराष्ट्रपति के रूप में अपने पद ग्रहण की तारीख से रिक्त कर दिया है।
(3) कोई व्यक्ति उपराष्ट्रपति निर्वाचित होने का पात्र तभी होगा जब वह--
- राष्ट्रपति की मृत्यु, पदत्याग या पद से हटाए जाने या अन्य कारण से उसके पद में हुई रिक्ति की दशा में उपराष्ट्रपति उस तारीख तक राष्ट्रपति के रूप में कार्य करेगा जिस तारीख को ऐसी रिक्ति को भरने के लिए इस अध्याय के उपबंधों के अनुसार निर्वाचित नया राष्ट्रपति अपना पद ग्रहण करता है।
- जब राष्ट्रपति अनुपस्थिति, बीमारी या अन्य किसी कारण से अपने कृत्यों का निर्वहन करने में असमर्थ है तब उपराष्ट्रपति उस तारीख तक उसके कृत्यों का निर्वहन करेगा जिस तारीख को राष्ट्रपति अपने कर्तव्यों को फिर से संभालता है।
- उपराष्ट्रपति को उस अवधि के दौरान और उस अवधि के संबंध में, जब वह राष्ट्रपति के रूप में इस प्रकार कार्य कर रहा है या उसके कृत्यों का निर्वहन कर रहा है, राष्ट्रपति की सभी शक्तियाँ और उन्मुक्तियाँ होंगी तथा वह ऐसी उपलब्धियों, भत्तों और विशेषाधिकारों का जो संसद, विधि द्वारा, अवधारित करे, और जब तक इस निमित्त इस प्रकार उपबंध नहीं किया जाता है तब तक ऐसी उपलब्धियों, भत्तों और विशेषाधिकारों का, जो दूसरी अनुसूची में विनिर्दिष्ट हैं, हकदार होगा।
➦ भारतीय संविधान अनुच्छेद 66 (Article 66) - उपराष्ट्रपति का निर्वाचन
विवरण(1) उपराष्ट्रपति का निर्वाचन [संसद के दोनों सदनों के सदस्यों से मिलकर बनने वाले निर्वाचकगण के सदस्यों]* द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा होगा और ऐसे निर्वाचन में मतदान गुप्त होगा।
(2) उपराष्ट्रपति संसद के किसी सदन का या किसी राज्य के विधान-मंडल के किसी सदन का सदस्य नहीं होगा और यदि संसद के किसी सदन का या किसी राज्य के विधान-मंडल के किसी सदन का कोई सदस्य उपराष्ट्रपति निर्वाचित हो जाता है तो यह समझा जाएगा कि उसने उस सदन में अपना स्थान उपराष्ट्रपति के रूप में अपने पद ग्रहण की तारीख से रिक्त कर दिया है।
(3) कोई व्यक्ति उपराष्ट्रपति निर्वाचित होने का पात्र तभी होगा जब वह--
- (क) भारत का नागरिक है,
- (ख) पैंतीस वर्ष की आयु पूरी कर चुका है, और
- (ग) राज्य सभा का सदस्य निर्वाचित होने के लिए अर्हित है।
(4) कोई व्यक्ति, जो भारत सरकार के या किसी राज्य की सरकार के अधीन अथवा उक्त सरकारों में से किसी के नियंत्रण में किसी स्थानीय या अन्य प्राधिकारी के अधीन कोई लाभ का पद धारण करता है, उपराष्ट्रपति निर्वाचित होने का पात्र नहीं होगा।
स्पष्टीकरण--इस अनुच्छेद के प्रयोजनों के लिए, कोई व्यक्ति केवल इस कारण कोई लाभ का पद धारण करने वाला नहीं समझा जाएगा कि वह संघ का राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति या किसी राज्य का राज्यपाल** है अथवा संघ का या किसी राज्य का मंत्री है।
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(1) उपराष्ट्रपति अपने पद ग्रहण की तारीख से पांच वर्ष की अवधि तक पद धारण करेगा: परंतु--
उप राष्ट्रपति के पद में रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचन करने का समय और आकस्मिक रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचित व्यक्ति की पदावधि
प्रत्येक उपराष्ट्रपति अपना पद ग्रहण करने से पहले राष्ट्रपति अथवा उसके द्वारा इस निमित्त नियुक्त किसी व्यक्ति के समक्ष निम्नलिखित प्ररूप में शपथ लेगा या प्रतिज्ञान करेगा और उस पर अपने हस्ताक्षर करेगा, अर्थात्: --
स्पष्टीकरण--इस अनुच्छेद के प्रयोजनों के लिए, कोई व्यक्ति केवल इस कारण कोई लाभ का पद धारण करने वाला नहीं समझा जाएगा कि वह संघ का राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति या किसी राज्य का राज्यपाल** है अथवा संघ का या किसी राज्य का मंत्री है।
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- संविधान (ग्यारहवा संशोधन) अधिनियम, 1961 की धरा 2 द्वारा \"संयुक्त अधिवेशन में संमवेत संसद के सदस्यों\" के स्थान पर प्रतिस्थापित
