🕺 छत्तीसगढ़ की जनजातियाँ और उनके पारंपरिक नृत्य
🔷 प्रस्तावना
छत्तीसगढ़ भारत का वह राज्य है जहां जनजातीय संस्कृति आज भी जीवंत और प्रभावशाली है। यहाँ की जनजातियाँ अपने पारंपरिक जीवनशैली, लोक कला, संगीत और नृत्य के लिए प्रसिद्ध हैं। इनका नृत्य केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि जीवन के हर पहलू से जुड़ा होता है — कृषि, युद्ध, प्रेम, पूजा, और सामाजिक उत्सव।
इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे छत्तीसगढ़ की प्रमुख जनजातियों और उनके द्वारा किए जाने वाले विशिष्ट लोकनृत्यों के बारे में, जिनमें सांस्कृतिक विविधता, ऐतिहासिक गहराई और पारंपरिक ज्ञान समाया हुआ है।
📌 छत्तीसगढ़ की प्रमुख जनजातियाँ
छत्तीसगढ़ में अनुसूचित जनजातियों की संख्या काफी अधिक है। राज्य की कुल जनसंख्या का लगभग 30% भाग जनजातीय समुदायों से आता है। यहां की प्रमुख जनजातियाँ हैं:
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गोंड
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मुरिया
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बैगा
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उरांव
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भतरा
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हल्बा
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बिरहोर
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परधान
इन जनजातियों का नृत्य उनके सामाजिक जीवन का हिस्सा है और प्रत्येक नृत्य की अपनी कहानी, उद्देश्य और धार्मिक या मौसमी महत्व होता है।
🕺 छत्तीसगढ़ की जनजातियाँ और उनके पारंपरिक नृत्य
नीचे हम जनजातियों के अनुसार उनके प्रमुख नृत्यों का विवरण दे रहे हैं।
1️⃣ गोंड जनजाति
🔹 प्रमुख नृत्य:
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सुआ नृत्य
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करमा नृत्य
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ककसार नृत्य
🔹 विवरण:
गोंड जनजाति छत्तीसगढ़ की सबसे प्रमुख जनजातियों में से एक है। इनके नृत्य विशेषकर कृषि से जुड़े होते हैं।
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सुआ नृत्य: महिलाएं इस नृत्य को करती हैं। यह फसल की कटाई या दीपावली के समय किया जाता है। मिट्टी के तोते (सुआ) को केंद्र में रखकर महिलाएं वृत्ताकार होकर गीत गाती हैं और नृत्य करती हैं।
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करमा नृत्य: यह नृत्य करम पर्व के अवसर पर किया जाता है। इसमें करम पेड़ की पूजा कर सामूहिक नृत्य किया जाता है।
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ककसार नृत्य: यह फसल की बुवाई से पहले किया जाता है। युवक-युवतियाँ समूह में गीत गाते हुए नृत्य करते हैं।
2️⃣ मुरिया जनजाति
🔹 प्रमुख नृत्य:
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ककसार नृत्य
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गौर नृत्य
🔹 विवरण:
मुरिया जनजाति बस्तर क्षेत्र में पाई जाती है। यह नृत्य प्रकृति से सीधा जुड़ा होता है।
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ककसार नृत्य: इसमें युवक-युवतियाँ वाद्य यंत्रों की ताल पर समन्वय के साथ नृत्य करते हैं।
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गौर नृत्य: यह नृत्य शिकार से संबंधित होता है। पुरुष सिर पर मोर पंख और विशेष वस्त्र पहनकर इसे करते हैं।
3️⃣ बैगा जनजाति
🔹 प्रमुख नृत्य:
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करमा नृत्य
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सुआ नृत्य
🔹 विवरण:
बैगा जनजाति जंगलों और पहाड़ी क्षेत्रों में पाई जाती है। ये प्रकृति पूजक होते हैं।
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करमा नृत्य: यह नृत्य धार्मिक भावना के साथ किया जाता है। ढोल, मांदर और झांझ की ताल पर महिलाएं पुरुषों के साथ तालमेल में नृत्य करती हैं।
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सुआ नृत्य: यह गोंडों की तरह ही महिलाओं द्वारा किया जाता है।
4️⃣ उरांव जनजाति
🔹 प्रमुख नृत्य:
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करमा नृत्य
