बस्तर में काकतीय वंश | बस्तर के काकतीय वंश का गौरवशाली इतिहास

बस्तर के काकतीय वंश का गौरवशाली इतिहास | बस्तर में काकतीय वंश

बस्तर के काकतीय वंश 
Bastar Ke Kakatiya Vansh
 

🏰 बस्तर के काकतीय वंश का गौरवशाली इतिहास | Bastar Kakatiya Dynasty in Hindi

🔎 परिचय

बस्तर, जो आज छत्तीसगढ़ का एक प्रमुख आदिवासी क्षेत्र है, प्राचीन काल में एक समृद्ध और शक्तिशाली राज्य था। इस क्षेत्र पर लगभग 13वीं शताब्दी से लेकर 20वीं शताब्दी तक काकतीय वंश (Kakatiya Dynasty) का शासन रहा। इस वंश ने बस्तर की सांस्कृतिक, धार्मिक और प्रशासनिक संरचना को एक नये आयाम दिए।

यह वंश मूलतः दक्षिण भारत के तेलंगाना क्षेत्र से आया था और उन्होंने बस्तर को अपनी राजधानी बनाकर इसे एक स्वतंत्र और शक्तिशाली राज्य के रूप में विकसित किया।


🧬 काकतीय वंश की उत्पत्ति

काकतीय वंश की उत्पत्ति दक्षिण भारत के वर्तमान तेलंगाना राज्य से मानी जाती है। इस वंश की स्थापना राजा गणपति देव काकतीय ने की थी, जिनकी पुत्री रुद्रम्मा देवी एक महान शासिका मानी जाती हैं। लेकिन बस्तर में काकतीय वंश की शुरुआत अनम देव (Annam Dev) से हुई, जो वारंगल से आए थे।

📌 अनम देव – बस्तर काकतीय वंश के संस्थापक:

  • अनम देव 13वीं शताब्दी में बस्तर आए और यहाँ के जनजातीय क्षेत्रों को एकत्रित कर एक संगठित राज्य की नींव रखी।

  • उन्होंने अपने वंश की राजधानी जगदलपुर बनाई और शासन व्यवस्था स्थापित की।

  • स्थानीय गोंड, मुरिया, बत्रा, धुरवा आदि जनजातियों के साथ सामाजिक समन्वय बनाकर शासन किया।


📜 काकतीय वंश का प्रशासनिक ढांचा

काकतीय शासकों ने बस्तर में एक संगठित प्रशासनिक व्यवस्था लागू की, जिसमें राजा सर्वोच्च होता था। स्थानीय जनजातीय मुखिया (मुखिया या मांझी) को शासन व्यवस्था में स्थान दिया गया।

  • राजा – राज्य का सर्वोच्च शासक

  • मंत्री परिषद – सलाहकार व प्रशासक

  • जनजातीय पंचायत – स्थानीय स्तर की समस्याओं का समाधान


🛕 धार्मिक और सांस्कृतिक योगदान

काकतीय वंश के शासनकाल में बस्तर में धार्मिक गतिविधियाँ तेज़ हुईं और मंदिर निर्माण का कार्य बड़े पैमाने पर हुआ। उन्होंने शैव धर्म को विशेष रूप से संरक्षण दिया।

प्रमुख धार्मिक योगदान:

  • दंतेश्वरी मंदिर, दंतेवाड़ा – काकतीय शासकों द्वारा निर्मित यह मंदिर बस्तर की आराध्य देवी 'दंतेश्वरी माता' को समर्पित है।

  • माई दंतेश्वरी की पूजा बस्तर दशहरा का प्रमुख हिस्सा है।

  • मंदिर निर्माण में द्रविड़ शैली की झलक दिखाई देती है।


🏹 जनजातीय परंपराओं के साथ तालमेल

काकतीय शासकों ने जनजातीय जीवनशैली, पर्व-त्योहार और संस्कृति को अपनाया और सम्मान दिया।

  • बस्तर दशहरा, जो भारत का सबसे लंबा चलने वाला त्योहार है, काकतीय शासकों की देन है।