- संविधान (सत्व संशोधन) अधिनियम, 1956 की धरा 29 और अनुसूची द्वारा \"या राजप्रमुख या उप-राज्यप्रमुख \" शब्दों का लोप किया गया
➦ भारतीय संविधान अनुच्छेद 67 (Article 67) - उपराष्ट्रपति की पदावधि
विवरण(1) उपराष्ट्रपति अपने पद ग्रहण की तारीख से पांच वर्ष की अवधि तक पद धारण करेगा: परंतु--
- (क) उपराष्ट्रपति, राष्ट्रपति को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा अपना पद त्याग सकेगा;
- (ख) उपराष्ट्रपति, राज्य सभा के ऐसे संकल्प द्वारा अपने पद से हटाया जा सकेगा जिसे राज्य सभा के तत्कालीन समस्त सदस्यों के बहुमत ने पारित किया है और जिससे लोकसभा सहमत है; किंतु इस खंड के प्रयोजन के लिए कई संकल्प तब तक प्रस्तावित नहीं किया जाएगा जब तक कि उस संकल्प को प्रस्तावित करने के आशय की कम से कम चौदह दिन की सूचना न दे दी गई हो;
- (ग) उपराष्ट्रपति, अपने पद की अवधि समाप्त हो जाने पर भी, तब तक पद धारण करता रहेगा जब तक उसका उत्तराधिकारी अपना पद ग्रहण नहीं कर लेता है।
➦ भारतीय संविधान अनुच्छेद 68 (Article 68 ) - उप राष्ट्रपति के पद में रिक्ति को भरना
विवरणउप राष्ट्रपति के पद में रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचन करने का समय और आकस्मिक रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचित व्यक्ति की पदावधि
➦ भारतीय संविधान अनुच्छेद 69 (Article 69) - उपराष्ट्रपति द्वारा शपथ या प्रतिज्ञान
विवरणप्रत्येक उपराष्ट्रपति अपना पद ग्रहण करने से पहले राष्ट्रपति अथवा उसके द्वारा इस निमित्त नियुक्त किसी व्यक्ति के समक्ष निम्नलिखित प्ररूप में शपथ लेगा या प्रतिज्ञान करेगा और उस पर अपने हस्ताक्षर करेगा, अर्थात्: --
ईश्वर की शपथ लेता हूँ
\"मैं, अमुक ---------------------------------कि मैं विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति सच्ची सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञा करता हूँ, श्रद्धा और निष्ठा रखूँगा तथा जिस पद को मैं ग्रहण करने वाला हूँ उसके कर्तव्यों का श्रद्धापूर्वक निर्वहन करूँगा।"
➦ भारतीय संविधान अनुच्छेद 70 (Article 70) -
\"मैं, अमुक ---------------------------------कि मैं विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति सच्ची सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञा करता हूँ, श्रद्धा और निष्ठा रखूँगा तथा जिस पद को मैं ग्रहण करने वाला हूँ उसके कर्तव्यों का श्रद्धापूर्वक निर्वहन करूँगा।"
➦ भारतीय संविधान अनुच्छेद 70 (Article 70) -
अन्य आकस्मिकताओं में राष्ट्रपति के कृत्यों का निर्वहन
विवरण
संसद, ऐसी किसी आकस्मिकता में जो इस अध्याय में उपबंधित नहीं है, राष्ट्रपति के कृत्यों के निर्वहन के लिए ऐसा उपबंध कर सकेगी जो वह ठीक समझे।
संसद, ऐसी किसी आकस्मिकता में जो इस अध्याय में उपबंधित नहीं है, राष्ट्रपति के कृत्यों के निर्वहन के लिए ऐसा उपबंध कर सकेगी जो वह ठीक समझे।
➦ भारतीय संविधान अनुच्छेद 71 (Article 71) - राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के निर्वाचन संबंधित विषय
➦ भारतीय संविधान अनुच्छेद 72 (Article 72) - क्षमा आदि की और कुछ मामलों में दंडादेश के निलंबन, परिहार या लघुकरण की राष्ट्रपति की शक्ति
विवरण
(1) राष्ट्रपति को, किसी अपराध के लिए सिद्धदोष ठहराए गए किसी व्यक्ति के दंड को क्षमा, उसका प्रविलंबन, विराम या परिहार करने की अथवा दंडादेश के निलंबन, परिहार या लघुकरण की--
(3) खंड (1) के उपखंड (ग) की कोई बात तत्समय प्रवृत्त किसी विधि के अधीन किसी राज्य के राज्यपाल* द्वारा प्रयोक्तव्य मृत्यु दंडादेश के निलंबन, परिहार या लघुकरण की शक्ति पर प्रभाव नहीं डालेगी।
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(1) इस संविधान के उपबंधों के अधीन रहते हुए, संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार--
(1) राष्ट्रपति को सहायता और सलाह देने के लिए एक मंत्रि-परिषद होगी जिसका प्रधान, प्रधानमंत्री होगा और राष्ट्रपति अपने कृत्यों का प्रयोग करने में ऐसी सलाह के अनुसार कार्य करेगा:
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संविधान (बयालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1976 की धरा 13 द्वारा (3-1-1977 से) खांडा (1) के स्थान पर प्रतिस्थापित
संविधान (चावलिसवा संशोधन) अधिनियम, 1978 की धरा 11 द्वारा (20-6-1979 से) अन्तःस्थापित
(1) प्रधानमंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति करेगा और अन्य मंत्रियों की नियुक्ति राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री की सलाह पर करेगा।
(3) मंत्रि-परिषद लोकसभा के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी होगी।
(4) किसी मंत्री द्वारा अपना पद ग्रहण करने से पहले, राष्ट्रपति तीसरी अनुसूची में इस प्रयोजन के लिए दिए गए प्रारूपों के अनुसार उसको पद की और गोपनीयता की शपथ दिलाएगा।
(5) कोई मंत्री, जो निरंतर छह मास की किसी अवधि तक संसद के किसी सदन का सदस्य नहीं है, उस अवधि की समाप्ति पर मंत्री नहीं रहेगा।
(6) मंत्रियों के वेतन और भत्ते ऐसे होंगे जो संसद, विधि द्वारा, समय-समय पर अवधारित करे और जब तक संसद इस प्रकार अवधारित नहीं करती है तब तक ऐसे होंगे जो दूसरी अनुसूची में विनिर्दिष्ट हैं।
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संविधान (इक्यानवेवा संशोधन) अधिनियम, 2003 की धरा 2 द्वारा अन्तःस्थापित
(1) राष्ट्रपति को, किसी अपराध के लिए सिद्धदोष ठहराए गए किसी व्यक्ति के दंड को क्षमा, उसका प्रविलंबन, विराम या परिहार करने की अथवा दंडादेश के निलंबन, परिहार या लघुकरण की--
- (क) उन सभी मामलों में, जिनमें दंड या दंडादेश सेना न्यायालय ने दिया है,
- (ख) उन सभी मामलों में, जिनमें दंड या दंडादेश ऐसे विषय संबंधी किसी विधि के विरुद्ध अपराध के लिए दिया गया है जिस विषय तक संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार है,
- (ग) उन सभी मामलों में, जिनमें दंडादेश, मृत्यु दंडादेश है, शक्ति होगी।
(3) खंड (1) के उपखंड (ग) की कोई बात तत्समय प्रवृत्त किसी विधि के अधीन किसी राज्य के राज्यपाल* द्वारा प्रयोक्तव्य मृत्यु दंडादेश के निलंबन, परिहार या लघुकरण की शक्ति पर प्रभाव नहीं डालेगी।
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- संविधान (सत्व संशोधन) अधिनियम, 1956 की धरा 29 और अनुसूची द्वारा \"या राजप्रमुख या उप-राज्यप्रमुख \" शब्दों का लोप किया गया
➦ भारतीय संविधान अनुच्छेद 73 (Article 73) - संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार
विवरण(1) इस संविधान के उपबंधों के अधीन रहते हुए, संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार--
- (क) जिन विषयों के संबंध में संसद को विधि बनाने की शक्ति है उन तक, और
- (ख) किसी संधि या करार के आधार पर भारत सरकार द्वारा प्रयोक्तव्य अधिकारों, प्राधिकार और के प्रयोग तक होगा;
- परंतु इस संविधान में या संसद द्वारा बनाई गई किसी विधि में अभिव्यक्त रूप से यथा उपबंधित के सिवाय, उपखंड (क) में निर्दिष्ट कार्यपालिका शक्ति का विस्तार किसी राज्य में ऐसे विषयों तक नहीं होगा जिनके संबंध में उस राज्य के विधान-मंडल को भी विधि बनाने की शक्ति है।
➦ भारतीय संविधान अनुच्छेद 74 (Article 74) - राष्ट्रपति को सहायता और सलाह देने के लिए मंत्रि-परिषद
विवरण(1) राष्ट्रपति को सहायता और सलाह देने के लिए एक मंत्रि-परिषद होगी जिसका प्रधान, प्रधानमंत्री होगा और राष्ट्रपति अपने कृत्यों का प्रयोग करने में ऐसी सलाह के अनुसार कार्य करेगा:
- परंतु राष्ट्रपति मंत्रि-परिषद से ऐसी सलाह पर साधारणतया या अन्यथा पुनर्विचार करने की अपेक्षा कर सकेगा और राष्ट्रपति ऐसे पुनर्विचार के पश्चात् दी गई सलाह के अनुसार कार्य करेगा।
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संविधान (बयालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1976 की धरा 13 द्वारा (3-1-1977 से) खांडा (1) के स्थान पर प्रतिस्थापित
संविधान (चावलिसवा संशोधन) अधिनियम, 1978 की धरा 11 द्वारा (20-6-1979 से) अन्तःस्थापित