🔹 विवरण:
उरांव जनजाति सरगुजा, रायगढ़, और कोरबा क्षेत्रों में पाई जाती है। ये करम देवता की पूजा करते हैं।
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करमा नृत्य: इसमें महिलाएं और पुरुष हाथ पकड़कर वृत्ताकार नृत्य करते हैं। यह सामाजिक एकता का प्रतीक है।
5️⃣ भतरा जनजाति
🔹 प्रमुख नृत्य:
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मंडारी नृत्य
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गेड़ी नृत्य
🔹 विवरण:
भतरा जनजाति बस्तर क्षेत्र में पाई जाती है।
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मंडारी नृत्य: यह ढोल और मांदर पर किया जाने वाला मर्दाना नृत्य है जिसमें वीरता और उत्साह झलकता है।
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गेड़ी नृत्य: इसमें युवक बाँस की गेड़ी पहनकर करतब और नृत्य करते हैं, विशेष रूप से स्वतंत्रता दिवस या गणतंत्र दिवस जैसे आयोजनों में।
6️⃣ हल्बा जनजाति
🔹 प्रमुख नृत्य:
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सुआ नृत्य
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गेड़ी नृत्य
🔹 विवरण:
हल्बा जनजाति खेती-किसानी से जुड़ी होती है।
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सुआ नृत्य: महिलाएं सुगंधित पौधों और परंपरागत गीतों के साथ नृत्य करती हैं।
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गेड़ी नृत्य: लड़के लंबे बाँस की गेड़ी पहनकर उच्च संतुलन पर नाचते हैं। यह साहस और कला का प्रतीक है।
7️⃣ बिरहोर जनजाति
🔹 प्रमुख नृत्य:
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पारंपरिक लोकनृत्य (स्थानीय शैली)
🔹 विवरण:
बिरहोर जनजाति बहुत सीमित संख्या में हैं और जंगलों में निवास करती हैं। इनके नृत्य पूर्णतः पारंपरिक और संगीतमय होते हैं, जो पीढ़ियों से मौखिक परंपरा के ज़रिए चले आ रहे हैं।
8️⃣ परधान जनजाति
🔹 प्रमुख नृत्य:
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पंथी नृत्य (धार्मिक अवसरों पर)
🔹 विवरण:
परधान जनजाति मुख्यतः धार्मिक कार्यों से जुड़ी होती है। ये गुरु घासीदास और सतनाम पंथ से प्रभावित होते हैं।
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पंथी नृत्य: यह भक्तिपूर्ण नृत्य होता है जिसमें संतों के गीतों पर तेज गति और अनुशासन के साथ नृत्य होता है।
🎼 उपयोग किए जाने वाले वाद्य यंत्र
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ढोल
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मांदर
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नगाड़ा
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तुंबरू
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मोहरी
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झांझ
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बांसुरी
ये वाद्य यंत्र नृत्य को जीवन्त बनाते हैं और जनजातीय संस्कृति की आत्मा को अभिव्यक्त करते हैं।
👗 पारंपरिक पोशाकें और आभूषण
प्रत्येक जनजाति की अपनी विशिष्ट पोशाक होती है, जैसे:
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महिलाएं: घाघरा, चोली, बिचुआ, कड़ी, झुमका
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पुरुष: धोती, गमछा, मोरपंख मुकुट, कमरबंद
इनका पहनावा नृत्य के भाव को दर्शाता है।
🌈 सांस्कृतिक महत्व
उद्देश्य | विवरण |
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समुदायिक एकता | सामूहिक नृत्य जनजातियों को एकजुट करता है |
परंपरा संरक्षण | पीढ़ी दर पीढ़ी सांस्कृतिक विरासत को आगे बढ़ाता है |
प्राकृतिक आभार | फसल, ऋतु, जलवायु के प्रति सम्मान |
धार्मिक आस्था | देवी-देवताओं की पूजा का अंग |
मनोरंजन | मेलों, त्योहारों, विवाह आदि में उल्लास |
🔚 निष्कर्षछत्तीसगढ़ के जनजातीय नृत्य केवल शारीरिक गतिविधियाँ नहीं, बल्कि एक जीवंत सांस्कृतिक दस्तावेज हैं। ये नृत्य समाज, प्रकृति और परंपरा को जोड़ते हैं। आज जब आधुनिकता पारंपरिक कलाओं को पीछे छोड़ रही है, ऐसे में इन नृत्यों का संरक्षण और प्रचार बेहद आवश्यक है। | |
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