  • इस पर्व की शुरुआत राजा पुरुषोत्तम देव ने की थी, जो एक काकतीय शासक थे।

  • यह पर्व शक्ति पूजा और जनजातीय संस्कृति का संगम है। 

    🏰 बस्तर के काकतीय वंश के प्रमुख शासकों की सूची (1324–1948)

    क्रमांकशासक का नामशासनकाल (लगभग)प्रमुख उपलब्धियाँ
    1️⃣राजा अनम देव1324 – 1369 ई.बस्तर राज्य की स्थापना, वारंगल से आगमन
    2️⃣राजा हमीर देव1370 – 1405 ई.प्रशासनिक विस्तार, जनजातीय समन्वय
    3️⃣राजा हरिश्चंद्र देव1405 – 1430 ई.धार्मिक स्थलों का निर्माण
    4️⃣राजा पुरुषोत्तम देव1430 – 1465 ई.बस्तर दशहरा की शुरुआत, मंदिरों का निर्माण
    5️⃣राजा भैरव देव प्रथम1465 – 1490 ई.गढ़ निर्माण, क्षेत्रीय नियंत्रण
    6️⃣राजा धरनीधर देव1490 – 1515 ई.न्यायिक व्यवस्था का विकास
    7️⃣राजा प्रहलाद देव1515 – 1540 ई.प्रशासनिक सुधार
    8️⃣राजा उदय देव1540 – 1565 ई.जनजातीय सहयोग बढ़ाना
    9️⃣राजा भैरव देव द्वितीय1565 – 1590 ई.दुर्ग और किलों का निर्माण
    🔟राजा लक्ष्मण देव1590 – 1620 ई.कला व संगीत संरक्षण
    11️⃣राजा रघुनाथ देव1620 – 1650 ई.मराठा प्रभाव से संघर्ष
    12️⃣राजा प्रवीण चंद देव1650 – 1685 ई.काकतीय संस्कृति का विकास
    13️⃣राजा गोविंद चंद देव1685 – 1720 ई.दंतेश्वरी मंदिर का पुनरुद्धार
    14️⃣राजा रामचंद्र देव1720 – 1755 ई.बस्तर राजमहल का निर्माण
    15️⃣राजा विष्णु देव1755 – 1795 ई.ब्रिटिश संपर्क की शुरुआत
    16️⃣राजा रूद्र प्रताप देव1795 – 1822 ई.ईस्ट इंडिया कंपनी से संधि
    17️⃣राजा भैरव देव तृतीय1822 – 1853 ई.शांति व्यवस्था, शिक्षा प्रोत्साहन
    18️⃣राजा रघुनाथ देव द्वितीय1853 – 1875 ई.प्रशासनिक आधुनिकीकरण
    19️⃣राजा प्रफुल्ल चंद देव1875 – 1891 ई.ब्रिटिश नीति के अनुसार शासन
    20️⃣राजा रुद्र प्रताप देव द्वितीय1891 – 1921 ई.रेलवे और संचार साधन लाना
    21️⃣राजा प्रवीर चंद भंजदेव1922 – 1966 ई.आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा, बस्तर जनसंहार (1966)


राजा प्रवीर चंद भंजदेव:

  • आदिवासियों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया।

  • भूमि अधिग्रहण और वन नीति के विरोध में आवाज़ उठाई।

  • 1966 में पुलिस फायरिंग में उनकी मृत्यु हो गई, जिसे "बस्तर जनसंहार" कहा जाता है।


🏛️ काकतीय विरासत का प्रभाव

काकतीय वंश की विरासत आज भी बस्तर की हर परंपरा, लोक संस्कृति, मंदिरों और त्योहारों में जीवित है। बस्तर का लोक संगीत, नृत्य, दशहरा उत्सव और देवी पूजन उसी संस्कृति की जीवंत मिसालें हैं।


📚 निष्कर्ष

बस्तर के काकतीय वंश ने न केवल इस क्षेत्र को एक सशक्त और संगठित राज्य के रूप में खड़ा किया, बल्कि यहाँ की जनजातीय परंपराओं को संरक्षित करते हुए उन्हें राजकीय स्वरूप भी प्रदान किया। उनका योगदान आज भी बस्तर के इतिहास, संस्कृति और विरासत में स्वर्ण अक्षरों में अंकित है।


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