➦ भारतीय संविधान अनुच्छेद 75 (Article 75) - मंत्रियों के बारे में अन्य उपबंध
विवरण(1) प्रधानमंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति करेगा और अन्य मंत्रियों की नियुक्ति राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री की सलाह पर करेगा।
- (1क) मंत्रि-परिषद में प्रधानमंत्री सहित मंत्रियों की कुल संख्या लोकसभा के सदस्यों की कुल संख्या के पन्द्रह प्रतिशत से अधिक नहीं होगी।
- (1ख) किसी राजनीतिक दल का संसद के किसी सदन का कोई सदस्य, जो दसवीं अनुसूची के पैरा 2 के अधीन उस सदन का सदस्य होने के लिए निरर्हित है, अपनी निरर्हता की तारीख से प्रारंभ होने वाली और उस तारीख तक जिसको ऐसे सदस्य के रूप में उसकी पदावधि समाप्त होगी या जहाँ वह ऐसी अवधि की समाप्ति के पूर्व ससंद के किसी सदन के लिए निर्वाचन लड़ता है, उस तारीख तक जिसको वह निर्वाचित घोषित किया जाता है, इनमें से जो भी पूर्वतर हो, की अवधि के दौरान, खंड (1) के अधीन मंत्री के रूप में नियुक्त किए जाने के लिए भी निरर्हित होगा।
(3) मंत्रि-परिषद लोकसभा के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी होगी।
(4) किसी मंत्री द्वारा अपना पद ग्रहण करने से पहले, राष्ट्रपति तीसरी अनुसूची में इस प्रयोजन के लिए दिए गए प्रारूपों के अनुसार उसको पद की और गोपनीयता की शपथ दिलाएगा।
(5) कोई मंत्री, जो निरंतर छह मास की किसी अवधि तक संसद के किसी सदन का सदस्य नहीं है, उस अवधि की समाप्ति पर मंत्री नहीं रहेगा।
(6) मंत्रियों के वेतन और भत्ते ऐसे होंगे जो संसद, विधि द्वारा, समय-समय पर अवधारित करे और जब तक संसद इस प्रकार अवधारित नहीं करती है तब तक ऐसे होंगे जो दूसरी अनुसूची में विनिर्दिष्ट हैं।
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संविधान (इक्यानवेवा संशोधन) अधिनियम, 2003 की धरा 2 द्वारा अन्तःस्थापित
➦ भारतीय संविधान अनुच्छेद 76 (Article 76) - भारत का महान्यायवादी
विवरण- (1) राष्ट्रपति, उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त होने के लिए अर्हित किसी व्यक्ति को भारत का महान्यायवादी नियुक्त करेगा।
- (2) महान्यायवादी का यह कर्तव्य होगा कि वह भारत सरकार को विधि संबंधी ऐसे विषयों पर सलाह दे और विधिक स्वरूप के ऐसे अन्य कर्तव्यों का पालन करे जो राष्ट्रपति उसको समय-समय पर निर्देशित करे या सौंपे और उन कृत्यों का निर्वहन करे जो उसको इस संविधान अथवा तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि द्वारा या उसके अधीन प्रदान किए गए हों।
- (3) महान्यायवादी को अपने कर्तव्यों के पालन में भारत के राज्यक्षेत्र में सभी न्यायालयों में सुनवाई का अधिकार होगा।
- (4) महान्यायवादी, राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत पद धारण करेगा और ऐसा पारिश्रमिक प्राप्त करेगा जो राष्ट्रपति अवधारित करे।
➦ भारतीय संविधान अनुच्छेद 77 (Article 77) - भारत सरकार के कार्य का संचालन
- भारत सरकार की समस्त कार्यपालिका कार्यवाही राष्ट्रपति के नाम से की जाएगी।
➦ भारतीय संविधान अनुच्छेद 78 (Article 78) -
राष्ट्रपति को जानकारी देने आदि के संबंध में प्रधानमंत्री के कर्तव्य
विवरणप्रधानमंत्री का यह कर्तव्य होगा कि वह --
- (क) संघ के कार्यकलाप के प्रशासन संबंधी और विधान विषयक प्रस्थापनाओं संबंधी मंत्रि-परिषद के सभी विनिश्चय राष्ट्रपति को संसूचित करे;
- (ख) संघ के कार्यकलाप के प्रशासन संबंधी और विधान विषयक प्रस्थापनाओं संबंधी जो जानकारी राष्ट्रपति माँगें , वह दे; और
- (ग) किसी विषय को जिस पर किसी मंत्री ने विनिश्चय कर दिया है किन्तु मंत्रि-परिषद ने विचार नहीं किया है, राष्ट्रपति द्वारा अपेक्षा किए जाने पर परिषद के समक्ष विचार के लिए रखे
➦ भारतीय संविधान अनुच्छेद 79 (Article 79) - संसद का गठन
विवरण
संघ के लिए एक संसद होगी जो राष्ट्रपति और दो सदनों से मिलकर बनेगी जिनके नाम राज्य सभा और लोकसभा होंगे।
(1) राज्य सभा –
चौथी अनुसूची में इस निमित्त अंतर्विष्ट उपबंधों के अनुसार होगा।
(3) राष्ट्रपति द्वारा खंड (1) के उपखंड (क) के अधीन नामनिर्देशित किए जाने वाले सदस्य ऐसे व्यक्ति होंगे जिन्हें निम्नलिखित विषयों के संबंध में विशेष ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव है, अर्थात् : --
साहित्य, विज्ञान, कला और समाज सेवा।
(4) राज्य सभा में प्रत्येक राज्य के प्रतिनिधियों का निर्वाचन उस राज्य की विधानसभा के निर्वाचित सदस्यों द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा किया जाएगा।
(5) राज्य सभा में संघ राज्यक्षेत्रों के प्रतिनिधि ऐसी रीति से चुने जाएँगे जो संसद विधि द्वारा विहित करे।
(1) अनुच्छेद 331 के उपबंधों के अधीन रहते हुए लोकसभा--
(3) इस अनुच्छेद में, ''जनसंख्या'' पद से ऐसी अंतिम पूर्ववर्ती जनगणना में अभिनिश्चित की गई जनसंख्या अभिप्रेत है जिसके सुसंगत आँकड़े प्रकाशित हो गए हैं;
परन्तु इस खंड में अंतिम पूर्ववर्ती जनगणना के प्रति, जिसके सुसंगत आँकड़े प्रकाशित हो गए हैं, निर्देश का, जब तक सन 2026 के पश्चात् की गई पहली जनगणना के सुसंगत आँकड़े प्रकाशित नहीं हो जाते हैं, यह अर्थ लगाया जाएगा कि वह,
खंड (2) के उपखंड (क) और उस खंड के परन्तुक के प्रयोजनों के लिए 1971 की जनगणना के प्रति निर्देश है; और
खंड (2) के उपखंड (ख) के प्रयोजनों के लिए 2001 की जनगणना के प्रतिनिर्देश है।
संविधान (चवालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 13 द्वारा (20-6-1979 से) ''छह वर्ष'' शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित। संविधान (बयालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 17 द्वारा (3-1-1977 से) ''पाँच वर्ष'' मूल शब्दों के स्थान पर ''छह वर्ष'' शब्द प्रतिस्थापित किए गए थे।
कोई व्यक्ति संसद के किसी स्थान को भरने के लिए चुने जाने के लिए अर्हित तभी होगा जब—
(1) राष्ट्रपति समय-समय पर, संसद के प्रत्येक सदन को ऐसे समय और स्थान पर, जो वह ठीक समझे, अधिवेशन के लिए आहूत करेगा, किन्तु उसके एक सत्र की अंतिम बैठक और आगामी सत्र की प्रथम बैठक के लिए नियत तारीख के बीच छह मास का अंतर नहीं होगा।
(2) राष्ट्रपति, समय-समय पर--
संविधान (पहला संशोधन) अधिनियम, 1951 की धारा 6 द्वारा अनुच्छेद 85 के स्थान पर प्रतिस्थापित।
➦ भारतीय संविधान अनुच्छेद 80 (Article 80) - राज्य सभा की संरचना
विवरण(1) राज्य सभा –
- (क) राष्ट्रपति द्वारा खंड (3) के उपबंधों के अनुसार नामनिर्देशित किए जाने वाले बारह सदस्यों, और
- (ख) राज्यों के और संघ राज्यक्षेत्रों के दो सौ अड़तीस से अनधिक प्रतिनिधियों, से मिलकर बनेगी।
चौथी अनुसूची में इस निमित्त अंतर्विष्ट उपबंधों के अनुसार होगा।
(3) राष्ट्रपति द्वारा खंड (1) के उपखंड (क) के अधीन नामनिर्देशित किए जाने वाले सदस्य ऐसे व्यक्ति होंगे जिन्हें निम्नलिखित विषयों के संबंध में विशेष ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव है, अर्थात् : --
साहित्य, विज्ञान, कला और समाज सेवा।
(4) राज्य सभा में प्रत्येक राज्य के प्रतिनिधियों का निर्वाचन उस राज्य की विधानसभा के निर्वाचित सदस्यों द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा किया जाएगा।
(5) राज्य सभा में संघ राज्यक्षेत्रों के प्रतिनिधि ऐसी रीति से चुने जाएँगे जो संसद विधि द्वारा विहित करे।
➦ भारतीय संविधान अनुच्छेद 81 (Article 81) - लोकसभा की संरचना
विवरण(1) अनुच्छेद 331 के उपबंधों के अधीन रहते हुए लोकसभा--
- (क) राज्यों में प्रादेशिक निर्वाचन-क्षेत्रों से प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा चुने गए पाँच सौ तीस से अनधिक सदस्यों, और
- (ख) संघ राज्यक्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करने के लिए ऐसी रीति से, जो संसद विधि द्वारा उपबंधित करे, चुने हुए बीस से अधिक सदस्यों, से मिलकर बनेगी।
- (क) प्रत्येक राज्य को लोकसभा में स्थानों का आबंटन ऐसी रीति से किया जाएगा कि स्थानों की संख्या से उस राज्य की जनसंख्या का अनुपात सभी राज्यों के लिए यथासाध्य एक ही हो, और
- (ख) प्रत्येक राज्य को प्रादेशिक निर्वाचन-क्षेत्रों में ऐसी रीति से विभाजित किया जाएगा कि प्रत्येक निर्वाचन-क्षेत्र की जनसंख्या का उसको आबंटित स्थानों की संख्या से अनुपात समस्त राज्य में यथासाध्य एक ही हो
(3) इस अनुच्छेद में, ''जनसंख्या'' पद से ऐसी अंतिम पूर्ववर्ती जनगणना में अभिनिश्चित की गई जनसंख्या अभिप्रेत है जिसके सुसंगत आँकड़े प्रकाशित हो गए हैं;
परन्तु इस खंड में अंतिम पूर्ववर्ती जनगणना के प्रति, जिसके सुसंगत आँकड़े प्रकाशित हो गए हैं, निर्देश का, जब तक सन 2026 के पश्चात् की गई पहली जनगणना के सुसंगत आँकड़े प्रकाशित नहीं हो जाते हैं, यह अर्थ लगाया जाएगा कि वह,
खंड (2) के उपखंड (क) और उस खंड के परन्तुक के प्रयोजनों के लिए 1971 की जनगणना के प्रति निर्देश है; और
खंड (2) के उपखंड (ख) के प्रयोजनों के लिए 2001 की जनगणना के प्रतिनिर्देश है।
➦ भारतीय संविधान अनुच्छेद 83 (Article 82) -परिसीमन आयोग
विवरण
संविधान के अनुच्छेद 82 के तहत हर जनगणना के बाद संसद कानून बनाकर परिसीमन आयोग का गठन करती है। 2002 में सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत चीफ जस्टिस कुलदीप सिंह की अध्यक्षता में परिसीमन आयोग बना। इससे पहले 1952, 1963 और 1973 में आयोग बना। लेकिन 1973 में परिसीमन रोक दिया गया जो 2001 में जनगणना होने तक ठप रहा। मौजूदा आयोग ने चुनाव क्षेत्रों का जो निर्धारण किया है वो 2026 में प्रस्तावित जनगणना तक यथावत बना रहेगा।➦ भारतीय संविधान अनुच्छेद 83 (Article 83) - संसद के सदनों का अवधि
विवरण- (1) राज्य सभा का विघटन नहीं होगा, किन्तु उसके सदस्यों में से यथासंभव निकटतम एक-तिहाई सदस्य, संसद द्वारा विधि द्वारा इस निमित्त किए गए उपबंधों के अनुसार, प्रत्येक द्वितीय वर्ष की समाप्ति पर यथाशक्य शीघ्र निवृत्त हो जाएँगे।
- (2) लोकसभा, यदि पहले ही विघटित नहीं कर दी जाती है तो, अपने प्रथम अधिवेशन के लिए नियत तारीख से 1[पाँच वर्ष] तक बनी रहेगी, इससे अधिक नहीं और [पाँच वर्ष] की उक्त अवधि की समाप्ति का परिणाम लोकसभा का विघटन होगा;
- परन्तु उक्त अवधि को, जब आपात की उद्घोषणा प्रवर्तन में है तब, संसद विधि द्वारा, ऐसी अवधि के लिए बढ़ा सकेगी, जो एक बार में एक वर्ष से अधिक नहीं होगी और उद्घोषणा के प्रवर्तन में न रह जाने के पश्चात् उसका विस्तार किसी भी दशा में छह मास की अवधि से अधिक नहीं होगा।
संविधान (चवालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 13 द्वारा (20-6-1979 से) ''छह वर्ष'' शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित। संविधान (बयालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 17 द्वारा (3-1-1977 से) ''पाँच वर्ष'' मूल शब्दों के स्थान पर ''छह वर्ष'' शब्द प्रतिस्थापित किए गए थे।
➦ भारतीय संविधान अनुच्छेद 84 (Article 84) -संसद की सदस्यता के लिए अर्हता
विवरणकोई व्यक्ति संसद के किसी स्थान को भरने के लिए चुने जाने के लिए अर्हित तभी होगा जब—
- (क) वह भारत का नागरिक है और निर्वाचन आयोग द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत किसी व्यक्ति के समक्ष तीसरी अनुसूची में इस प्रयोजन के लिए दिए गए प्रारूप के अनुसार शपथ लेता है या प्रतिज्ञान करता है और उस पर अपने हस्ताक्षर करता है;]*
- (ख) वह राज्य सभा में स्थान के लिए कम से कम तीस वर्ष की आयु का और लोकसभा में स्थान के लिए कम से कम पच्चीस वर्ष की आयु का है; और
- (ग) उसके पास ऐसी अन्य अर्हताएँ हैं जो संसद द्वारा बनाई गई किसी विधि द्वारा या उसके अधीन इस निमित्त विहित की जाएँ।
- संविधान (सोलहवाँ संशोधन) अधिनियम, 1963 की धारा 3 द्वारा खंड (क) के स्थान पर प्रतिस्थापित।
➦ भारतीय संविधान अनुच्छेद 85 (Article 85) - संसद के सत्र, सत्रावसान और विघटन
विवरण(1) राष्ट्रपति समय-समय पर, संसद के प्रत्येक सदन को ऐसे समय और स्थान पर, जो वह ठीक समझे, अधिवेशन के लिए आहूत करेगा, किन्तु उसके एक सत्र की अंतिम बैठक और आगामी सत्र की प्रथम बैठक के लिए नियत तारीख के बीच छह मास का अंतर नहीं होगा।
(2) राष्ट्रपति, समय-समय पर--
- (क) सदनों का या किसी सदन का सत्रावसान कर सकेगा;
- (ख) लोकसभा का विघटन कर सकेगा।
संविधान (पहला संशोधन) अधिनियम, 1951 की धारा 6 द्वारा अनुच्छेद 85 के स्थान पर प्रतिस्थापित।
➦ भारतीय संविधान अनुच्छेद 86 (Article 86) - सदनों में अभिभाषण का और उनको संदेश भेजने का राष्ट्रपति का अधिकार
विवरण- (1) राष्ट्रपति, संसद के किसी एक सदन में या एक साथ समवेत दोनों सदनों में अभिभाषण कर सकेगा और इस प्रयोजन के लिए सदस्यों की उपस्थिति की अपेक्षा कर सकेगा।
- (2) राष्ट्रपति , संसद में उस समय लंबित किसी विधेयक के संबंध में संदेश या कोई अन्य संदेश, संसद के किसी सदन को भेज सकेगा और जिस सदन को कोई संदेश इस प्रकार भेजा गया है वह सदन उस संदेश द्वारा विचार करने के लिए अपेक्षित विषय पर सुविधानुसार शीघ्रता से विचार करेगा।
➦ भारतीय संविधान अनुच्छेद 87 (Article 87) - राष्ट्रपति का विशेष अभिभाषण
विवरण- (1) राष्ट्रपति, लोकसभा के लिए प्रत्येक साधारण निर्वाचन के पश्चात् प्रथम सत्र के आरंभ में और प्रत्येक वर्ष के प्रथम सत्र के आरंभ में एक साथ समवेत संसद के दोनों सदनों में अभिभाषण करेगा और संसद को उसके आह्वान के कारण बताएगा।
- (2) प्रत्येक सदन की प्रक्रिया का विनियमन करने वाले नियमों द्वारा ऐसे अभिभाषण में निर्दिष्ट विषयों की चर्चा के लिए समय नियत करने के लिए उपबंध किया जाएगा।
संविधान (पहला संशोधन) अधिनियम, 1951 की धारा 7 द्वारा '' प्रत्येक सत्र'' के स्थान पर प्रतिस्थापित।
संविधान (पहला संशोधन) अधिनियम, 1951 की धारा 7 द्वारा '' और सदन के अन्य कार्य पर इस चर्चा को अग्रता देने के लिए'' शब्दों का लोप किया गया।
➦ भारतीय संविधान अनुच्छेद 88 (Article 88) - सदनों के बारे में मंत्रियों और महान्यायवादी के अधिकार
विवरणप्रत्येक मंत्री और भारत के महान्यायवादी को यह अधिकार होगा कि वह किसी भी सदन में, सदनों की किसी संयुक्त बैठक में और संसद की किसी समिति में, जिसमें उसका नाम सदस्य के रूप में दिया गया है, बोले और उसकी कार्यवाहियों में अन्यथा भाग ले, किन्तु इस अनुच्छेद के आधार पर वह मत देने का हकदार नहीं होगा।
➦ भारतीय संविधान अनुच्छेद 89 (Article 89) - राज्य सभा का सभापति और उपसभापति
विवरण- (1) भारत का उपराष्ट्रपति राज्य सभा का पदेन सभापति होगा।
- (2) राज्य सभा, यथाशक्य शीघ्र, अपने किसी सदस्य को अपना उपसभापति चुनेगी और जब-जब उपसभापति का पद रिक्त होता है तब-तब राज्य सभा किसी अन्य सदस्य को अपना उपसभापति चुनेगी।
➦ भारतीय संविधान अनुच्छेद 90 (Article 90) उपसभापति का पद रिक्त होना या पद हटाया जाना
➦ भारतीय संविधान अनुच्छेद 91 (Article 91) - सभापति के पद के कर्तव्यों का पालन करने या सभापति के रूप में कार्य करने की उपसभापति या अन्य व्यक्ति की शक्ति
विवरण- (1) जब सभापति का पद रिक्त है या ऐसी अवधि में जब उपराष्ट्रपति, राष्ट्रपति के रूप में कार्य कर रहा है या उसके कृत्यों का निर्वहन कर रहा है, तब उपसभापति या यदि उपसभापति का पद भी रिक्त है तो, राज्य सभा का ऐसा सदस्य जिसको राष्ट्रपति इस प्रयोजन के लिए नियुक्त करे, उस पद के कर्तव्यों का पालन करेगा।
- (2) राज्य सभा की किसी बैठक से सभापति की अनुपस्थिति में उपसभापति, या यदि वह भी अनुपस्थित है तो ऐसा व्यक्ति, जो राज्य सभा की प्रक्रिया के नियमों द्वारा अवधारित किया जाए, या यदि ऐसा कोई व्यक्ति उपस्थित नहीं है तो ऐसा अन्य व्यक्ति, जो राज्य सभा द्वारा अवधारित किया जाए, सभापति के रूप में कार्य करेगा।
➦ अनुच्छेद 90 :- भारतीय संविधान अनुच्छेद 92 (Article 92) - जब सभापति या उपसभापति को पद से हटाने का कोई संकल्प विचाराधीन है तब उसका पीठासीन न होना
विवरण- (1) राज्य सभा की किसी बैठक में, जब उपराष्ट्रपति को उसके पद से हटाने का कोई संकल्प विचाराधीन है तब सभापति, या जब उपसभापति को उसके पद से हटाने का कोई संकल्प विचाराधीन है तब उपसभापति, उपस्थित रहने पर भी, पीठासीन नहीं होगा और अनुच्छेद 91 के खंड (2) के उपबंध ऐसी प्रत्येक बैठक के संबंध में वैसे ही लागू होंगे जैसे वे उस बैठक के संबंध में लागू होते हैं जिससे, यथास्थिति, सभापति या उपसभापति अनुपस्थित है।
- (2) जब उपराष्ट्रपति को उसके पद से हटाने का कोई संकल्प राज्य सभा में विचाराधीन है तब सभापति को राज्य सभा में बोलने और उसकी कार्यवाहियों में अन्यथा भाग लेने का अधिकार होगा, किन्तु वह अनुच्छेद 100 में किसी बात के होते हुए भी ऐसे संकल्प पर या ऐसी कार्यवाहियों के दौरान किसी अन्य विषय पर, मत देने का बिल्कुल हकदार नहीं होगा।
➦ भारतीय संविधान अनुच्छेद 93 (Article 93) - लोकसभा का अध्यक्ष और उपाध्यक्ष
विवरणलोकसभा, यथाशक्य शीघ्र, अपने दो सदस्यों को अपना अध्यक्ष और उपाध्यक्ष चुनेगी और जब-जब अध्यक्ष या उपाध्यक्ष का पद रिक्त होता है तब-तब लोकसभा किसी अन्य सदस्य को, यथास्थिति, अध्यक्ष या उपाध्यक्ष चुनेगी।
➦ भारतीय संविधान अनुच्छेद 94 (Article 94)अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का पद रिक्त होना
➦ भारतीय संविधान अनुच्छेद 95 (Article 95) - अध्यक्ष के पद के कर्तव्यों का पालन करने या अध्यक्ष के रूप में कार्य करने की उपाध्यक्ष या अन्य व्यक्ति की शक्ति
विवरण- (1) जब अध्यक्ष का पद रिक्त है तब उपाध्यक्ष, या यदि उपाध्यक्ष का पद भी रिक्त है तो लोकसभा का ऐसा सदस्य, जिसको राष्ट्रपति इस प्रयोजन के लिए नियुक्त करे, उस पद के कर्तव्यों का पालन करेगा।
- (2) लोकसभा की किसी बैठक के अध्यक्ष की अनुपस्थिति में उपाध्यक्ष, या यदि वह भी अनुपस्थित है तो ऐसा व्यक्ति, जो लोकसभा की प्रक्रिया के नियमों द्वारा अवधारित किया जाए, या यदि ऐसा कोई व्यक्ति उपस्थित नहीं है तो ऐसा अन्य व्यक्ति, जो लोकसभा द्वारा अवधारित किया जाए, अध्यक्ष के रूप में कार्य करेगा।
➦ भारतीय संविधान अनुच्छेद 96 (Article 96) - अध्यक्ष उपाध्यक्ष को पद से हटाने का संकल्प हो तब उसका पीठासीन ना होना
➦ भारतीय संविधान अनुच्छेद 97 (Article 97) -सभापति उपसभापति तथा अध्यक्ष, उपाध्यक्ष के वेतन और भत्ते
➦ भारतीय संविधान अनुच्छेद 98 (Article 98) -संसद का सविचालय
➦ भारतीय संविधान अनुच्छेद 99 (Article 99) - सदस्यों द्वारा शपथ या प्रतिज्ञान
विवरणसंसद के प्रत्येक सदन का प्रत्येक सदस्य अपना स्थान ग्रहण करने से पहले, राष्ट्रपति या उसके द्वारा इस निमित्त नियुक्त व्यक्ति के समक्ष, तीसरी अनुसूची के इस प्रयोजन के लिए दिए गए प्रारूप के अनुसार, शपथ लेगा या प्रतिज्ञान करेगा और उस पर अपने हस्ताक्षर करेगा।
➦ भारतीय संविधान अनुच्छेद 100 (Article 100) - सदनों में मतदान, रिक्तियों के होते हुए भी सदनों की कार्य करने की शक्ति और गणपूर्ति
विवरण- (1)इस संविधान में यथा अन्यथा उपबंधित के सिवाय, प्रत्येक सदन की बैठक में या सदनों की संयुक्त बैठक में सभी प्रश्नों का अवधारण, अध्यक्ष को अथवा सभापति या अध्यक्ष के रूप में कार्य करने वाले व्यक्ति को छोड़कर, उपस्थिति और मत देने वाले सदस्यों के बहुमत से किया जाएगा। सभापति या अध्यक्ष , अथवा उस रूप में कार्य करने वाला व्यक्ति प्रथमतः मत नहीं देगा, किन्तु मत बराबर होने की दशा में उसका निर्णायक मत होगा और वह उसका प्रयोग करेगा।
- (2) संसद के किसी सदन की सदस्यता में कोई रिक्ति होने पर भी, उस सदन को कार्य करने की शक्ति होगी और यदि बाद में यह पता चलता है कि कोई व्यक्ति, जो ऐसा करने का हकदार नहीं था, कार्यवाहियों में उपस्थित रहा है या उसने मत दिया है या अन्यथा भाग लिया है तो भी संसद की कोई कार्यवाही विधिमान्य होगी।
- (3) जब तक संसद विधि द्वारा अन्यथा उपबंध न करे तब तक संसद के प्रत्येक सदन का अधिवेशन गठित करने के लिए गणपूर्ति सदन के सदस्यों की कुल संख्या का दसवां भाग होगी।
- (4) यदि सदन के अधिवेशन में किसी समय गणपूर्ति नहीं है तो सभापति या अध्यक्ष अथवा उस रूप में कार्य करने वाले व्यक्ति का यह कर्तव्य होगा कि वह सदन को स्थगित कर दे या अधिवेशन को तब तक के लिए निलंबित कर दे जब तक गणपूर्ति नहीं हो जाती है।
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